मैथिली कथा – हेराएल सपना





 सुजीत कुमार झा
उमेर भलेहि पचपन के किए नहि हुए, बचपन आ यौवन हरेक समय स्मरण अबैत अछि । विद्या पचपनकेँ तँ नहि, हँ चालिसकेँ अवश्य छलीह । हुनका पते नहि चलि सकल जे कहिआ हुनक उमेर तइसक स्थानसँ फिसलि कऽ वा कही छरपि कऽ चालिसक सीढ़ीधरि आबि कऽ ठाड़ भऽ गेल अछि । चेहरा मोहरा उमेरक हिसाबसँ एखनो बहुत सुन्दर छल वा ई कहल जाए जे विद्याक त्वचासँ हुनक उमेरक पता नहि चलैत अछि ।
ओ क्याम्पसक लेल तैयार भऽ रहल छलीह । पढ़एकेँ लेल नहि, पढ़ावए लेल । केशमे कंगही करैत ओे स्वयंकेँआइनामे देखि आ मुग्ध भऽ गेलीह– दूटा बड़का–बड़का सुन्दरसन आँखि, छोटसन नुकीली नाक, हँसिते गालपर पड़ैत खधियाजकाँ, डाँडधरि पहुँंचैत कारी घनघर केशक चोटी, सामान्यसन लम्बाइ । औसतसँ कतहुँ बेसीए सुन्दर छलीह विद्या । ओ बहुत प्रयाससँ अपन सुन्दरताकेँ सजाकऽ सेहो रखने छलीह । नियमित योग, उसनल भोजन, सलाद आ एंटी एजिंग क्रीमसँ ओ अपन सही उमेरसँ बहुत छोटी लगैत छलीह । कनपटी लगक किछु उज्जर केशकेँ ओ नियमित रंग करैत छलीह ।
मुदा इम्हर बितल किछु समयसँ हुनक मनमे एकाकीपन घर करए लागल छल । ओहि समय जखन माए–बाबूजी दुनू रहथि, तखन हुनक विवाहकेँ कतेक जतन कएल गेल छल । वैवाहिक विज्ञापनसँ लऽ कऽ करकुटुम्भक हरेक विवाह योग्य लड़कासँ हुनक बात चलैत, मुदा कतहुँं बैनिए नहि पबैत छल । कारण मात्र एतेक छल जे ओहि समय विद्या बहुत महत्वाकांक्षी भेल करैत छलीह, मानू आकाशकेँ मुट्ठीमे भैरि लेबए चाहैत होइथ ।
ओ आकाशकेँ छूबिओ लैतथि मुदा सही दिशामे उडि़तथि । मात्र दिशा गलत भऽ गेल । एमए करिते हुनका टेलिभिजनमे उदघोषिका बनएकेँ अवसर भेटल आ ओ एकरा लपकि लेलन्हि । रिसर्चक मोट–मोट किताबमे माथ खपावएकेँ बदला विद्याके टेलिभिजनपर अपन चमकैत चेहरा देखब आ देखाएब बढि़या लगैत अछि । सौम्यसँ मेकअपमे चटख रंगक सूती आ सिल्कक साड़ी पहिरने हुनक चेहरा जखन टीवी स्क्रीनपर चमकैत अछि, तखन सभक मुँह खुजले रहि जाइत अछि ।
फेर उएह टेलिभिजनक एकाध सिरियलक नायिका बनल विद्या स्वयंपर इतराए लगैत छलीह । अवसरक एकटा मौसम होइत अछि आ विद्याक लग ई पूरे मौसम एक संगहि आबि गेल रहन्हि । तखने हुनक लेखनक आदत लागल आ एकटा प्रतिष्ठित पत्रिकामे चटपट हुनक लिखल एकटा कथा प्रकाशित सेहो भऽ गेल । विद्याक नाम युवा साहित्यकारमे शामिल सेहो भऽ गेल । ई बात आओर रहल जे बादमे ओ एकटा कथासँ दोसर कथा नहि लिख सकलीह ।
ओही समय शेखर हुनक हृदयपर प्रवेश कएने रहथि । ओ मेधावी युवक प्रतियोगी परीक्षाक तैयारी कऽ रहल छलथि । आकर्षक व्यक्तित्व आ गहिर आवाज भेलाक कारण हुनका टेलिभिजनमे एंकरिंग करएकेँ आ कहिओकाल टेलिसिरियलमे अभिनय करएकेँ अवसर भेट जाइत छल । विद्याकेँ ओ मजाकसँ नव नाम दऽ देने रहथि ‘मिस बी ।’
विद्या एकबेर शेखरक घर गेल छलीह । शहरसँ कटल एकटा टोलमे हुनक छोटसन घर । कुल मिला कऽ एकटा रुम, किचन आ आँगन ।
