♦ हरिमोहन झा
बबुआनीजी मोसम्मातिक एक मात्र कन्या छलथिन्ह । तेहन दुलरुआ बेटी जे बारह वर्ष धरि खबासक कान्हे पर चलथिन्ह । दूध मे छाल्ही कम बूझि पड़ैन्ह त भरलो बट्टा उनटा देथिन्ह ।
चौदहम वर्ष पार करैत–करैत बबुआनीजी तेहन विशाल भऽ गेलैन्ह जे शरीरक भार सम्हारब कठिन भऽ गेलैन्ह । तखन मोसम्माति कैं एकटा जमायक प्रयोजन बुझि पड़लैन्ह । एहन दुलरुआ बेटी कैं आँखिक ओझर कोना होमय दितथि ? अतएव तेहन जमायक तलाश होमय लागल जे बबुआनीजीक दबाब तर रहि सकथि ।
दू टा वस्तु चोरैबा मे दोष नहिं होइत छैक – शालग्राम और पंजीबद्ध वर । अतएव मोसम्माति चुल्हाइ झा कैं चोरबा मङौलन्हि । ओ नकटू झा पाँजि छलाह । सम्पतिक नाम पर घर मे केवल चानन–चन्द्रौटा छलैन्ह । मुग्धबोध व्याकरण पढैत छलाह , किन्तु साधनक अभाव सककं परीक्षा नहि दय सकैत छलाह । मोसम्माति कैं आज्ञाकारी जमाय भेटि गेलथिन्ह ।
एक मास धरि त जमायक खूब आदर–सत्कार भेलैन्ह । विखजी मे गुलाबजामुनो देल जाइन्ह त सोहि कऽ, जे कतहु ओझाक कंठ मे नहि गड़ैन्ह । भोरे आँखि में काजर कऽ देल जाइन्ह जे ओझा कैं नजरि–गुजरि नहिं लगैन्ह । पनबट्टा सदिखन संगे चलैन्ह । पैखाना में लोटाक संगे पंखो धऽ देल जाइन्ह ।
परन्तु तदनन्तर कृष्णपक्षक चन्द्रमा जकाँ चुल्हाइ झाक सम्मान जे घटय लगलैन्ह से घटैत–घटैत अमावस्या पर पहुँचि गेलैन्ह ।
आब छौ मास बादक वृत्तान्त सुनू । जे ओझा बादामक हलुआ खा कऽ दूध पिबैत छलाह से आब बदामक फुटहा खा कऽ पानि पीबय लगलाह । जनिका भोजन करैत काल गीत होइ छलैन्ह तनिका नदियो करैत काल गंजन होमय लगलैन्ह । जे पहिने ’मान्य जन’ छलाह से शनैः शनैः केवल ’जन’ मात्र रहि गेलाह ।
चुल्हाइ झा अन्यान्य नौकर–चाकरक देखादेखी सासुर कैं ’डेउढी’, मोसम्माति कैं ’मलकीनीजी’ और अपना स्त्री कैं ’बबुआनीजी’ कहैत छलाह।
’मलकीनीजी’क दरबार मे ’दमाद साहेब’क दिन–दिन तरक्किए भेल गेलैन्ह। पहिने खेत–पथार जाय लहलाह। तदनन्तर जन–बनिहारक खाएको अङपोछा मे बान्हि कऽ लऽ जाय लगलथिन्ह। अन्त मे ओझाजी बोझो बान्हय लागि गेलाह।
