♦ कञ्चना झा
खिड़कीसँ चन्द्रमाके निहारि रहल छी । धीरे–धीरे चन्द्रमा शीतल बरसाबैत भोर दिस बढि़ रहल अछि तऽ इएह आस करी जे भोरक सुरजक लालीसंग काल्हिके दिन एकटा नव शुरुआत लऽकऽ आओत । मुदा आजुक राति केनाकऽ कटतै से नहि जानि ? आँखिसँ निन्न हेरा गेल अछि । रातिके दू बाजि रहल अछि मुदा निन्न आँखिसँ कोसो दूर अछि । एकटा निर्णय पर पहुँच तऽ गेल छी मुदा ई निर्णय सभकियो मानत ? एहि दुविधामे ओछायन पर करवटि बदलि रहल छी । चन्द्रमाके निहारैत डबडबायल आँखिमे किछु सपना पलि रहल अछि आ सत्य कहूँ तऽ भविष्यके लेल स्वयंकेँ तैयार कऽ रहल छी । काल्हिके भोर कोन रंग आनत जीवनमे से नहि जानि ? स्वयंकेँ जतबे मजबूत करऽ चाहि रहल छी, ओतबे भीतर कमजोरीक अनुभूति सेहो भऽ रहल अछि ।
अमर बिनाके जीवन कोनाकऽ काटब एहि दुविधामे छी ? एहि प्रेमक शुरुआत बहुत सुन्दर भेल छल । भगवानके बनाओल गेल जोडि़क नाम देल गेल यानी विवाहके पवित्र बंधनमे बान्हल गेल छलहुँ हम आ अमर । हम अथाह प्रेम लऽकऽ आएल छलहुँ मुदा प्रेमके बदलामे प्रेम भेटए से कोन किताबमे लिखल अछि ? आओर फेर जीवनके अन्त सोहनगर होए से तऽ आवश्यक नहि अछि ने । हम प्रेम करैत छी, अगाध प्रेम करै छी जकर कोनो हिसाब नहि । अमर सेहो प्रेम करैत छथि मुदा अन्तर एतबए जे हमरासँ नहि किनको आओरसँ ।
हम बहुतो चाहलहुँ जे अमरसन बनी मुदा हमर हृदय हुनकासन नहि अछि । ओ विशाल हृदयके छथि । जाहिमे दुनूके समा लेने छथि । मुदा हम हम छी । एहि खलिश, एहि कसक एहि टिस, एहि पीड़ाके संग जे हमर पति हमरा बहुत इज्जत करैत अछि । मान सम्मान देने अछि मुदा प्रेम …पे्रम ककरो आउरसँ करैत छथि । एहि पीड़ाके संग हम कोना जीयब ?
एहि दू दशकक विवाह जीवनमे अमर सेहो कुहैक कऽ रहि रहल छथि । मुदा हमरा कहियो शिकायतके अवसर नहि देलाथि । ताहिसँ हम भागमंत छी जे ओ हमरा नहि, हम हुनका छोडि़ रहल छी । हमरा बुझल अछि जे संगे रहैत हम दुनू एक दोसराके आदति बनि गेल छी मुदा हम प्रेमके भूखल छलहुँ । भुखले रहि गेलहुँ । कछमछ करतहि छलहुँ कि साउस आबि गेलीह आ हमरा दिस देखैत बजलिह, ‘रुमक बत्ति जरैत देखलहुँ ताहिसँ आबि गेलहुँ अछि ।’
हम उठिकऽ बैस गेलहुँ । आ कहलियैन, ‘आबथु ने माँ …।’
बैसै ओ बजलीह, ‘कनियाँ… आइ निन्न कतए हरा गेल अछि ? अमर नहि अछि ताहिसँ निन्न नहि भऽ रहल अछि की ?’
हुनक बात कनि हास सेहो छल । लाजो भऽ गेल । हम ओछायन सारी सरियबैत बजलहुँ, ‘तेहन कोनो बात नहि अछि माँ ।’
‘तऽ कोनो दुविधामे अछि कि ? किछु दुखके बात अछि तऽ हमरा कहुँ । हमहूँ तऽ माए सन छी ने….’ चौकीपर बैसैत ओ बजलीह ।
‘माँ कोनो समस्या हएत तँ हिनका नहि कहबैक तँ ककरा कहबैक…’
‘तखन चेहरापर चिन्ता जकाँ किए बुझाइत अछि, एखनधरि निन्दो नहि भेल अछि…।’
हमहुँ चौकीपर बैसैत बजलहुँ, ‘नहि माँ तेहन कोनो बात नहि अछि…।’
तँ की बता अछि एहिबेर जहियासँ अमर गेल अछि अहाँ कहिओ ओकरासँ बातो नहि कएलहूँ अछि, कोनो झगड़ावला बात छैक की ?’