आँगनमे लागल हैंडपम्प देखि कऽ विद्या बिहुँसल छलीह । घर बाहरसँ बहुत रंगल पोतल छल । मुदा भीतरसँ हुनक घर देखि कऽ विद्याकेँ अपन परिवारक स्टैण्डर्ड स्मरण आएल । शेखर बिना कहने हुनक मन पढि़ लेने छलथि । शीघ्र बजला, ‘मिस बी, बगलमे एतेक बेसी जमीन खाली पड़ल अछि । ओतए एकटा रुम आओर बना लेब तँ केहन रहत ? दूटा रुमसँ बेसीकेँ आवश्यकता कि हएत ? बात सहीमे ई अछि जे‘’ ओ हकला गेल छलाह, ‘हम कहि रहल छी जे एहि घरक नेओ हमर बाबूजी रखने रहथि । हुनका तँ एहि घरमे रहएकेँ सुख नहि भेट सकल, मुदा माए किछु समयधरि एतए रहल छलीह । एकटा आश्चर्यजनकसन मोह अछि एहि घरसँ हमर, एहिकारणेँ एहि घरकेँ छोड़एकेँ मने नहि करैत अछि ।’
विद्या असमंजसमे छलीह । फेर शेखरकेँ कोनो स्थायी नोकरी सेहो नहि छल । ओे फिर्ता घूरि अएलीह । टेलिभिजन, साहित्य आ ग्लैमरक चकाचौंध भरल मायावी संसारमे एकबेर फेर आकंठ डूबए लगलीह । एहि बीच शेखरक टिभिक अफिसमे आएब करिब–करिब बन्द भऽ गेल । पता चललन्हि हुनका बढि़या सरकारी नोकरी लागि गेल अछि ।
तखन स्थिति, परिस्थिति किछु एहि तरहे बदलल जे सभ किुछ गड़बड़ भऽ गेल । अचानक विद्याक बाबूजी स्वर्गीय भऽ गेलाह आ भायकेँ एकटा बढि़या नोकरी भेलाक बाद ओ विदेश चलि गेल । जल्दी–जल्दी भेटल एहि एकाकीपन आ दुःखसँ बेहाल भेल माय, विद्याक विवाहक बारेमे सोचवए छोडि़ देलीह । विद्याक उमेरक सखी बहिनपा, सहपाठिनी विवाह कऽ कऽ अपन घर गृहस्थीमे मगन भऽ गेलीह । हुनका पता नहि चलल जे कहिआ हुनक उमेरक मूल्यवान बर्ष हुनक मुट्ठीसँ फिसलैत चलि गेल, खिसकैत चलि गेल ।

टेलिभिजनमे आब हुनका काम कम भेटए लागल छल । ओतए नव–नव उदघोषिका आबि गेल छलीह । तनक लावण्यकेँ तँ ओ कोना नहि कोना पकडि़ कऽ रखने छलथि, मुदा हुनक मन जानैत छल जे उमेरक एहि पड़ावपर ओ असगरे ठाड़ छलीह । फेर माएकेँ नहि रहलापर हुनक घर आ जीवन दुनू आओर सेहो सुनसान आ वीरान भऽ गेल छल ।
बितल दू अढ़ाइ बर्षसँ हुनका लग कोनो काज नहि छल । ओ तँ धन्यवाद दी मिठीके जे हुनका एहि क्याम्पसक पता बता कऽ कहलन्हि जे ओतए हुनका नौकरी भेट सकैत अछि । मिठी हुनक विद्यालयक सखी छलीह । विद्याकेँ पैसाकेँ दिक्कत नहि छल, मुदा हुनका लागल जे हुनक बोरियत भरल, व्यर्थ होइत समयसँ हुनका छुटकारा भेटिरहल अछि । आब हुनक कुन्ठित आ अकर्मण्य जीवनकेँ फेरसँ एकटा गतिशीलता भेटत ।
एहि समय ओ अपन विवाहक बारेमे सेहो सोचए लागल छथि । हुनक जीवन कतेक एकाकी छल, उएह जानि रहल छलीह । हुनक मन होइत छल जे ओ कोनो छोट जानपर अपन ममता लुटबैथि । ओ दिन, गते बिसरि जाइत आ दुःखी होइत छलीह । विवाहक लेल मैट्रिमोनियल साइट्स आ डेटिंग ऐपक सम्बन्ध हुनका नहि बुझएमे आबि रहल छल । एहि उमेरमे जीवन नव सिरासँ कोना शुरू कएल जाए, ओ नहि सोचि पाबि रहल छलीह ।
अही समयमे हुनका स्मरण आएल –शेखर । कतए खोजी करए जाएब हुनका ? आइसँ किछु बर्ष पूर्वधरि स्मार्ट फोन कमे लोक लग होइत छल । हँ, ओहि समय ओ डायरी लिखल करैत छलीह । विद्या खोजए लगलीह । अलमिरामे, पेटीमे, गद्दाक नीचा । कतहुँं रद्दीमे तँ नहि बेच देलहुँ ? मुदा अंततः ओ डायरी हुनका भेटिए गेल ।