चुल्हाइ झाक जगह–जमीन भरना पड़ल छलैन्ह। तकरा छोड़ाबक हेतु बबुआनीजी सककं कर्ज लय हुनका नामे अपन घर–द्वार पर्यन्त मकमूल कऽ देलथिन्ह। अतएव मलकीनीज निश्चिन्त भऽ गेलीह जे जमायक टीक आब अपना हाथ मे आबि गेल, रूसि कऽ जैताह कतय? कोनो बात चलैक त कहथिन्ह–ई हमरा बेटीक खरिदुआ गुलाम छथि। जेना जे कहतैन्ह से करय पड़तैन्ह। कौरा खाइ छथिन्ह एकर त पाछु धरथिन्ह ककर? जौं एकर ताव नहि सहियारि होइन्ह त सभ टा सूद जोडि़ कऽ दय देथुन्ह।
बेचारे ओझाजी माहुरक घोंट पीबि कऽ रहि जाथि। भागि कऽ जैतथि कतय? किछु दिनक बाद दरमाहा नहि भेटलाक कारन मोसम्मातिक भनसीया जवाब दऽ देलकैन्ह । आब भानस के करौ ? मोसम्माति कैं मेद रोग रहैन्ह और बबुआनीजी आगि लग कोना बैसतीह ? अगत्या दू साँझ धरि त असिध्दे चलल । किन्तु एना कतेक दिन चलैत ? तेहर साँझ खबासिन आँच पजारि कऽ अधन तैयार कैलक । ओझाजी कैं कहलकैन्ह – ’मेहमान,मनकीनीजी के तबीयत खराब हैन और बबुआनीजी चौका मे जाय लायक न हथ , आइसे चाउर मेरा कऽ पसा दियौ ।’
ओझाजी भानस कैलन्हि और थार परसि बबुआनीजीक खास कमरा मे दऽ ऐलथिन्ह ।
तहिया सँ चुल्हाइ झाक ’चुल्हाइ’ नाम सार्थक भऽ गेलैन्ह ।
एक दिन खबासिन बबुआनीजी कैं मालिश करैत रहैन्ह। जमाय बेचारे दबल कंठ सँ कहलथिन्ह – ’ऐ सुबुधमनि ! दालि मे हरदि पड़तैक। कनेक पीसि दितिऐक। ’
शहरक खेलाइलि दाइ ओझा कैं की बुझितैन्ह ? सुनिओ कऽ अनठा देलकैन्ह। किन्तु मोसम्मातिक कान मे जमायक शब्द पडि़ गेलैन्ह। ओ जलखै पर बैसलि रहथि। तमसा कऽ बजली–हः हः! एको खन खबासिन कैं पलखति देथिन्ह से नहि। बबुइ कैं कनेक मालिशो करतैक से छुट्टी नहि दैत छथिन्ह। कनेक अपने दू गिरह हरदि रगडि़ कऽ दालि मे दऽ देथिन्ह त कि हाथक मेहदी झडि़ जैतैन्ह?
ई सुनि ओझाजी कैं पुनः सुबुधमनि कैं सोर करबाक साहस नहि पड़लैन्ह। चुपचाप हपने हाथ सककं मसाला पीसि लेलन्हि। बबुआनीजी कैं आमिल–मिरचाइ बिना घोंटले नहि जाइन्ह। अतएव ओझाजी कैं चटनीओ पीसय पड़लैन्ह।
थोड़ेक कालक बाद सुबुधमनि ओझा पर तमकैत ऐलैन्ह–आइस केतना हल्ला करे लगली? बबुआनीजी के एगो जाँघ बाँकीए रह गेलन। निम्मन जकती मालिशो न हो सकलैन। लाउ, कहाँ है मसल्ला?
ओझाजी संकुचित होइत कहलथिन्ह– भात दालि तरकारी और चटनी त भऽ गेलैक। पुछिऔन्ह जे आब एकबट्टी कऽ नेने अबिऔन्ह?
एक दिन सासु बजा कऽ प्रेमपूर्वक कहलथिन्ह– आइ–काल्हि चाउर–दालि केसर–कस्तूरी भऽ रहल अछि। एहना कठिन समय मे बहुत हिसाब सककं खर्च करक चाही। कोनो हिमकर बापक थाती गाड़ल छैन्ह जे अनधुन खर्च करताह ?
