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मैथिली कथा – फूल फूलाइए कऽ रहल





 सुजीतकुमार झा । 

इन्जनकेँ शटिङ्ग करबाक अवाज आबि रहल छल । बीच–बीचमे सिटी सेहो बाजि उठैत छल । सवारी गाड़ी आ माल गाड़ीके आबऽ–जाएके अवाज जोड़सँ सुनाइ दऽ रहल छल । हम रोबोट जकाँ इमहरसँ ओम्हर भगैत कखनो ग्यासपर पानि रखैत छलहुँ तऽ कखनो सोनूकेँ दुधक गिलास हाथमे दैत छलहुँ । बीच–बीचमे हुनको आवश्यकता पुराकऽ रहल छलहुँ । भोरक समय कोना बित जाइया पते नहि चलैत अछि । ९ बजेधरि ओहो स्टेशन चलि जाइत छथि आ सोनू सेहो स्कूलक लेल बिदा भऽ जाइत अछि । फेर हम रहि जाइत छी । आ हमर अस्त–व्यस्त भेल घर, जकरा हम फेरसँ सजाबऽ लगैत छी ।
सोनू अपन बैग पीठपर रखलक आ स्कूल चलि देलक, एम्हर ओहो हमरा बाँहिपर एकटा स्नेहिल हाथ थप–थपाकऽ चलि देला ।
रातिसँ पडि़ रहल झिसी आ बादलक कारणे ठण्ढक अनुभूति भऽ रहल छल । हम आलमारीमेसँ साल निकालि कऽ ओढि़ लेलहुँ ।
आगाँमे टेबुलपर हमरा दुनू गोटेकेँ बिबाहक पहिल वर्षगाँठक खीचल फोटो राखल छल । हम एक टक्क देखैत रहि गेलहुँ, गुलावी रंगक साड़ी पहिरने हम हुनकर कान्हपर माथ रखने छलहुँ । फोटो हम अपना हाथमे लऽ लेलहुँ । हमरा अपन अतीत अपने चारु दिस घुमैत प्रतीत भेल । माँ डाइनिङ रुमसँ कहलक, ‘पिंकी, कनि बेटी, चाह बना कऽ ला नऽ ।’
हम भानस घरमे मचियापर बैसि आलू सोहि रहल छलहुँ, बगलमे कोबीक तरकारी काटल छल, हमरा कोबीक तरकारी बहुत नीक लगैत अछि, ओकरे देखि रहल छलहुँ । माँके प्रेम भरल अवाज सूनिकऽ हमर हृदय जोड़–जोड़सँ धड़कऽ लागल ।
हमरा बूझल छल एहि समय चाहक लेल किए कहल गेल अछि । रातिएमे हम, माँ आ बाबुजीक बात सूनि लेने छलहुँ । ओहि बातक आधारपर हमरा ई पता चलि गेल छल काल्हि जखन चारि दिनक यात्रासँ बाबुजी घर अएलाह ओहि क्रममे ट्रेनमे हुनका एक नव–युवक भेटल छल जे अपने जातिक आ रोजगारमे लागल छल । ओ जयनगर स्टेशनपर सहायक स्टेशन मास्टर छल । बाबुजी हुनकर बातसँ बहुत प्रभावित भेलाह आ किछु मिनेटक यात्रामे भेल बातसँ परस्पर घूलि–मीलि गेलाक बाद बाबुजी हुनकासँ हमरा बिषयमे बात कएने छलैथि, आ ओ सहमत भेलाक बाद बाबुजी हुनका गाम जा कऽ हमर बिबाह एक प्रकारसँ तय कऽ लेने छलैथि ।
हम एम.ए. पास भऽ गेल छी, घरमे सभ हमर नोकरीक विरोधमे अछि । जहिना–जहिना हमर उमेर बढि़ रहल अछि, माँ आ बाबुजीक चिन्ता सेहो तारक गाछ जकाँ बढि़ रहल अछि । घरमे दान–दहेज देबाक लेल बुहत बेसी किछु नहि अछि, तैयो ओ अपन बेटीक लेल उपयुक्त बरक खोजीमे छलाह । कतेको लोक हमरा देखऽ आएल, मुदा तिलकक अभाव आ फेर हमर पिरसियाम रंगक कारण बातचित बढि़ए नहि रहल छल । एहि सभ बीच हमर अपन छोट सन सुन्दर घरक कल्पना टुटैत बुझा रहल छल ।
