♦ सुजीत कुमार झा
दलानपर विहुँसैत हम सभ अतिथिके स्वागत कऽ रहल छलहुँ, सभक वधाई स्वीकार करैत पण्डालमे लऽ जाइत छलहुँ, जतऽ हमर नव विवाहिता बेटी नीतु अपन पति दामोदरक संग बैसल छल ।
विवाह हमरा सभकँे वीरगञ्जसँ करऽ पड़ल छल, तँए नीतु आ दामोदरक संग राजविराज अएलहुँ आ हम सभ अपन प्रियजनके पार्टी देने छलहुँ ।
नवकनियाँकँे लाज आ खुशी नीतुक मुँहपर साफ झलैक रहल छल, जे ओकर मुखाकृतिकेँ आओर सुन्दर बना रहल छल । हम मनेमन अपन बेटी दिस तकलहुँ । हमर पति जयचन्द्र अपन मित्र सभसँ जमाएकेँ परिचय करा रहल छलाह । डिस्ट्रीक इञ्जिनियर हएबाक कारणे हमर पतिक मित्रक संख्या कम नहि छल, मुदा जतऽधरि हमर प्रश्न अछि, हमरा भेटघाट करऽबला वा मित्रक संख्या कमे अछि । तैयो पार्टी खुब बड़का आ बढियाँ भऽ गेल छल ।
कखनो कानमे पतिके मित्र कहि रहल छलाह तऽ कखनो हमर संगी सभ नीतुक सुन्दरताक प्रशंसाक सगहि हमरो बड़ाइ कऽ रहल छल ।
‘जानकी, अहाँ अपन बेटीक विवाह कएलहुँ अछि वा अपन छोट बहिनके ? सहीमे जानकी, अहाँ अपन शरीरकँे खुब बनाकऽ रखने छी ।’
‘सहीमे, जानकी लगैत अछि जेना दिन प्रति दिन आओर जुआने भेल जारहल हुअए ।’
‘काल्हि तीस वर्षक लगैत छलीह, आई पच्चिस वर्षक । काल्हि २० वर्षक लगतीह,’ बात हँसी–ठहक्काक क्रममे आबि रहल छल ।
एकटा आओर आवाज आएल, ‘ठीक समयपर अपने सभ निपटि लेलहुँ । बेटीक बिबाह कऽ लेलहुँ, बेटाक नोकरी लागि गेल, घर बना लेलहुँ आ रिटायर होबऽमे एखनो ६÷७ वर्ष बाँकी अछि । एकरे कहैत छैक भाग्यशाली ।’
एहन–एहन कतेको बात हमर मनके झिकझोरि रहल छल, ओ भीड़ भरल पार्टीक झमेलामे हम बूझि नहि सकलहुँ ई टिप्पणी सभपर हमर मोन गुदगुदा सकल की नहि ?