ओहि दिन सककं ई इन्तिजाम भेल जे मोट अन्नक व्यवहार हो । परन्तु एके दिनक उपरान्त एहि प्रेबन्ध मे संशोधन करब आवश्यक भऽ गेल । कारण जे बबुआनीजी अँकड़ा चाउरक भात सूँघि कऽ छोडि़ देलथिन्ह, और माँजी खेसारीक दालि जे खैलन्हि त पेट फूलि गेलैन्ह । अतः माँजी पुनः प्रेमपूर्वक जमाय कैं बजा कऽ कहलथिन्ह – राति बबुइ कैं कोन ज्ञाने मोटका भात परसि देलथिन्ह ? ओकर फुलकुम्मरि बला देह छैक । अक्कठ–मकठ वस्तु हिनका पचतैन्ह, किऐक त ई घसकट्टाक बेटा छथि , मुदा ओ त गोबरपथनी क बेटी नहि । ओकरा हेतु फुलका छानि देल करथुन्ह । और हमरा जे खेसारीक दालि खोआ देलन्हि से राति सककं हुड़हुड़–गुड़गुड़ कऽ रहल अछि । ई हरठिया–फरठिया छथि । जागरो देसरिया खा कऽ पचा लेताह , मुदा हमरा सभ कैं त मालभोगी पेट मे गड़ैत अछि ।
ताहि दिन सककं चुल्हाइ झा कैं दू पाक करय पड़ैन्ह । अपना सभ लेल बकोल और सदर हवेलीक हेतु बासमती । राति कऽ दुहू माइ–धीक हेतु पुड़ी–तरकारी बना कऽ दऽ आबय पड़ैन्ह । दूध दही घृत चीनी बबुआनीजीक खास चार्ज मे रहैन्ह ।
ताहू पर बेचारे जमाय कैं चैन नहि । सुबुधमनि बात बात मे भीतर जा कऽ हुनक चुगली लगा देल करैन्ह । एक दिन माँजी कैं कहलकैन्ह – ’ए मलकीनीजी, ए मलकीनीजी ! दमाद साहेब डेढ़ सेर से कम न खाइ छथ ।’
तहिया सककं माँजी अपने हाथे चाउर नापि कऽ देबय लगलथिन्ह ।
एक दिन बबुआनीजी कैं चढा देलकैन्ह जे मेहमान सभ रात तीन–चार ठो पुड़ी अपना वास्ते चोरा कऽ धऽ रखै छथ । तहिया सककं बबुआनीजी सानल आँटाक लोइया गनि कऽ , और घृत नापि कऽ पठाबय लगलथिन्ह ।
एक दिन रोहु मांछ बिकाय एलैक । बबुआनीजी अपने हाथ सककं खंड काटि , गनि कऽ पठा देलथिन्ह जे ’हमरा खातिर एतेक तरल, एतेक झोराओल जाएत और सीराक मुड़घंट बनत ।’ चुल्हाइ झा थारी मे सभ माछ लऽ कऽ बाड़ी मे धोबय गेलाह । जा खबासिनी इनार सककं पानि लाबय गेलैन्ह ताबत एक चिल्होरि ओझाजीक हाथ नोचैत सीरा झपटि कऽ लऽ गेलैन्ह । भय और अफसोसक मारे ओझाजी दिन भरि कुसियारक खेत मे नुकाएल रहलाह ।
एक राति नित्य जकाँ सभ कैं खोआय–पियाय चुल्हाइ झा बाहर दलान में सुतल रहथि । पानि बरसैत रहैक । ताबत डेउढ़ीक भीतर हल्ला भेल जे बबुआनीजी कैं भूत लागि गेलन्हि । माँजी दौड़लि बहरैलीह और जमाय कैं फज्झति करैत बजलीह – हमर बेटी मरैत अछि और ई कौढिभच्छ खैने अफरा कऽ सूतल छथि । तकै छथि की ? जाथु कतहु सककं ओझा कैं बजा लबथुन । बाप रे बाप हमर धी विदा भऽ रहल छथि । तेहन अभागल सककं सम्बन्ध भेलैक जे बेचारी कहियो सुख नहिं देखलक ।
ई कहि माँजी घेओना पसारलन्हि ।