बाबुजीक बताओल बातक आधारपर हमरा मनमे एहि युवकके छवि बनिकऽ आबि रहल छल, हृदय जोड़सँ धड़ैक रहल छल । धड़कैत हृदयसँ चाह बनाकऽ ओढ़नी ठीक करैत डाइनिङ रुममे चलि गेलहुँ । बाबुजी आ माँ बहुत खुशी देखाइ दऽ रहल छल । माँ ओहि युवकक सम्बन्धमे जानकारी देलैन्हि ।
हमरा लागल जेना बहुत दिनक पतझरकेँ बाद बहार आबि गेल अछि । चारु दिस गाछ सभपर हरियर कनोजरि पूmटि गेल अछि ।
अपन भावनामे हम स्वयं बहैत जा रहल छलहुँ, ओहि युवकके फोटो सेहो हमरा देखाओल गेल । देखि कऽ दंग रहि गेलहुँ अनायासे मुँहसँ खसि पड़ल अबेरेसँ किए नहि हुअए मुदा, मोन जोगर जीवन संगी भेट रहल अछि ।
शायद एतेक सुन्दर पढ़ल–लीखल युवकसँ हमर संसार बसऽ बला छल तँए एखनधरि हमर हिसाब किताब नहि बैसल छल । फोटो हाथमे लऽ हम इएह सभ सोचि रहल छलहुँ ।
‘चट् मङनी पट बिवाह’ बला बात भेल । एतेक बढियाँ लड़का कहीं हाथसँ नहि निकलि जाए से सोचि बाबुजी एक महिना भितरे बिबाह दुरागमन कऽ देलैन्हि ।
लड़काक बाबु नहि छल माँ गामेमे रहैत छलीह । अगहन महिना जाढ़ शुरुए भऽ रहल छल जाहिपर मन पसिनक जीवन संगी संग हमर कल्पनाक चिड़ै आकाशमे स्वच्छन्द उड़ऽ लागल । चारि दिन सासुरमे रहलाक बाद जयनगर स्टेशनक लेल बिदा भऽ गेलहुँ । ओहि स्थानक लेल हम तऽ ओहिना बहुत उत्सुक छलहुँ । पतिक व्यवहार सेहो बहुत बढियाँ छल । हुनक हँसमुखक मुखाकृतिकँे अएना जकाँ देखैत छलहुँ । एक दोसरसँ बातचित करैत कखन जयनगर स्टेशन आबि गेल पते नहि चलल ।
‘पिंकी, स्टेशन आबि गेल ।’ हुनकर अबाज सुनाइ देलक, हम एकदम चौककऽ जल्दीसँ उठि अपन माथ झाँपऽ लगलहुँ । कनेक लाजो हुअए जे पतिक नोकरी बला स्थानपर पहिल बेर अएलहुँ अछि । फेर जल्दी–जल्दी हुनकर पाछा चलऽ लगलहुँ । ओ बैग हाथमे लऽ आगाँ–आगाँ जारहल छलाह । हम सोचि रहल छलहुँ स्टेशनपर हुनकर चिन्हा–परिचयके दू–तीन गोटे मित्र हमरा अवश्य लेबऽ आओत, कारण ओ कहने छलैथि जे एतेक जल्दीमे बिबाह भेल की ककरो अएबाक सम्भव नहि भेल । मुदा आश्चर्य तऽ तखन लागल जखन केओ देखाइ नहि देलक । हम असगरे समान सभ लऽ हुनकर पाछाँ चलि रहल छलहुँ । जयनगर स्टेशनसँ किछुए दूरपर किछु क्वाटर सभ बनल छल । एकके बाद एक क्वाटर पाछा छूटि रहल छल हमरा बुझऽमे किछु नहि आबि रहल छल । अन्ततः एकटा छोटका क्वाटरक आगा पहुँचकऽ ओ गेटक ताला खोललैन्हि । छोट रुम ओहिसँ सटले एकटा भानस घर आ पाछूमे बाथरुम छल । भानस घरमे आठ दशटा बरतन आ कनि–मनि डिब्बा राखल छल । एकटा पुरान पेटी सेहो छल ।