बहुत शान्दार पार्टीक बाद हम थाकिकऽ अपन रुममे पडि़ रहलहुँ । साँझक पार्टी एकबेर फेर आँखिक आगा घूमि रहल छल । पार्टीक समय जे हमरा मुँहपर चमक, जे आभा छल ओ हम स्वयं अनुभवकऽ रहल छलहुँ । ओ आभा सुतऽसँ पहिने थकबाक कारणे उतरि गेल छल । पार्टीके मनेमन हम फेरसँ स्मरण करबाक प्रयास कएलहुँ ।
नीतु सहीमे हमर छोट बहिने जकाँ लगैत छल, हम अपनाकेँ खुब सजओने छलहुँ । शरीरक संग–संग मस्तिष्ककँे सेहो हम खुब सजगताक संग नियंत्रित कएने छी ।
हमहुँ नीतुके उमेरक छलहुँ तखने हमरो विवाह भेल छल । अन्तर एतबे अछि जे नीतु वि.ए. पासकऽ चूकल अछि आ हम अपन विवाहक समयमे वि.ए.मे पढैÞत रही । बाबुजी बढियाँ घर–परिवार भेटबाक खुशीमे ई बात बिसरि गेल रहैथि जे हमर पढ़ाइ नहि भेल अछि । हमर सामान्य प्रतिरोधकेँ ओ बहुत चतुरताक संग अनदेखी कऽ देने रहैथि ।
नीतु आधुनिक विचारक लड़की छल, स्कुटर चलबैत अछि आ पुरान परम्पराकँे मात्र सख बूझिकऽ मानि लैत अछि वा ई कही हमर बात टारऽ नहि चाहैत अछि । विवाहमे टिका, नथिया वा श्रृङ्गारक कोनो चिज पहिरऽमे हङ्गामा ठाढ़ नहि कएलक ।
एम्हर इञ्जिनियर पतिक संग घोघमे रहलहुँ, गहनासँ सजलहुँ आ पायलक झङ्कारकँे समेटिकऽ गे्रजुएट हएबाक इच्छाकँे मोनसँ निकालि हम पूर्ण गृहणी बनि गेलहुँ ।
जयचन्द्रक विधवा माए अर्थात् हमर आदरणीय दिवंगत साउस, हमर नवका घरमे निर्देशिका छलीह । हमर पति हुनक बेटा अछि, हमर घर हुनक सम्राज्य अछि, ई हमरा क्षण भरि नहि बिसरऽ देल जाइत छल ।
बाहरक लोक हमर मुँह देखऽ, परखऽ, पसिन करऽ, घरक लोक, जयचन्द्र आ साउस हरेक काजकँे, हरेक गतिविधीकेँ बहुत गम्भिरता पूर्वक देखब शुरु कएलैन्हि । हमर नव सीखल काज वा कोनो नव काज सिखबाक कोशिस एकटा परीक्षा बनि जाइत छल । हम परीक्षार्थी रहैत छलहुँ, जयचन्द्र आ साउस परीक्षक ।
‘माँ, देखही तऽ जानकी अँचार बनौलैन्हि अछि । खा कऽ देखही तऽ केहन छै । चारिए दिनमे फोफरी लागऽ लगलैक,’ जयचन्द्रकँे अँचार खएबाक सओखक कारण हम ओल आ लहसुनके अँचार बनएबाक प्रयास कएने छलहुँ ।
साउस जड़ैतपर घी तऽ नहि धएलीह तहन मलहमो नहि लगओलीह । ओ बजलीह, ‘अँचार कोनो धीया–पुताक खेल छै जे सभकेओ बढि़याँ बनालेत । तोँ बजारसँ आओर ओल आ लहसुन आन, हम तोहर पसिनक बना दैत छीयौक ।’
ओल आ लहसुन सेहो बजारसँ चलि आएल । साउस अर्थात् माँजी अँचार बना लेलैन्हि, हमरा हुनका लग बैसिकऽ देखऽधरि मोन नहि भेल । रौदमे कपड़ा मुँहपर राखि अँचार बनबैत हुनकर व्यवहार हमरा खौंझाएल सन लागल ।