आब ओझाजी ओझाक खोज में विदा भेलाह । डेढ़ कोस पर जा कऽ एक दुसाध भगता भेटलैन्ह । ओकरा बहुत हाथ पैर जोडि़ कऽ कोनो तरहें राजी कैलथिन्ह । ओ बबुआनीजी कैं देखैत अपन आडंबर पसारलक – कुश चाही, अक्षत चाही , ओड़हुल के फूल मंगाउ । खसी के कान मंगाउ । हम होमाद करब, तब झाड़बैन्ह ।
आब सभ वस्तु जुटबैत–जुटबैत ओझाजी कैं प्रलय भऽ गेलैन्ह । कुश खोजैत–खोजैत कतेक ठाम काँट गड़लैन्ह । खसीक कानक बदला अपन कान कटाय लगलैन्ह ।
ताबत भगता कहलकैन्ह – ’बबुआनीजी के ऊपर सास चढ़ल हथिन ।’
ई सुनैत देरी माँजी जमाइक मुइलो माइक सातो पुरुषाक उद्धार करय लगलथिन्ह ।
आव बबुआनीजीन बकय लगलीह – हमरा पूत कैं नोन चटा देलक । भेंड़ा बना कऽ रखने अछि । घर नहि आवय दैत अछि । हम संहार कऽ देबैक । बुढिया कैं खोरि कऽ डाहबैक । इत्यादि ।
माँजी कनैत बजलीह – बाप –रे –बाप । हमरा बेटी कैं छुच्छी की कऽ देलक से नहि जानि । सौख ने देखियौन्ह ! हमरा खोरि – खोरि कऽ डाहतीह ! लोहे धिपा कऽ दागि देबैन्ह ।
खवासिन कहलकैन्ह – माँजी, गारी न दिऔ । औरो उछन्नर करय । ढेला बीगत, ईटा बरसाएत । हार – गोर गिराएत ।
आब माँजी अपन क्रोध जमाय पर उतारय लगलीह – हाय रे हमर कर्म ! यैह पंचलक्षण वर बबुइक लेल बथाएल छलथिन्ह । जनितहुँ जे हिनकर माय एहन हाँकलि डाइन छैन्ह जे मुइलो पर हमरा सभ कैं चैन नहि लेबय देति त हिनका अपना दुरुखाक भीतर नहि टपय दितिऐन्ह ।
तावत भगता अपन देवता जगाबय लागल । सौंसे देह बेंत जकाँ थर – थर काँपबैत गरजि कऽ बाजल – दोहाइ गौरा पार्वती के! जय काली कामाक्षावाली! जय काली कलकत्तावाली । जल बान्हौं थल बान्हौं, बान्हौं रहन काया – तीन भुवन पृथ्वी ङबान्हौं सतगुरु के दाया । दोहाय पितर गौरा महादेव पार्वती ! धिक्कार तोरा लुखेसरी देवी तों लोक छह की भूत कि प्रेत छह कि योगिनी ?
भूत बाजल – हम केओ छी ताहि सककं तोरा मतलब ? जान लऽ कऽ भाग नहि त मूड़ी चिबा जेबौक । तोरा सन–सन भगत कैं हम जाँघ तर खेलबैत छी ।
भगता बाजल – चल, चल, बड़ी ऐलीहे खेलाबय बाली । अच्छा, हम तोहर दबाइ करैत छी ।
ई कहि ओ बबुआनीजीक नाक लग मिरचाइक धुनी लऽ गेलैन्ह । दौक सककं भूत कैं अपन भविष्य सूझय लगलैक । कनेक सहमि कऽ बाजल – तों हमर जडि़ मे किऐक लागल छें ? एखन भगाइयो देबै कि फेर अबैत हमरा देरी लागत ? बहुत दिक करबैं त हम एकरा छोडि़ तोरे पर चढि जैबौक ।
भगता आब भूत कैं पोल्हाबय लागल – तों की चाहै छह ? जे मङबह से देबौह । खसी लेबह की दारू लेबह कि लोक लेबह ––––?
भूत बाजल – किछु नहिं लेब । हम खाली एकरे लेबैक ।
माँजी कानय लगलीह ।
भगता बाजल तोहर ई की बिगाड़लकौह अछि । एकर जान छोडि़ दहौक । हम तोरा सिन्दुर–पटोर मंगा दैत छिऔह ।
आब प्रश्नोत्तरी प्रारम्भ भेल ।
भगता – तों कतऽ रहै छह ?