ई की ? हम अबाक भऽ हुनका दिस ताकऽ लगलहुँ । ई सभ हमरा अपने आपमे अप्रत्याशित आ अजीव लागल ।
‘एना की देखि रहल छी ? एखन क्वाटर नहि भेटल अछि, तँए एहिमे रहि रहल छी । जहिना क्वाटर भेटत बदलि लेब,’ ओ बातकेँ आगा बढ़बैत कहलैन्हि, ‘ओना एखनधरि असगरे छलहुँ किए बड़का घर लितहुँ । आब अहाँ आबि गेल छी तऽ बड़का घरक कोशिश करब ।’ ओ लग आबिकऽ हमरा बाहिपर हाथ थप–थपा खुशीकऽ देलैन्हि ।
एक–दू दिनक बाद ओ अपन काजपर सेहो जाए लगलैथि आ हम असगरे रहऽ लगलहुँ । धीरे–धीरे लग पासक महिला सभ हमरा लग आबऽ लगलीह । एक दिन चालीस–पैतालीस बर्षक एकटा महिला हमरा घर लगसँ जाइत काल देखिकऽ टोकि देलीह । भेष–भुषा आ बातचितसँ पता चलल ओ एतऽके स्टेशन मास्टरक कनियाँ छथि । एखनधरि जतेक महिला अबैत छलीह, पारस्परिक बिचारधारा आ स्तरमे समान्य लगलाक कारण किछु जमि नहि रहल छल । ई सोचिकऽ जखन स्टेशन मास्टरक कनियाँ अछि तऽ बातचितमे आनन्द आओत, हम हुनका आदरसँ घरमे अनलहुँ आ खूलि कऽ बातचित करऽ लगलहुँ ।
‘लगैत अछि, अहाँ बहुत पढ़ल–लीखल छी ?’ एका एक ओ पुछलैन्हि ।
‘हँ हम एमए पास छी,’ हम गर्वसँ कहलहुँ ।
‘अहाँकेँ बूझल अछि, अहाँक पति एतऽ की करैत छथि?’ ओ गम्भीरतासँ पुछलीह ।
‘हँ, एतऽ ओ सहायक स्टेशन मास्टर छथि ।’ हम ओही गर्वसँ उत्तर देलहुँ ।
‘ई अहाँसँ के कहलक अछि ?’ ओ फेरसँ प्रश्न कएलीह ।
‘ओहे हमरा आ हमर नैहरक लोककेँ कहने छलैथि ।’ हम आब सतर्क भऽ गेल छलहुँ आ संगहि आश्चर्य सेहो भऽ रहल छल की कतहु गरबर तऽ नहि छैक ।
‘तऽ आब सुनू, अहाँक संग धोखा भेल अछि । ई जगदिश एहि स्टेशनक पैटम्यान अछि ।’ ओ एक–एक शब्दपर जोड़ दैत कहलैन्हि ।
हमर माथ घुमऽ लागल एखनधरि हमरा सन्दर्भमे जतेक घटना घटि रहल छल, ओ हमरा अप्रत्याशित लागि रहल छल, ई नया बात सूनि हम स्तब्ध भऽ गेल छलहुँ । ई तऽ हम कल्पनोमे नहि सोचि सकैत छलहुँ । हम ओ महिलाके मुँह दिस देखि रहल छलहुँ । हमर मोन एखनो अपन प्रियतमक लेल ई बात मानऽके लेल तैयार नहि छल ।
शायद ओ हमर मोनक बात बूझिगेल छलीह । दू मिनेटक चुप्पिक बाद हमरा कान्हपर हाथ रखैत कहलैन्हि, ‘एना लगैत अछि अहाँकँे हमरा बातक बिश्वास नहि भऽ रहल अछि । हम अहाँकेँ धोखामे राखऽ नहि चाहैत छी, तँए काल्हि भोेर दश बजे अहाँ हमर घर चलि आउ ओ तरकारी लऽ कऽ आओत । हमरा घरक तरकारी उएह अनैत अछि ।