जयचन्द्र अँचार खएलाक बाद हाथ चटैत बजलाह, ‘देखू एकरे कहल जाइत छैक अँचार । खाइत जाउ छोड़ऽके मने नहि करत, लिअ अहूँ कनी खाकऽ देखू ।’
अँचारक स्वाद हमरा तीत जकाँ लागल । जयचन्द्र हँसि रहल छलथि ।
ओहि राति पहिल बेर जयचन्द्रक स्पर्श हमरा किछु नहि बुझाएल । मुँहक स्वाद अखनो तीते बनल छल ।
बि.ए.तऽ छुटि गेल मुदा पाक शास्त्रक किताब आनि लेने छलहुँ । बढियाँ अँचार बनाएब हमर उद्देश्य बनि गेल छल जे अहम्के तुष्टिकऽ रहल छल ।
एक दिन एकटा मित्रक घरपर पार्टीमे जएबाक तैयारीकऽ रहल छलहुँ । जयचन्द्रक पसिनक लाल रंगक साड़ी पहिरने छलहुँ, गर्दनमे हार पहिरलहुँ, कानमे झुमका लगेलहुँ अएनामे अपन मुँह देखलाक बाद लाज भऽ गेल छल । जयचन्द्रक आँखिमे देखाएल भावकँे कल्पनासँ गाल पूmलि गेल छल या कही गुलावी आकार धऽ लेने छल । मुहँपर पाउडर लगएबाक लेल पफ उठेलहुँ कि पाछूसँ जयचन्द्रक अवाज आएल, ‘अरे छोडू पाउडर–ताउडर, एना कएलासँ कोनो रंग गोर थोरहे होइत छैक ? माँकेँ रंग देखियौ, बिना मेकअपकँे कतेक सुन्दर अछि, कतेक गोर अछि ।’ हम गर्दैनि घुमाकऽ जयचन्द्र दिस ताकि नहि सकल छलहुँ । मोनेमोन कुहरिकऽ रहि गेलहुँ । बाहर आबिकऽ जुरामे पूmल लगबैत जयचन्द्रकँे हाथ झटकयकँे मोन कएलक । माँ बाबुजीकेँ असगरे बेटी होबयकेँ कारण हम अपन बड़ाई सुनऽके आदी नहि छलहुँ । जयचन्द्रक व्यवहारक कारण मोन टूटऽ लागल छल ।
बिट्टुुकेँ जनमके समयमे जयचन्द्र आ माँ बहुत खुश रहैथि । सम्भवतः एहि प्रकरणमे ओ सभ हमरामे कोनो खोट नहि निकालि सकलैथि । मुदा हुनका सभक खुशी हमरा खुशीपर हावी भऽ गेल छल । हमर अपन बेटा हमरा लग मात्र दूध पिबाक समयमे अबैत छल । हम अनाड़ी जकाँ बनल माँजी आ माँजीक बिट्टुके देखभाल करैत देखैत छलहुँ ।
कितावमे पढि़कऽ, सँगी सभसँ देख–सूनिकऽ ओकरा लेल किछु नव बनबऽ चाहैत छलहुँ मुदा साउस फटकारि दैत छलीह ।
बच्चाकेँ सुतएबाक लेल छोटका–छोटका रेडिमेड गदली सभ किनने छलहुँ मुदा साउसकेँ पुरान साड़ीसँ बनल गदली पसिन होइत छलैन्हि । कहियो काल हमर अहम् माथ उठाबऽ लगैत छल मुदा सभ खौंझी बेचारा बिट्टुुएपर उतारैत छलहुँ ।
ओकरा दोसर रुममे कनबाक अवाज सूनि हम आँखि मूनि लैत छलहुँ । सम्हारौथ माँजी आ हमरा माँजीके भाषण सुनऽ पड़ैत छल । हमर ममताकेँ फटकारल जाइत छल । हम शायद चुप रहिकऽ अपन अहम्के तुष्ट करैत छलहुँ । जयचन्द्र सेहो कहि दैत छला, ‘जानकी, ई बात बढियाँ अछि माँ हमरा लग अछि नहि तऽ बिट्टुकँे पालब मुश्किल भऽ जाइत ।’