‘नहि माँ हमरा सभके झगड़ा कहाँ होइत अछि ।’
‘हँ से तऽ हम बड़ भागमंत छी जे अमरसन बेटा आ अहाँसन पुतहुँ भेटल । हँ तखन आइ अहाँकेँ निन्न किए नहि भऽ रहल अछि ?’
ऋोछाएनपरसँ उठैत हम बजलहुँ, ‘माँ ओना तऽ काल्हि भोरे हम हिनकासँ बात करबए करितहुँ मुदा ….’
‘कि बात करबाक अछि जकरा लेल अहाँ काल्हि भोरु पहरक प्रतीक्षा कऽ रहल छी ?’
‘माँ हम …. ओ …’
‘कि माँ हम ओ…साफ साफ बात कहुँ मोनमे की चलि रहल अछि ?’
‘एकटा द्वन्द चलि रहल अछि माँ…’
‘द्वन्द ! केहन द्वन्द ?’ माए अकबकायल सन हमरा दिस तकलिह ।
‘माँ हम …किछु …निर्णय …’
‘निर्णय …. ई कि भेलैक कनियाँ ?’
‘माँ हिनका तामस तऽ नहि चढ़तनि ने !’
‘कथिकेँ तामस कि बात…,’ हाथ पकडि़ ओछायनपर बैसबैत ओ बजलीह ।
‘माँ मीता एखनहुँ अमरक जीवनमे अछिए…।’
‘मीता …,’ माँ आश्चर्यसँ बजलीह ।
‘हँ माँ…. मीता…।’
‘केहन बात कहैत छी ? आब किए मीता ओकर जीवनमे रहत ? माँक चेहरापर परेशानी झलकि रहल छल ।
‘ओकर अप्पन जीवन अछि आ अमरसंग अहाँक…,’ फेरसँ माँ बजलीह ।
‘हँ माँ हमहूँ तऽ इएह बुझैत छलहुँ जे मीता अप्पन संसारमे अछि आ हम अप्पन मुदा ई सत्य नहि अछि ! मीता आ अमर एखनहुँ एक दोसरासँ बहुत प्रेम करैत छथि । माँ अमर आइयो ओकरा लेल दुःखी छथि । अप्पन जीवनमे ओकर कमी महसूस करैत छथि । मीताक बिना हुनक जीवनक कोनो अर्थ नहि अछि हमरा लगैत रहैत अछि माँ ।’
फेर खिड़की लग पहुँच हम बजलहुँ, ‘वियाहक २५ वर्ष बितलाक बादो अमरके मीताके कमी महसूस होइत अछि यानी हमरासँ तऽ प्रेम अमरके कहियो नहि भेल माँ…।’
‘धुर ई कि कहैत छी ?’ ओहो हमरा लग पहुँच बजैत छथि ।
‘हँ माँ अमर सेहो कुहैक कऽ रहि रहल छथि हमरा संगे आ हम सेहो…हमरा तऽ किछु बुझबामे नहि आबि रहल अछि…’ फेर माँकेँ हाथ पकडैÞत हम कहलहुँ, ‘माँ हम मरि गेल छी ताहिसँ हिनकासँ एहन बात कऽ रहल छी आ दोसर माँ ई समाजके देखेवाक लेल जे हम बहुत प्रसन्न छी, ई देखावटीपन मात्र अछि… अहि नाटकसँ बाहर निकलय चाहैत छी…माँ हम जीब नहि सकब ई बुझैत जे अमरके मनमे आइयो हम नहि, मीता अछि । फेर माँ अमर हमरासँ नहि प्रेम करैत छथि मुदा हम तऽ प्रेम अमरसँ करैत छी ने । आ प्रेममे सदैतखन अप्पन मन नहि देखल जाइत अछि । प्रेमके मतलब तऽ ओकर प्रसन्नतामे अपन प्रसन्नता तकनाइ अछि माँ ।’
माँ आँखि पोछैत बजैत छथि, ‘अहाँके रहैतमे अमर मीताकेँ नहि भऽ सकैत अछि । ई सरासर अन्याय हएत ।’
‘माँ आब जे कहथुन मुदा हमरा लेल ई भार अछि आ अहि भारके संग हम नहि जीबए सकब… ककरो घरवाला अपन पत्नीसँ नहि कोनो दोसर स्त्रीक प्रेममे अछि । ई किओ वर्दास्त नहि कऽ सकैत अछि … हमरा लगैत अछि ई जीवन नहि भेलैक ।’
‘तखन अहाँक फैसला की ?’
‘माँ हम अलग रहए चाहैत छी !’