तखन अहाँकँे सभ सत्य पता चलि जाएत । ई कहि ओ तऽ चलि गेलीह, मुदा हमर मस्तिष्कमे एकटा बबण्डर उठल छल ।
हम ओहि ठाम बैसल आँखिसँ दूर शुन्यमे किछु देखऽ लगलहुँ । हमरा एहि सभपर विश्वासे नहि भऽ रहल छल । मुदा बेर–बेर एकटा बात घूमि रहल छल ओ अपरिचित महिलाके हमरासँ एहन भूmठ बाजबाक आवश्यकता किए
पड़लै !
मोन कहलक, ‘पहिने सही बात पता लगाली, फेर हुनकासँ किछु कही’ ई सोचिकऽ ओहि दिन हम चुप रहलहुँ ।
दोसर दिन भोरे दश बजे हुनका गेलाक बाद स्वयं तैयार भऽ कऽ छोटका क्वाटर छोडि़ बड़का क्वाटर दिस बढि़ गेलहुँ ।
‘आउ, बैसू ।’ स्टेशन मास्टरक कनियाँ बहुत स्नेहसँ हमरा अपना लग बैसा लेलैन्हि । हम दुनू गोटे आपसमे बातचित कऽ रहल छलहुँ कि ओ तखने आबि गेलाह । वास्तवमे तरकारीक बड़का झोड़ा नेने घामसँ तऽर भेल पहुँचलैथि ।
जहिना हम दुनू एक–दोसरकँे देखलहुँ, ओहो स्तब्ध रहि गेलाह, किछु देरक लेल ओ ठकमुड़ी लागल ओतहि ठाढ़ रहि गेलाह । फेर मनकेँ शान्त करैत ओ जल्दीसँ बाँकी पैसा स्टेशन मास्टरक कनियाँकेँ पकड़ा कमानसँ छूटल तीर जेकाँ भागि गेलाह ।
आब सभ स्थिति हमरा आगाँ स्पष्ट भऽ गेल छल । हम लजाइत जल्दीसँ घर आबि केवार बन्द कऽ चौकी पर उल्टा सूति हिचैक–हिचैककऽ कानऽ लगलहुँ । एते पैघ धोखा खाएबाक लेल भरि संसारमे हमही रहि गेल छलहुँ । चौबीस बर्षक बाद एकटा छोटका फुलवारी चाहलहुँ ओहो काँटे–काँटसँ भरल भेटल ।
हमरा हुनकापर बहुत तामस आबि रहल छल । ओ बढि़याँ कपड़ा पहिर, अपनाके स्मार्ट बनल देखाकऽ हमरा बाबुजीकेँ धोखा देलैन्हि जे हम सहायक स्टेशन मास्टर छी, जखन की छथि एकटा पैटम्यान ।
जीवनक उल्लास शुरु भेलो नहि छल कि समाप्त सन प्रतीत होबऽ लागल । हम सोचि रहल छलहुँ, ‘नैहरमे, कुटमैतामे, सङीमे कोना मुँह देखाएब । सभ हमरापर हँसत जे पैटम्यानसँ बिबाह कएने अछि । माँ बाबुजी सेहो भाग्यकेँ लऽ कऽ आजीवन कनैत रहताह ।’
हमरा दिमागमे रंग–विरंगक बिचार आबि रहल छल । हम दिन भरि किछु नहि खेलहुँ आ नहि कोनो काज कएलहुँ । जखन ओ ६ बजे अएलाह तखने हम चौकीपरसँ उठि हुनका खुब बात कहलहुँ ।
‘अहाँ हमरा धोखा किए देलहुँ ? हमर जीवन किए वर्वाद कएलहुँ ? एकटा एम.ए.पास लड़कीकेँ कनियाँ बनाकऽ किए अनलहुँ’ हम हुनकापर एकदम बरसि रहल छलहुँ ।
ओ एक दम शान्त भऽ हमरा दिस देखैत बजलाह, ‘नहि पिंकी, एहन बात नहि अछि । हमरा मोनमे कोनो धोखा देबाक बात नहि छल, हम अहाँसँ पे्रम करैत छी आ करैत रहब …..’