हमरा जयचन्द्र अपांग जकाँ लगैत छलाह आ माँजीकँे बिट्टुकँे पालब डूबि मरल जकाँ लगैत छल ।
कहियो सोचैत छलहुँ, एहि बात सभक कारण तलाक होइत अछि, हम किए नहि घर छोडि़कऽ भागि जाइ । हमर आवश्यकते नहि अछि एहि घरके । मुदा जाउ कतऽ ? नैहर जाकऽ कोनो सिकाइत करी कोनो फरक पड़ऽबला नहि छल, बाबुजी आब एहि संसारमे नहि रहि गेल छथि आ हमर माँ दिन–राति भगवानकँे एतबे गोहरबैत आभार व्यक्त करैत छल जे बाबु जी अपना हाथसँ एकलौती बेटीके बियाहकऽ देने छथि । हम अपन माँकेँ जयचन्द्रक विषयमे कहियो स्पष्ट सँ नहि कहि सकलहुँ ।
माँजीके एकक्षत्र राज्य कायम छल । जयचन्द्र मनोनित युवराज आ हम ….. हम एखनधरि अपन स्थिति नहि बूझि सकल छलहुँ । युवराज्ञी वा भावी सम्राज्ञी तऽ हम कतहु नहि छलहुँ । हँ ई निश्चते छल जे जयचन्द्र माँजीकेँ माँके स्थान आ कनियाँकँे कनियाँक स्थानपर नहि राखि सकल छलाह ।
नीतुके जन्मक बाद हम बहुत प्रशन्न छलहुँ । सुन्दर आदर्श परिवार भऽ गेल छल मुदा माँजीकँे आशापर तुषारापात भऽगेल छलैन्हि ।
ओ पोताक जोड़ी लगएबाक आशमे छलीह । जयचन्द्र एहिमे निष्पक्ष छलथि । सूनल सुनाएल बात भूmठ साबित भऽ रहल छल कि बापकेँ बेटीसँ बेसी लगाब होइत अछि ।
माँजीके आँखिक तारा तऽ बिट्टु छल, से नीतुके सम्हारबाक जिम्मेवारी हमरेपर छल । नीतुके जन्मलाक बाद हमरा बुझाएल जे हम सहीमे माँ बनलहुँ अछि ।
माँजीकेँ निराशा हमरा लेल वरदान सिद्ध भऽ रहल छल ।
कतेको गीत हमरा स्मरण आबि गेल छल । छोटकी नीतुकँे सजाबऽ सम्हारऽमे हमर समय बितऽ लागल छल । एक दिन माँजी बिट्टुुकँे तैयार करैत बजलीह, ‘हमर पोता राजा तऽ पापा जकाँ खुब पढ़त, खुब घुमत, इञ्जिनियर बनत । दाइकँे हवाई जहाजपर घुमाएत ।’
‘हँ, दाइ नीतुकँे सेहो लऽ चलब । ओहो खुब पढ़त, खुब घुमत,’ छोट बिट्टुु अपनासँ छोट बहिनके आँगुर पकडि़कऽ चलएबाक कोशिस करऽ लागल छल ।
‘हँ……हँ, पढ़त, नीतु सेहो पढ़त, अपन मम्मी जकाँ थोरहे रहत,’ माँ जी उठिकऽ भानस घरमे चलि गेलीह ।
हम अकचका गेलहुँ । सहीमे हम तऽ अनपढ़ समान छलहुँ । नहि एमहर, नहि ओमहर ई बात सूनि हमरा भितर एकटा झनाकसँ लागल ।
घर माँजी तऽ सम्हारि रहल छथि, हमरा तऽ मात्र हुनकर मदति करऽके रहैत अछि नहि कहियो ओ सिखाबऽके कोशिस कएने छथि आ नहि हम कहियो सिखबाक इच्छा रखने छी ।