भूत – हम दक्षिणबरिया इमली पर रहैत छी ।
माँजी बजलीह – बाप रे बाप ! काल्हिए इमलीक गाछ कटा देबक चाही ।
भूत उत्तर देलकैन्ह – बुढिया, तों बेसी बक – बक नहि कर । नहि त सुतला मे ठोंठ दाबि कऽ मारि देबौक !
बूढी थर – थर काँपय लगलीह ।
भगता बाजल – अच्छा हम हाथ जोड़ैत छिऔह । हम तोरा पाठा देबौह । तों अपन घर जाह ।
भगता आब अपन टाटक पसारलक । माँजी कैं कहलकैन्ह – एक कारी खसी मङाबह । एक बोतल दारु । लाल पटोर । मटिया सिंदूर ।
आब ओझा कैं पुनः सात गाम दौड़य पड़लैन्ह । सभ वस्तु संग्रह करैत – धरैत आधा राति सँ दुपहर भऽ गेलैन्ह ।
एम्हर भगता खीरक भोग लगौलक और दुहू माइ–घी कैं अपन प्रसाद देलकैन्ह । तावत चुल्हाइ झा भूखें –पियासें, रौदें लहालोट होइत पहुँचलाह । हिनका देखितहि भगता बेंत घुमबैत पुछलकैन्ह– बोल, तों एतना देरी कहाँ लगैले ? बोल ! ला खसी काट । एक्के छौ मे काट ।
ओझाजी कुंठित होइत सबुधमनि कैं कहलथिन्ह – हमरा खसी काटय त नहि अबैत अछि । ताहि मे एक्के छौ मे हमरा बुते कोना हैत ?
ई सुनि सासु गंजन करय लगलथिन्ह – हिनका कथुक लुरि नहि छैन्ह । जाथु कोनो पुरुष कैं बजा लबथुन्ह ।
भगता भरलो बोतल दारु चढाय, लाल – लाल आँखि कय बाजल – अच्छा, ला तरुआरि । हम अपने काटब ।
भगता खसी काटि कऽ मुंड अपना हाथ मे लेलक । धड़ जमाय कैं देखा कय कहलकैन्ह – ई नेने चल, हमरा ब्रह्मस्थान पर ।
बेचारे चुल्हाइ झा खसी कैं उठा कऽ भगताक घर पर नेने गेलथिन्ह । तखन ओ कहलकैन्ह – जो आब पूजा खातिर पटोर, सिन्दुर और पाँच ठो रुपैया नेने आ ।
जमाय बेचारे दौड़ले गेलाह और सभ चीज लऽ कऽ पुनः हाजिर भेलाह । तखन भगता थोड़ेक काँच मांस दऽ कऽ कहलकैन्ह – जो, ई प्रसाद खोआ दही गऽ और ई जड़ी बान्हि कऽ भभूत लगा दही । भूत भाग जतउ ।
चुल्हाइ झा दौड़ा – दौड़ी यंत्र – मंत्र और प्रसाद नेने डेउढी पर पहुँचला ।
माँजी और सुबुधमनि मोहनभोग बना कऽ बबुआनीजी कैं चटबैत छलथिन्ह ।
अतएव बेचारे चुल्हाइ झा स्वयं आगि – काठी पजारि मांस बनाबय गेलाह । ई सभ करैत –धरैत साँझ भऽ गेलैन्ह । तखन एक बट्टा मांस लऽ कऽ आदर्श गृहणीक सेवा मे उपस्थित भेलाह ।
और सभ लोक त प्रसाद पौलक । परन्तु चुल्हाइ झा कैं के पुछौन्ह? ओहि बेचारे कैं हरिवासर भऽ गेलैन्ह ।
एक बट्टा मांसक झोर पिबैत देरी बबुआनीजी कैं खौंत फूँकि देलकैन्ह । आब ओझाजी कैं पंखा होंकैत – होंंकैत विपत्ति । माँजी ओ सुबुधमनि त सुतय चलि गेलीह । बेचारे ओझाजी सीरम मे ठाढ भऽ पंखा डोलबैत रहलाह । बबुआनीजीक पलंग पर बैसबाक त साहसे नहि कऽ सकैत छलाह । ठाढ भेल –भेल पैर भरि गेलैन्ह । ताहू पर जहाँ कनेको हाथ मंद पड़ैन्ह कि बबुआनीजी कच्छ– मच्छ करय लगथिन्ह ।
रात्रि शेष भेला पर बबुआनीजीक भूत उतरि गेलैन्ह । तखन ओ स्वामी पर दृष्टि पड़ैत चिहुँकि उठलीह और अपन उघार – पघार देह कैं झाँपैत बजलीह – अहाँ हमरा ’कमरा’ मे ककरा हुकुम सँ ऐलहुँ ? एना चुपचाप चोर जकाँ किऐक ठाढ छी? हम माँजी कैं जगबिऔन्ह ?
