♦धीरेन्द्र कुमार झा ‘धीरेन्द्र’
ईश्वरक ई कृपा सभमे छै मधु कला बहु कलात्मक रचल गेल सृष्टि कला ॥
चान चमकय गगनमे प्रकृति छै ओकर शैत्य किरिनक प्रसारब थिकै शशिकला ॥
भानु उगि कें उजारय तिमिरतोमकें जग प्रकाशित करब छै नियति रविकला ॥
पाइन भापो बनय पुनि बनै पाइन अछि जगकें पटबैछ ,भल जलके अनुपम कला ॥
नित बहब सृष्टि मे संचरब हरघड़ी प्राणरक्षक पवनके अपन शुभकला ॥
भार सदिखन बहब लोक गंजन सहब नित बचा सृष्टि राखब धराके कला ॥
सत्वरजतममढल माया मोहित जगत जाहि गुण जे प्रभावित से देखबय कला ॥
सबसं बडका कलाकार अखिलेश छथि कर्म अनुसार सबहक देखाबथि कला ॥
पंचभूतहिं सुनिर्मित हरिक जग सृजन कवि धीरेन्द्रो अचंभित लखय हरिकला ॥
– दिल्ली