माँ आश्चर्यसँ हमर मुँह दिस तकैत बजलीह, ‘कि अहाँ तलाक लेब अमर सँ ? अहाँ एकर परिणा बुझि रहल छी, अहाँक दुनू बच्चाकेँ कि हएत ? हमर कि हएत ? घर–परिवारक सर–समाजक लोक की कहत ? एहिपर किछु बिचारो कएलिया ।’
‘सर समाज कियो कि कहतै माँ ? हम जे भोगि रहल छी हमही भोगबै । फेर माँ हमरा बुझल अछि जे हमर बात अगर कियो खुब निकसँ बुझत तऽ इहे छथिन । माँ ई सभदिन हमरा लेल ठाढ़ रहलिह अछि । हिनकासँ तऽ कोनो बात नुकायल नहि अछि । हम तऽ अपन सभटा बात हिनकासँ साझा करैत रहथि छलहूँ …।’
माँ एकटक हमर बात सुनि रहल छथि ।
फेर हम बजलहुँ, ‘एकटा बात सोचथुन तऽ माँ, जहियासँ वियाह कऽ कऽ अएलहुँ कहिओ नवकनिया जकाँ रहलहुँ ? नवविवाहिताके जे एकटा साज श्रृंगार होइत अछि । एकटा जे उत्सुकता होइत अछि पतिके अपन पत्नीके लेल हम कहियो नहि बुझलहुँ । तइयो माँ हम चुप रहि गेलहुँ । सोचैत रहैत छलहुँ जे सामान्य पति पत्नी सँ हम दुनू गोटे अलग किए छी ? माँ प्रेमक शुरुआत तऽ सच्चाई सँ भेल छल । अमर हमरा सभ बात कहि देने छलाह जे मीता आब हुनक जीवनमे नहि अछि, आब हम आ हमही छी तखन एहन बात किए ?’
सारीके सरियबैत हम फेर बजलहुँ, ‘माँ हम तऽ सभकिछु बिसरि कऽ अमर संगे एकटा नव जीवनक यात्रापर चलनाई शुरु केने छलहूँ । ओहि कष्ट ओहि तकलीफसँ बाहर नहि आबि पाबि रहल छी…अमर सभदिन झूठ बजलाह तकलीफ अहि बातके अछि जे हुनका मनमे यदि मीता छल तऽ हमरा किए नहि कहलाह ? २५ साल एना हुनका मीतासँ अलग नहि होमय दैतिये कम्तीमे हम । बहुत एहन क्षण आयल जीवनमे जखन अमरकेँ हमरा आवश्यकता छल ओ हमरा संगे नहि छलाह ।’
‘दुःख तऽ एहि बातक अछि जे अमरक संगे अहाँ सेहो ई सभ बात हमरा नहि कहि सकलहुँ… ।’
‘माँ मन बहुत दुःखायल छल ताहिसँ किछु नहि कहि सकलहुँ फेर इहो दुःखित भऽ जेतिह, हिनका सेहो चिन्ता भऽ जेतैन एहि उलझनमे रहि गेलहु… ।’
माँ हमरा दिस टुकुर टुकर देखैत रहि गेलीह मुदा हम बजितहि छलहुँ, ‘दःुखक क्षण कटनाए बहुत मुश्किल होइत अछि माँ । मनुष्य सभकिछु बिसरि सकैत अछि मुदा जहिआ हमरा अमरक बहुत आवश्यकता छल..अमर हमरा संगे नहि छलाह । हम अहि अहसासक संगे आब नहि जीब सकब । माँ हमरा मुक्ति चाही..हमरा एहि बन्धनसँ मुक्त कऽ दौथु….हम मरि जायब एहि सोचिकऽ जे हम मात्र आ मात्र दायित्व छी अमरके, प्रेमक भागी नहि । २५ सालसँ हम इएह उधेड़बुनमे बिता रहल छी…।’
‘महिलाकेँ जीवने इएह छैक कि करबैक बहुतो सम्झौता कएने इतिहास छैक !’
‘हँ माँ ! मुदा आब हमरा बुते एहन सम्झौता बर्दास्त नहि भऽ सकैत अछि !’
कनिक कालक लेल हम दुनू गोटे पूरे शान्त भऽ गेल छलहुँ । हमर तँ आँखि नीचा झुकि गेल ।
‘अमरसँ बात भेल अछि ?’ माँक आबाजसँ हमर ध्यान टुटल ।
‘हँ माँ बात भेल अछि । अमर अपन जिम्मेदारीवहन करवाक लेल एखनहुँ तैयार छथि । मुदा आब हम तैयार नहि छी । हमर आत्मसम्मानक बात सेहो अछि…एहि सत्यक संग जे अमर मीताक प्रेममे छथि । हम एकटा घरमे कोना रहि सकैत छी…।’
‘अमरक मन हमरा नहि बुझल मुदा हम आ धियापुतासभ कोना रहब ?’