चुल्हाइ झा कैं पत्नीक एकान्त शयनागार मे एना जैबाक ई प्रथमे अवसर छलैन्ह । भय सककं थरथर कककंपैत बजलाह – हम अपना मन सककं नहि ऐलहुँ । माँजी पंखा होकय कहलन्हि ।
बबुआनीजी रोसा कऽ पुछलथिन्ह – अहाँ हमर उघार देह कियैक देखलहुँ ? चुल्हाइ झा अपराधी जकाँ भयभीत भऽ बजलाह – हम त ––––हमत––– नीचा दिस ताकि कऽ पंखा होकैत छलहुँ ।
बबुआनीजी तमकि कय पुछलथिन्ह – अहाँ हमरा सककं की चाहैत छी ?
चुल्हाइ झा देखलन्हि जे आइ भाग्यदेवता प्रशन्न भय वरदान दऽ रहल छथि । एहन मौका फेरि नहि भेटत । अतएव अपन चिर–संचित अभिलाषा प्रकट करैत बजलाह– जौं सरकार हमरा सेवा सककं प्रशन्न छी तककं डेढ़ टके सैकड़ जे सूदि चलि रहल अछि से आधा माफ कय बारह आना कऽ देल जाओ । और हम किछु नहि चाहैत छी । आधा माफ भऽ गेने हमर उद्धार भऽ जाएत ।
ई कहि चुल्हाइ झा जनउ जोडि़ कऽ ठाढ़ भऽ गेलाह । ताबत सूदि सब्द कान मे पड़ैत माँजीक निन्द टूटि गेलैन्ह । ओ बिहाडि़ उठबैत बजलीह – ओझा की बजलाह ? कनेक फेर बाजथु । निर्लज्ज ढेकरथि त आद–गुड़ माङथि ! हिनके सुलच्छनी माइक चलते हमरा आइ पचीस रुपैया दंड लागि गेल अछि । और ई उपर सककं घाव पर नोनक बुकनी छिटैत छथि । बड़ बापक बेटा बनि कऽ रुपैया सधाबय ऐलाह अछि ! जौं एहने छन्हि त एखने बबुइ कैं सभटा सूद–मूर जोडि़ कऽ बेबाक कऽ देथुन्ह ।
ई सुनैत चुल्हाइ झाक बोलती बन्द भऽ गेलैन्ह । ताहि दिन सककं कहियो सूदि घटैबाक चर्चा नहि कैलन्हि । माँजी अपना बेटी कैं सख्त तादीक कऽ देलन्हि जे – देख तोरा एसकरि में पौतौक त सूद माफ करब हेतु तंग करतौक । तैं छिटकले रहल कर ।
माताक आज्ञानुसार सुपुत्री जैखन स्वामी कैं देखथि कि गर्द करथि – माँजी, कहाँ छी ?
दैवयोग सककं बबुआनीजी कैं गर्भ रहि गेलैन्ह । ई सुसंवाद पबितहि माँ जी एक चङेरा लड्डू पीर पर चढाबय गेलीह । नित्य सोहर होमय लागल । एक मास पूर्वहि बकरी कीनल गेल जे सभ दिन कऽ चुल्हाइ झा कैं चराबय पड़ैन्ह । जेना–तेना दिन लगिचाएल जाइन्ह , तेना–तेना ओझाजी कैं खढ–खूढ जुगबैत–जुगबैत प्रलय होइन्ह ।
पूर्ण समय भेला पर बबुआनीजी कैं प्रसव–वेदना उठलैन्ह। ओझाजी चमैनिक घर पर दौड़ाओल गेलाह। आधा राति कऽ बबुआनीजी प्रसव कैलन्हि। माँजी दम्म सधने छलीह। चमैन सककं पुछलथिन्ह–बेटा कि बेटी?