हीन भावना आ अहम्के मीलल–जूलल रुप आगा आबि जाइत छल ।
हम वि.ए.के पढाइ पूरा करब से ठानि लेलहुँ । माँजी एकरा हमर दिमागके सनक बुझलीह, जयचन्द्र मात्र एकटा सख । किछु रोक टोक नहि कएला शायद इएह सोचने छला, देखियैक कोना पढ़ाइ पूरा करैत अछि । मुदा जखन हम वि.ए. पास कऽ एम.ए.मे एडमिशन करओलहुँ तऽ माँजी पुरे घर माथपर उठा लेलीह । बजलीह, ‘हमरा सभ घरक नोकरनी बूझि लेने अछि ।
दुनू बच्चाकेँ हमरापर छोडि़कऽ अपना टण्डेली करैत अछि ।’
जयचन्द्र सेहो डँटलाह, ‘पढ़बाक एतबे सख अछि तऽ खाली समयमे घरमे पत्रिका–तत्रिका पढि़ लेल करु । डिग्रीके चक्करमे हम माँके, घरक आ बच्चाक उपेक्षा वर्दास्त नहि कऽ सकब ।’
‘बच्चाकँे आ घरकँे माँजी हमरासँ बढि़याँ जकाँ सम्हारैत छथि आ जतेक काज घरके हमरा करऽ देल जाइत अछि ओतेक करबे करैत छी । हँ, अहाँ सभकेँ आदेश मानऽमे कहियो पाछू हँटब तऽ कहब,’ हम पढि़–लिखकऽ बाजऽ लागल छलहुँ ।
क्याम्पस जाए लगलासँ हम फेर एकबेर नव युवती बनि गेल छलहुँ ।
संगहि सङी सभके प्रशंसाक बात सूनिकऽ मोनक उमंग फेरसँ हरिया गेल छल । अपना लेल हम सजग भऽ गेल छलहुँ । माँजी धीरे–धीरे अस्वस्थ्य रहऽ लागल छलीह । बिट्टु आ नीतु स्कूल जाए लागल छल । हमरा लग क्याम्पस, घर आ बच्चाक काज बढि़ गेल छल । कहियो काल लगैत, माँजी जानि बूझिकऽ पढ़ाइमे वाधा देबाक प्रयासकऽ रहल छथि ।
मुदा हम एम.ए. कैएकऽ चयनक साँस लेलहुँ । घरक काजमे सेहो हम निपुण भऽगेल छलहुँ । पढाइक विषयमे कोनो उलहन नहि सुनाइ पड़ए तँए हम मशिन बनि गेल छलहुँ । शायद क्याम्पसमे उल्लासक वातावरणक प्रभाव छल हमरामे काज करबाक, जीवाक शक्ति भेट गेल छल । मुदा एहि शक्तिसँ घरक शान्ति छिनाय लागल छल ।
हम माँजीके प्रति उपेक्षाक पर्याय मानल जाएल लगलहुँ ।
जयचन्द्रक कहब छलैन्हि, ‘अहाँक एम.ए. करबाक जिद्द माँके स्वास्थ्यपर कतेक असर कएलक अछि आ अहाँ बुझिए नहि रहल छी, घर पढाइसँ बेसी आवश्यक अछि ।’
हमर एम.ए. पास होएब एक प्रकारसँ माँजीकेँ वलिदानक फल बताओल जाए लागल ।
निश्चय हम जयचन्द्रक मित्र मण्डलीसँ कटि गेल छलहुँ । एक तऽ समयाभावक कारण दोसर दोहरा व्यक्तित्वबला अलग–अलग प्रकारक मुखौटा लगओने खोखला व्यक्तित्व हमरा सहनशीलतासँ बाहर छल । जयचन्द्र तऽ पहिले दिनसँ हमरा अपन माँके प्रतिस्पर्धामे राखिकऽ परैखि रहल छलाह । आबो माँजीकँे दोसरसँ भेटब, बातचित करब हमरा हुनका आगाँ एकदम घरघुसनी साबित कऽ देने छल ।