‘माँ प्रेम मात्र संगे रहलाहसँ नहि होइत अछि । प्रेम विश्वास माँगैत अछि । प्रेम तऽ ई नहि जे जिनकासँ प्रेम करैत छी ओकरा लेल सोचू । ओकर खुशीमे सहभागि होइ । अपन प्रेमीक प्रेममे प्रसन्न होइ…फेर माँ एकटा बात सत्य अछि जे अमर हमरा सँ नहि मुदा हम तऽ अमरसँ प्रेम करैत छी तँए हुनकर प्रसन्नताके अपन प्रसन्नता बुझैत छी । माँ ओ कहिओ एसगर नहि हेताह । हुनका संगे मीताक प्रेमक स्मरण अछि आ हमरा संगे हमर पतिक स्मरण अछि । जाहिके संगे हम जीब लेब माँ । हमर प्रेम तऽ जाधरि जीब हमरा संगे रहत मुदा जँ हम संगे रहब माँ तऽ कुहैक कुहैक कऽ मरि जायब…।’
‘तऽ कि एकर एक मात्र याह रस्ता अछि तलाक…!’
‘तलाक कहाँ माँ ! तलाक कहाँ लऽ रहल छी । हम दुनू गोट एक संगे एकहिटा घरमे नहि रहब माँ । हुनक अपन संसार अछि तऽ हमरो अछि । हम एहिके संगे नहि रहि सकैत छी जे हमर मात्र जिम्मेदारी उठाबैत रहथु । माँ सदैरखन मन कचोटैत अछि जे हमर गलती अछि । अमरकेँ हमरासँ प्रेम नहि भेल तऽ हम असफल भेल छी माँ । हमर गलती अछि । हम अमरके गलती नहि देखि रहल छी ।’
‘कि अमरके एहि बातकेँ पश्चताप अछि अछि जे अहाँक मनके कतेक पीड़ा पहुँचेने अछि… ।’
‘हँ माँ हुनका बुझबामे आएल अछि जे किछु गलती तऽ भेल अछि मुदा आब एहिमे बहस केलासँ कि होएत ? आब ओ दिन घुरिकऽ नहि आएत । आब गलती बुझबो कयलासँ कि हेतैक ? शायद हमर एसगरपनक पीड़ाके ओ नहि बुझी सकलाह । ओ अपन मीताके स्मरणमे एतेक उलझल छलथि जे हमर एसगरपन नहि देखाइ देलकन्हि…।’
‘गलती अहाँ दुनूके नहि अछि । आइ हमरा एकहिटा बात बुझबामे आयल जे समय बदलि रहल अछि । पहिनका सन बात आब नहि रहल । आब बहुत बात विचार कयलाके बादे विवाह करवाक चाहि । गलती अभिभावकसँ सेहो होइत अछि । गलती अछि तऽ हमर सभके जे हम सभ सबटा बात बुझैत अमरके विवाह अहाँ सँ करवा देलहूँ आ ई नहि बुझि सकलहूँ जे अमर अपन जीवनमे दोसराके नहि आबए देतैक । हमर सभक गलतीकेँ सजाय अहाँके किए भेटैक ? हमर सभक गलतीके सजाय इएह हेतैक जे हम आ पूरा परिवार अमर आ अहाँके अलग अलग देखब आ कुहैक कुहैक कऽ रहब…मुदा आइ एकटा साउस अपन पुतहूँके संग देत आ जे गलती हम कएलहुँ ओकर पश्चाताप सेहो हमही करब । हमरा प्रसन्नता एहि बातक अछि जे हम अहाँक पएरक जंजीर नहि बनब, हम रोकब नहि अहाँके, अहाँक पूरा अधिकार अछि अपन जीवनपर अहाँ जेना चाही एकरा सवारि सकैत छी । रहल बात अमरकेँ तऽ अमरक अपन गलतीके सजाय अवश्य भेटत । अहाँसँ दूर भेलाक बाद ओकरा बुझवामे आओत अहाँक प्रेम !’
माँ हमर माथ पर आशीर्वादक हाथ रखैत बजलीह, ‘हे बेटी नव जीवन अहाँक बाट जोहि रहल अछि । ई भोर एकटा नव शुरुआत होयत अहाँके जिनगी के । आब सुति रहूँ । हमहूँ जायत छी ।’
साउसकेँ गेलाक बादो हमरा भरि राति निन्न नहि भेल । एहि घरसँ २५ वर्षक जे सम्बन्ध छल, ओहिना कोना टुटि सकैत अछि ।