चमैन कहलकैन्ह– बेटी।
आब आङन मे कुहराम मचि गेल। सबटा छार–भार जमाइक ऊपर पड़लैन्ह। माँजी हुनका दस हजार फज्झति कैलथिन्ह। ग्लानिक मारे चुल्हाइ झा दू दिन धरि किछु नहि खैलन्हि।
संयोगवश बेटीक रंग भेलैन्ह श्याम वर्ण। आब माँजी और माथ–कपार पीटय लगलीह–हमर बेटी त गोर अछि। तखन हिनके दोष सककं सन्तान कारी भेल। एकर विवाह कोना हैतैक? ई हमरा वंश कैं चौपट कऽ देलन्हि।
आब चुल्हाइ झा कैं मुँह देखैबाक साहस नहि होइन्ह। बबुआनीजी कैं दूध नहि उतरलैन्ह। अतएव बच्चा कैं बकरीक दूध मे पिहुआ भिजा कऽ चटाओल जाइक। सेहो भार चुल्हाइ झा पर पड़लन्हि। कौखन काल औरो परिचर्या हुनके कराबय पड़ैन्ह।
एक राति बबुआनीजी नेनाक संग पलंग पर सूतल रहथि। करौट जे फेरलन्हि से नेना पिचा गेलैन्ह। बबुआनीजी करेज पर हाथ देलथिन्ह त धक्क दऽ करेज उडि़ गेलन्हि। नाक पर हाथ देलथिन्ह त साँस नदारद। ओ चुपचाप नेना कैं चादर ओढा, बाहर दलान मे जा, सूतल स्वामी कैं हाथ धऽ उठौलन्हि। चुल्हाइ झा आँखि फोललन्हि त अपना आँखि पर विश्वासे नहि भेलैन्हि । बुझि पड़लैन्ह जे स्वप्न थिक । तैं पुनः मुँह झाँपि कऽ सूति रहलाह । बबुआनीजी कहलथिन्ह – उठू, हमही छी । अहाँ सककं काज अछि ।
चुल्हाइ झा हड़बड़ा कऽ उठलाह और स्वामिनीक पाछाँ चललाह । बबुआनीजी अपना कोठरी मे आवि कहथिन्ह – हमरा पेट में दर्द होइत अछि । दाइ सककं ससरबाबय जाइत छी । ताबत अहाँ बच्चा कैं देखैत रहियौक ।
भोर भेला पर गर्द पडि़ गेल जे ओझाजी बच्चा कैं रखने छलथिन्ह से नहिं जानि किदन कऽ देलथिन्ह । आब सभ केओ ’दुर छी’ करय लगलैन्ह । ओझाजीक माथ पर कलंकक टीका लागि गेलैन्ह । किन्तु करथु की ? बेचारे अपना पर हत्या नेने, कान्ह पर शव उठा श्मशान गेलाह ।
चुल्हाइ झा श्मशान सककं फिरि कऽ एलाह त बबुआनीजी कैं पुनः भूत लागि गेलैन्ह । ओ बकय लगलीह – हमर पहिलौठ पोती कैं खा गेल । आब हम ककरो बाँचय नहिं देबैक । नहि त हमरा एहि ठाम सककं लऽ चलौ ।
पुनः दुसाध भगता आएल । झाड़–फूक कैलक । देवता खेलौलक, खसी लेलक । अपना घर गेल । और कहलकैन्ह जे बबुआनीजी कैं तीरथ घुमा दहून ।’
आब तीर्थाटनक विचार भेल । घरक ओगरबाही सुबुधमनि पर छोडि़ माइ–धी रातो–राति गाड़ी हककंका विदा भऽ गेलीह । चुल्हाइ झा पाछाँ–पाछाँ लालटेन लय चललथिन्ह।
स्टेशन पहुँचला उत्तर तीन टा टिकट कटाओल गेल । दुहू माइ–धी सेकेंड क्लास मे बैसलीह । ओझाजी मोटरी चोटरी लऽ कऽ नौकर बला डब्बा मे ठाढ़ रहलाह ।
धाम पहुँचला उत्तर शिवगंगाक धर्मशाला मे डेरा पड़ल । माँजी जमाय कैं कहलथिन्ह– गर्मी सककं हमर मिजाज घुमैत अछि। पहिने हमरा सभ कैं स्नान करा देथु। तखन भानस–भातक ओरिआओन करैत रहिहथि।
ई कहि ओ दू टा फर्स्ट क्लास साड़ी बहार कय जमायक हाथ मे देलन्हि। पुनः बेटी कैं कहलन्हि–अपन सभ गहना पहिरि ले। कोन दिन लेल रहतौक?