‘एहि उमेरमे सेहो माँकँे चारि घरमे आएब–जाएब अछि । एक अहाँ छी ……..’ जयचन्द्र कुहरिकऽ बजलाह । हमरा कुहरयकँे तऽ कोनो हिसाबे नहि छल ।
हम घर, बच्चा सभ किछु सम्हारने छलहुँ । पढ़ाइ सेहो कएने छलहुँ, किए कि हम एम.ए. करऽसँ पहिने माँजी कड़ा शर्त लगा देने छलीह भोजन हुनकासँ नहि बनि सकत, सफाइ–तफाइ सेहो मुस्किल अछि, बच्चाक पढाइ तऽ हुनका बसक बाते नहि छल । हम बच्चाक कपड़ा धोबऽ लेल सफाइ करऽ लेल एकटा काम करऽ बाली लगा लेने छलहुँ, साँझक चाह आ भोजन–तोजन बनएबाक काज अपना उपर लऽ लेने छलहुँ ।
माँजी भोरके भोजनक तैयारी करैत छलीह । पढ़ाइक कारण कहल जाए कमे समयमे एक दम फुर्तीक सँग हम काज करऽ लागल छलहुँ ।
माँजीक तीर सनक व्यङ्ग एखनो चलैत रहैत छल । जयचन्द्र हरेक बेर अबथि तऽ कोनो ने कोनो एहन बात खोजि लैथि, जकर आधारपर हमरा डाँटल जाए सकए । हुनका अफिससँ एलाक बाद हुनकर स्वागतक लेल स्नेहसँ भड़ल मन पत्थर भऽ जाइत छल । ओ घरसँ दोसर शहरमे नोकरी करैत छलैथि । ओ १५ दिनपर अपन घर अबैत छलैथि ।
हमर भावुक मन कहियो भावनात्मक सहयोग नहि पाबि सकल । सफल वैवाहिक जीवनक माधुर्य हमर जीवनसँ कोशो दूर छल । हमरा तऽ बियाहक बाद हरेक क्षण ई अनुभव कराओल गेल जे हम किछु नहि छी आ एकरे चुनौती मानिकऽ किछु बनबाक धूनिमे लागि गेलहुँ ।
एहि आर्दशक लेल हम जयचन्द्रक स्नेह, दुलार, प्रोत्साहन चाहैत छलहुँ । कोनो नव कामक बदलामे हुनक आँखिमे अपना लेल प्रशंसा आ पे्रमक चमक देखऽ चाहैत छलहुँ । ओ मापदण्डपर खड़ा उतरबाक लेल हम मशिन बनि गेल छलहुँ । सभ किछु नीक ढंगसँ होबऽ लागल ।
जयचन्द्रकँे सेहो मशिने बुझऽ लागल छलहुँ । मुदा जखन हम मशिन बनि गेलहुँ, जयचन्द्रक इच्छा अनुसार चलऽ लगलहुँ तऽ प्रत्येक दिन नव–नव शर्त बढऽ लागल । बच्चाक लेल बड़का होइत–होइत हमरा घरमे जिम्मेवारी बढि़ गेल । माँजी नहि छलीह जखन आब हुनकर अत्याधिक आवश्यकता छल ।
जयचन्द्र घरमे सेहो सभकँे अपन अधिन बुझऽ लागल छलाह । मुदा तखन जहिया हुनकर इच्छा हुए आवश्यकताक, हुनका आगाँ कोनो आवश्यकता नहि छल मुदा हम बराबरके दर्जा चाहैत छलहुँ ।
बच्चासँ सेहो प्रेम मित्रताके स्तरपर अपनत्व स्थापित नहिकऽ सकलाह । जखन हुनका शारीरिक भुख लगैत छल तऽ अवश्य ओ पे्रम प्रदर्शन करैत छलाह, मुदा हमरा लेल हुनकर ई प्रेम मात्र एहि बातक सूचक होइत छल कनियाँ हएबाक कारण हुनक भुखके शान्त करब हमर कर्तव्य अछि । एमहर, बच्चामे बेसी रमैत गेलहुँ जतेक हम बच्चासँ लग होइत गेलहुँ, ओतेक जयचन्द्रसँ दूर ।