डायरी खोलिते बितल बहुत किछु हुनका स्मरण आबि गेल । शेखर कहल करैत छलीह, ‘जखन अहाँ बजाएब, हम बाँहि पसारने आबि जाएब अहाँकेँ समेटए । हमरा अहीक संग बूढ़ होएबाक अछि, मिस बी ।’ तँ की आइओ शेखरकेँ हुनक प्रतीक्षा हएत ? हृदयमे एकटा हुमक हूकसन उठलन्हि । अचानक डायरीक एकटा पन्नाक कोनापर लिखल शेखरक पता हुनका भेटिए गेल ।
टेक्सी लऽ कऽ ओ उएह पुरान पतापर शेखरकेँे खोजबाक लेल निकलि पड़लीह । ओहि पताकेँ खोजैत ओ पाछाँ छूटैत दोकान, बाट, व्यक्ति, बस आ कारकेँ देखैत जा रहल छलीह । ओहि एरियामे एकटा पूरा शहर बैसि गेल छल । विद्याकेँ मात्र एतेक स्मरण छलन्हि जे शेखरक घरक आगाँ एकटा महादेव मन्दिर छल । फेर उएह परिचित मोड़पर ओ टेक्सी रुकवौलन्हि । पता तँ इएह छल, मुदा एतेक बर्षमे ओहिठाम बड़का घर बैनि गेल छल । रंगरोगन कएल, चमकैत एकदम नव । पोर्टिकोमे कार लागल छल । बसंत ऋतुक समय छल आ घरक क्यारीमे गुलाबी, पीयर, अकाशी फूल माथ उठा कऽ बिहुँस रहल छल । एकबेर हुनक मन भेल जे ओ चुपकेसँ घूरि जाइ । कि पता शेखर भेटथि वा नहि ? फेर सोचलीह जे एकटा पुरान परिचितक नातासँ भेटिए सकैत छथि । घण्टी बजबितए द्वार खुजि गेल । हँ, ओ उएह रहथि– शेखर । उमेरक परिपक्वता चेहरापर रहन्हि । भरल केशमे उज्जरपन झलकि आएल छल । बड़का– बड़का आँखिपर चश्मा चढि़ गेल छल ।
‘मिस बी, आखिर अहाँ आबिए गेलहुँं,’’ शेखरकेँ चेहरापर पुरान मजाक छल । विद्या भीतर आबि गेलीह । सोफापर बैसैत ओ एकबेर चारुदिस दृष्टि दौड़ेलीह । साफ सुथर, आकर्षक ढंगसँ सजल, व्यवस्थित बैठक । नीचा बिछायल सुन्दर कालीन, देवालपर लागल कलात्मक पेंटिंग्स, सुरुचि आ सम्पन्नता दर्शा रहल छल । टेलीफोन, कम्प्यूटर, कार्नरक गमलामे लागल गमकैत असली फूल, सभ किछु परफेक्ट । परदाक पार देखएकेँ प्रयासमे ओ खोजि रहल छलीह, कोनो स्त्री, कोनो बच्चा, शेखरक परिवार । मुदा भीतरधरि शान्त छल ।
‘की देखि रहल छी बी ? हम आइधरि असगरे छी,’ शेखरक स्वर भीजलसन छल, ‘अहाँ प्रति एतेक गहरा आसक्ति छल जे फेर हमर मन कतहुँ दोसर लग जुडि़ए नहि पाएल । मुदा अहाँक मनक थाह नहि भेट सकल हमरा ।’
विद्या चुप छलीह । हुनक धड़कन क्षणभरिक लेल बढि़ गेल छल ।
‘हमरा बुझल छल जे एकदिन हमर प्रेम अहाँकेँ हमरा लग खीचिए लाएत ।’ शेखरक गम्भीर स्वर सुनि कऽ विद्याक आँखिमे नोर भरि गेल । अपन नोर झुठलावए लेल ओ अपन चेहरा नीचा झुका लेलन्हि । ओ घबरा रहल छलीह जे कतहुँं हुनक नोर टपकए नहि लागि जाए ।
‘मिस बी, स्मरण अछि ने हम कहने छलहुँ जे हमरा अहीकेँे संग बूढ़ होएबाक अछि,’ शेखरकेँ सौम्य चेहरापर एकटा सुन्दर हंसी चलि आएल वा कही खील गेल ।
‘विल यू मैरी मी, मिस बी ? एखन बहुत अबेर तँ नहि भेल अछि ?’ ओ अपन बाँहि फैला देलन्हि । विद्याकेँ लागल हुनक सपना टूटल नहि अछि, मात्र हेरा गेल छल । आइ भेटल अछि । ओ हँसएकेँ प्रयास कऽ रहल छलीह ताबैत शेखर हुनका अपन बाँहिमे समेट लेलन्हि ।
विद्या हुनक कन्हाक सहारा लऽ कऽ अपन माथ हुनकापर टिका देलन्हि । शेखरक प्रेम भरल स्पर्श हुनक तन मनमेँ थपकि गेल । एकटा छोटसन सुख जीवनकेँ कतेक बान्हि लैत अछि, ओ सोचलन्हि । हुनका लागल एखनधरि तँ अधूरा छलीह ओ । आइ एहि बाँहिमे आबि कऽ पूरा भऽ गेलीह । दूर कतहुँ मन्दिरक घण्टी बाजि रहल छल– टन टन, टन..टन ।