

सुजीतकुमार झा ।
नागपञ्चमी मिथिलामे युगोसँ मनाओल जा रहल अछि । एतुका प्रमुख पावनिमेसँ एक पावनि अछि नागपञ्चमी ।
नागपञ्चमीक दिन मिथिलावासीसभ नागक पुजा संगहि नीमक पात आ नेबोक रस प्रसादीक रुपमे ग्रहण करैत छथि । विषहराकेँ दूध आ लाबा सेहो चढाओल जाइत अछि । चाउरके खीर घर–घरमे बनैत अछि । नीमक पात आ नेबोक रस खएलासँ सर्पक विषके असर कम करैत अछि ।
अष्टसर्प अंकित चित्र सेहो घरक मूलद्वारमे नागपञ्चमीक दिन साटल जाइत अछि । ओना पहिने गोबरकेँ घरक द्वारपर नागक चिन्ह बनाओल जाइत छल । जाहिसँ सर्पक आतंकसँ मुक्ति मिलबाक जन विश्वास रहल अछि । नागपञ्चमीक दिन साँपक पुजा करितो एहि तिथिके किए नागपञ्चमी कहल जाइत अछि । नाग सरिसृप प्रजातिके एकटा प्राणी नाग सर्प तऽ अछि मुदा नाग एकटा अपने अलग जाति अछि । जनकपुरधामक विभिन्न स्थानपर नागक मूर्ति बना सेहो पूजा कएल जा रहल अछि ।
मिथिलाञ्चलमे दू दिन नागपञ्चमी मनाओल जाइत अछि । किछु ब्राह्मणसभ मौना पञ्चमीक दिन ई पावनि मना चुकल छथि तऽ अन्य समुदायक लोकसभ आइ अर्थात साउन कृष्ण पक्षक पञ्चमी दिन नागपञ्चमी पावनि मना रहल छथि ।
नागपञ्चमी किए मनाओल जाइत अछि एकर विभिन्न तर्क सभ अछि । प्राचीन समयमे नागसभ लंकाक किछु स्थानपर आधिपत्य जमौने छल । सुरसाके नागक माय आ समुद्रक रक्षक मानल जाइत अछि । नाग सभ ओहि समयमे महेन्द्र आ मैनाक पर्वतक गुफामे वास करैत छल । हनुमान जीके समुद्र नंघैत नागसभ प्रत्यक्ष देखने इतिहासकारसभ बतबैत छथि । नागक कन्या सभ अपन सुन्दरताक लेल प्रसिद्ध छलीह । तएँ रावण नागक कन्यासभके अपहरण कएल करैत छल् । रावण नागसभक राजधानी भोगवती पर आक्रमण कऽ वासुकी, तक्षक, शंक, आ जटी नामक नागके युद्धमे परास्त कएने छल् । कलान्तरमे जा कऽ नाग जाति चेर जातिमे जा कऽ विलिन भऽ गेल जे इस्वी सन् शुरु होबए सँ बहुत पहिनेके घटना अछि ।
नागपञ्चमी मनाबएके पाछाँ एकटा मत ई अछि जे अभिमन्युक बेटा परिक्षित बहुत धर्मात्मा रहथि । हुनके समयमे कलयुगक प्रवेश भेल मानल जाइत अछि । ओ जंगलमे शिकार खेलए गेल समयमे हुनका बहुत जोर प्यास लागि गेलन्हि । पानिक खोजीमे ओ ऋषी शमिमक आश्रममे पहुँचलथि । जतए ऋषी शमिम तपस्यामे लीन छलथि । ओ हुनका सँ पानि पिबाक इच्छा व्यक्त करितो कोनो प्रतिक्रिया नहि आएल । तखन जा कऽ हुनकापर कलयुग हावी होबए लागल । ओ तपस्यामे लिन ऋषी शमिमक गलामे मृत सर्प राखि देलथि । जाहिसँ क्रोधित भऽ हुनक बेटा ऋषी श्रृंगी हुनका श्राप दऽ देलथि इएह सर्प ७ दिन भीतर अहाँकेँ जीवित भऽ कऽ डसि लेत ।
ओ तक्षक सर्प परिक्षितके ७ दिनक बाद डसलाक बाद मृत्यू भऽ गेल । जाहि सँ क्रोधित भऽ कऽ हुनक बेटा जन्मेजय सर्प यज्ञक आयोजना कएलथि । जाहिमे सर्पसभक आहुति देल गेल । एहि यज्ञके बाद महर्षि आस्तिक रुकबौलथि । आस्तिकके पिता आर्यवंशी रहथि आ माय नागवंशी । तएँ आर्यसभ आर्य आ नागक बिचके सम्बन्ध सुधार करबाक लेल नागसभक स्मृतिमे नागपञ्चमी मनाबए लागल । एहि प्रकार नागपञ्चमी मनेबाक परम्परा शुरु भेल मानल जाइत अछि ।
मिथिलाञ्चलमे सेहो नागपञ्चमी भव्यता पूर्वक मनाओल जाइत अछि । एहि दिन साँझमे सर्प प्रतिके आस्था देखेबाक लेल घर, आँगन, बारी झारीमे मूसक कोरल माटि, लावासंग मिला कऽ ओहिके मन्त्रोचार कऽ छिटल जाइत अछि ।