बात काटि कऽ हम तेजीसँ हुनका लग आबि कऽ चिकरिकऽ कहलहुँ, ‘पे्रमक एतऽ प्रश्ने की अछि ? अहाँ अपन औकात तऽ देखू एकटा पैटम्यान भऽकऽ अहाँ हमरा सन लडकीसँ विवाह कएलहुँ आ आब कहैत छी धोखा नहि देलहुँ अछि । हम अहाँ सँग नहि रहि सकैत छी ।’
‘सुनू पिंकी हम अहाँकेँ कोनो बातक लेल जोड़ नहि देब मुदा हम साँच कहैत छी, हम एस.एल.सी. धरि पढ़ल छी, आगाँ पढ़बाक हमर बहुत इच्छा छल मुदा बाबुजीक आकस्मिक मृत्यु आ धनाभावक कारणे हमर पढ़ाइ रुकि गेल । एस.एल.सी. कएलाक बाद कतहुँ नोकरी नहि भेटल । अन्तमे एहिठाम काज करऽ लगलहुँ ।’ ओ गर बाझल स्वरमे कहि रहल छलैथि ।
‘हमरा ई सभ नहि सुनबाक अछि आ नहि अहाँके मजबुरीमे हमरा कोनो रुचि अछि । हम आब एतऽ एक्को क्षण नहि रुकि सकैत छी । काल्हि भोरे गाड़ीसँ चलि जाएब ।’
‘हम अहाँकेँ रोकब नहि आ नहि अहाँकेँ रोकबाक अधिकार अछि । हम अपन गल्ती स्वीकार करैत छी, मुदा एकटा बात धैर्य धऽकऽ सुनू पिंकी, हम ई सोचिकऽ विवाह कएने छलहुँ जे अहाँके हिम्मत पाबिकऽ आगाके पढाइ पूरा करब । हम जे सपना देखने छी, ओ एहि जीवनमे पुरा करब । मुदा अहाँ नहि चाहैत छी तऽ अहाँकेँ इच्छा ।’ ओ हमरा कान्हपर हाथ राखबाक प्रयास कएलैन्हि । मुदा ओहि समय हम एक घाहिल शेरनी जकाँ तमसायल छलहुँ । हम हुनकर हात जोड़सँ झटैक देलहुँ आ बिना हुनका देखने रुमकेँ भितरसँ बन्दकऽ पडि़ रहलहुँ ।
ओहि राति निन्न हमरासँ कोशो दूर छल । बाहरक पदचापसँ हमरा अभास भऽ रहल छल ओ बरण्डेमे एमहर–ओमहर टहैल रहल छलाह । बहुत देरधरि हम आवेशमे किछु नहि किछु सोचैत रहलहुँ ।
बहुत देरक बाद जखन मोनक बिहारि कनिक कम भेल तखन बिचार करऽ लगलहुँ, काल्हि हमरा जएबाक अछि । मुदा जाएब कतऽ ? बाबुजी लग ? मुदा ओ घर तऽ हम छोडि़ आएल छी । आब की ओहने आदर हमरा फेर भेटत ? सभ बातक जानकारी देलाक बाद बाबुजी उल्टे तमसेता । हुनकर स्वास्थ्य आओर खराब भऽ जाएत । माँकेँ तऽ ओहिना ब्लड प्रेसर अछि, ओ कहुँ बेहोश भऽ गेल तऽ ? ओना तऽ हमरा सहानुभूति भेटत, मुदा कहियाधरि ? धीरे–धीरे सभ समान्य भऽ जाएत । मुदा हमरा के अपनाओत ? हमरा भविष्यपर परित्यक्ताक छाप तऽ लागिए जाएत ।
‘पड़ोसी, संङी, सर–कुटुम्ब जे सुनत, हमरा मुँहपर सान्तवना देत, मुदा पीठ पाछू हमर मजाक उड़ाओत । एतऽसँ गेलाक बाद जे भविष्य हम बनाबऽ चाहैत छी की ओ सम्भव हएत ? भावावेशमे कोनो डेग उठएबासँ पहिने हमरा ई बढियाँ जकाँ सोचि लेबाक चाही जे आगाँ टूटल जीवनकेँ जोडि़ सकत वा नहि ?