जयचन्द्र मोनक सामिप्यता तऽ कहियो नहि रहल छल मात्र एकटा सम्बन्ध निर्वाह करैत चलि आएल छलहुँ । कर्तव्यपूर्तिमे जयचन्द्रक कोनो जोड़ा नहि छल । जयचन्द्र अफिससँ अबैथि, औपचारिक जकाँ बातचित करैथि आ घुमऽ चलि जाइथ । रातिमे ओछाएनपर पडि़ते फोंफ काटऽ लगैत छलैथि । जखन कि हम जगले रहैत छलहुँ । जखन हम कोनो पार्टीक बाद थकानसँ चुर होइत छलहुँ तखन जयचन्द्रक निन्न कोशो दूर होइत छल ।
जयचन्द्रक कोनो बातके हम बुझिए नहि सकलहुँ, मुदा एकटा बात बढियाँ जकाँ बुझैत छलहुँ कि हमरा हिसाबसँ हुनका प्रशन्न करब मुश्किले नहि असम्भव अछि ।
मशिने बनिकऽ हम अपन मस्तिष्क आ अहम्कँे मारि नहि सकि रहल छलहुँ । जयचन्द्रक पसिनक भोजन, अँचार, मिठाइ आदि सभ बनाबऽ लागल छलहुँ । घर सेहो साफ चिकन रखैत छलहुँ । बच्चा सेहो स्मार्ट आ तेज निकलल छल मुदा जयचन्द्रक आत्मतुष्टि अहूमे नहि छल । हिनका तऽ उँचका एँरी बला सेण्डिल पहिरने, केश काटल, अँगे्रजीमे बात करऽ बला जुवा–तास खेलऽ बाली महिला स्मार्ट लगैत छलैन्हि । जयचन्द्रक अनुसार हम स्मार्ट नहि बनि सकलहुँ आ नहि सोसाइटीमे घुमऽ लायक रहलहुँ । किछु हमर अपन कमजोरी सेहो छल ।
हम शुरुसँ पति आ साउसकेँ अपन कमी–कमजोरी सुनिते–सुनिते एहि हीन भावनासँ ग्रस्त भऽ गेल छलहुँ जे दू चारि लोकक आगाँ बैसि नहि सकैत छलहुँ ।
जयचन्द्रकेँ शायद ओ मशिन बला गुडि़याक आवश्यकता छल जे कनिको डोरी खिचलापर धरा–धर अंगे्रजी बाजऽ लागए, तासकँे पत्ती बाँटऽ लागए आ घरमे दोसर डोरी तनिते नोकरनी बनि भानस घरमे काम काजक संगहि पति सेवा सहितक बिना थाकल कोनो हुज्जतके करए ।
हृदयक, भावनाकेँ वा शायद पे्रमक जयचन्द्रके नजरिमे कोनो मोल नहि छल । सभ काज नियम अनुसार हएबाक चाही पति–पत्नीक सम्बन्ध सेहो ।
एकटा ठण्ढ़क राति जयचन्द्र हमरो ठण्ढ पाबि उठिकऽ घुमऽ लगलाह हमर शरीर मशिन बनऽसँ अस्वीकारकऽ देने छल ।
‘अहाँ हमरासँ कतेक दूर होइत जारहल छी, हम सभ बात बूझि रहल छी । अहाँकेँ छुअब आ वेजान यन्त्रकेँ छुअब एक समान भऽगेल अछि ।’
जयचन्द्र अनयासे कतेक बड़का शब्द बाजि गेल रहथि । हम एकटा मेकेनिकक हाथक मशिने तऽ बनि गेल छी । पे्रमक भावनाकँे, आत्मियताक सुरधार कतऽसँ बहितहुँ ?
जयचन्द्र मशिनवादी छलाह, अतिवादी सेहो । कहलाह, ‘हम अहाँकेँ वर्दास्त करैत आबि रहल छी तँए अहाँ अपन हैसियत बिसरि रहल छी । हमर स्थानपर केओ दोसर होइत तऽ तलाक लऽलैत हम एमहर–ओमहर घुमऽके आदी नहि छी अहाँ एकरे नजायज फाइदा उठा रहल छी । बिसरु नहि अहाँ मैथिल महिला छी आ मैथिल घरक मुखिया मालिक होइत अछि, ओकरे मर्जी चलैत छैक ।’
बिना कोनो सन्दर्भके, बिना कोनो तारतम्यके जयचन्द्र बजैत गेलाह । हमर एक्कोटा गल्तीकेँ जयचन्द्र वर्दास्त कऽ सकल रहितथि, ओकरा नजर अन्दाज कएने रहितथि, माँजी संग मीलिकऽ ओकरा मजाक नहि उड़ओने रहितथि । घरक मुखिया घरमे रहऽ बला प्राणीके शरीरक भितर सेहो किछु देखने रहितथि ओ घरमे मात्र महिलाकँे नहि, कनियाँ वा पे्रमिकाके खोजने रहितथि ।
जयचन्द्रकँे तलाकके परिणाम, घर टूटबाक दुःखक मानसिक बोझक अनुभव होइत ।
दोसर दिनसँ हम बच्चाक सुतऽ बला रुम अपना लेल तय कऽ लेलहुँ । जयचन्द्रसँ साफ कहि देलहुँ, ‘तलाक तऽ हम नहि लेब आ नहि देब । घर कोनो हालतमे नहि टुटत । बच्चा नहि बँटाएत । मुदा तलाक भेलाक बाद अपनेकँे जे अजादी भेटैत, ओ हम अपनेकँे दैत छी । हम नोकरीक लेल आवेदन–पत्र दऽ देने छी । आर्थिक स्तरसँ सेहो अपनेपर बोझ नहि बनब ।’
ओहि दिनसँ हमर ओहे दिनचर्या बनि गेल । संसारक नजरिमे हम वर–कनियाँ छलहुँ, सफल वैवाहिक जीवन छल बढि़याँ बच्चा छल । उच्चाधिकारी योग्य पति, कमाउ घरेलु आ बढियाँ कनियाँ आ माँ–बापक गुण लऽ कऽ बड़का होइत बिट्टुु आ नीतु, देखऽ बलाकँे नजरिमे जयचन्द्र आ हम जीवनसँ आओर की अपेक्षा कऽ सकैत छलहुँ ? बिट्टु आ नीतुकेँ हमरा वास्तविक सम्बन्धक विषयमे कतेकधरि बूझल अछि, हम नहि कहि सकैत छी ।
बितल जीवनकँे जे देखैत छी तऽ बूझि नहि पबैत छी हम लाभमे रहलहुँ वा घाटामे ।
अधबैसु भेलाक बादो युवा देखाएब सुरुचि पूर्णकार्य प्रणाली गुणक कारण प्रशंसित होएब स्वतन्त्र व्यक्तित्व राखऽके गौरव सहीमे एहि योग्य छी जे एहिपर गर्व कएल जाए ? हमर व्यक्तित्वक भव्य घर कोनो अहम्के आधारपर अछि, भितरसँ ई घर कतेक खाली अछि ई हम ककरो कोना बुझाउ ? हमर दृष्टि एखनो ओहि आँखिमे अपना लेल गर्वमय चमक देखबाक लेल आतुर अछि, हमर पियासल मोन एखनो अपनत्व भरल ओ स्पर्शसँ अछुत अछि जे जयचन्द्र आ मात्र जयचन्द्रे दऽ सकताह । जयचन्द्रकेँ कोना बुझाउ कि बच्चाकेँ नोकरीपर गेलाक बाद बियाह भेलाक बाद हम कतेक असगर भऽगेल छी ।
निन्न आ थकानसँ बन्हाएल आँखिमे नोरक सँग रहि–रहि कऽ एकटा प्रश्न उभरि कऽ अबैत अछि –कि जयचन्द्र सेहो अपना रुममे पड़ल किछु एहने सोचि रहल हएताह ?