‘हुनका बदनाम कएलासँ की हमर बदनामी नहि हएत ? जिनका संग सुख–दःुख निर्वाह करबाक वचन लेने छलहुँ, यदि ओ गल्तीए कएने छथि तऽ की हम हुनका छोडि़ चलि जाइ ? जँ नइँ तऽ हम की करु ?’ हमर पढ़ाइ आ विवेक काज कएलक ! हमरा धीरे–धीरे एना लागऽ लागल, ‘हमरा ई घर नहि छोड़बाक चाही । आब तऽ हमरा अपन एहि काँटसँ भरल वाटिकाकेँ कोशिश कऽकऽ पूmलसँ भरल बनएबाक चाही । चिड़ै जखन खोंता बनबैत अछि तऽ खढ़–पतारसभ निच्चा खसैत रहैत अछि मुदा ओ कहियो हिम्मत नहि हारैत अछि । अपन खोंता अपना अनुकूल बनबैत अछि । हम तऽ पढ़ल–लिखल महिला छी । ओ कहि रहल छथि तऽ शायद ओहो ठीक होथि । सम्भव अछि अपन साधना अधुरा रहलाक कारण आब हमरा माध्यमसँ पूरा करऽ चाहैत होथि, हम तऽ हुनकर अर्धांगिनी छी । महिला तऽ शक्ति होति अछि, पुरुषकेँ पौरुष स्त्रीसँ पूरा होइत अछि ।
‘हमरा एखन हिम्मत नहि हारबाक चाही । जखन एहि घरमे आबिए गेल छी तऽ एहि घरकेँ अपना अनुकूल सजएवाक प्रयत्न करब ।’
भरिे राति इएह सोचऽमे निकलि गेल । जखन सूतिकऽ उठलहुँ तऽ उज्जर किरण जँका हमर मन सेहो साफ भऽ गेल छल ।
ओ धुनक धनी छलाह ।ओ अपन पढाइ फेरसँ शुरु कएलैन्हि । हमहुँ बोर्डिङ्ग स्कुल पकडि़ लेलहुँ । दुनूगोटाक त्याग–तपस्या आ साहस वास्तवमे रंग लओलक, ओ सात सालमे एम.ए.कऽ लेलैन्हि आ ठीके सहायक स्टेशन मास्टर बनि गेलाह । हमर सभक पूmलवारीमे एकटा पूmल सोनू सेहो चलि आएल । आब हम नोकरी छोडि़ देने छी ।
कतहु दूरसँ आबि रहल सीटीक आवाजसँ हमर ध्यान भंग भेल । हम फोटो टेबुलपर राखि देलहुँ आ खिड़कीसँ बाहर दिस तकलहुँ ….कतहु दूर रेलक पटरीकेँ दुनू कोर एक–दोसरसँ मिलैत नजरि आबि रहल छल ।