अतएव बबुआनीजी षोडशो श्रृंगार बत्तीसो आभरण सककं युक्त भय, चश्मा लगाय माइक संग बिदा भेलीह। माँजी एक पीताम्बरी पहिरि, रेशमी रामनामा ओढि, कान मे सोन लटका, हाथ मे पितरिया फुलडाली नेने भगतीनी माइ जकाँ स्नान करय चललीह।
चुल्हाइ झा दुहू माइ–धीक साड़ी–तौलिया, साबुन–कंघी तथा अपन फटलाही धोती नेने पाछाँ–पाछाँ बिदा भेलाह।
दुनू माइ–धी एक घंटा धरि शिवगंगा मे स्नान कैलन्हि। दर्शक सभ हिनक शोभा देखि छकित भऽ गेल। गुलाब ओ केबड़ाक खुशबू सककं घाट मककंहमककंह करय लागल। माँजी और बबुआनीजी सीढी पर नूआ फेरि ऊपर ऐलीह। चुल्हाइ झा दुनू साड़ी अखारि, पानि गाडि़, कान्ह पर धैलन्हि।
अकस्मात माँजी घोड़ा–गाड़ी सककं अपन बहिन–बहिनधी कैं उतरैत देखि ठमकि गेलीह। पुछलथिन्ह–रानीदाइ! तों कतय सककं?
रानीदाइ अपन कन्या कैं कहलथिन्ह– भवानी, अपना मौसी कैं प्रणाम कर। पुनः बहिन दिशि ताकि बजलीह– दीदी, तोरा आशीर्वाद सककं ई बहुत नीक ठाम गेलि। जमाय बड़ सुपात्र। बाप नामी वकील छथिन्ह। हजार–दू–हजार मास मे कमाइ छथिन्ह। सासु बड्ड मानै छैक। जमाय बाबू एखन वकालत पढै छथि। छुट्टी छैन्ह। तैं हमरा सभ कैं कतेक ठाम घुमबैत– फिरबैत धाम पर लऽ आएल छथि। वैह गाड़ी मे बेसल छथि।
ई सुनि माँजीक सर्वाग मे बिच्छू डंक मारि देलकैन्ह। रानीदाइ बबुआनीजीक ठाठबाट देखि कहलथिन्ह–वाह! आब त ई खूब लगैत अछि। नेना मे खियौटी रहय। आब त बेस मकुना–माधव भऽ गेलि। की गै, मौसी कैं चिन्हबो करै छैं? कतेक दिन पर एकरा देखलिऐक अछि। दस वर्ष सककं कम नहि भेल हैतैक। एकरा विवाहो मे हमरा खबरि नहि देलह । वर त खूब धनिक होइथिन्ह , बड़का रैईस ? तैं ने बबुइ कैं एहन साज–बाज देखैत छिऐन्ह । जमाय कतय छथुन्ह ? हुनका देख लेल मन लागल अछि । संग मे औरो पुरुष–पात छौह कि ओहिना अबैत गेलीह अछि ? ई ब्राह्मण देवता के छथि ?
माँजी चट जमाय दिशि आँखि मारि कहलथिन्ह – ई भनसीया थिकाह । यैह संग मे आयल छथि ।
पुनः बजलीह – हककं, बबुइक वर अपना स्टेटक काज देखैत छथिन्ह । चालिस–पचास हजारक आमदनी छैन्ह । दरबाजा पर हाथी छैन्ह, मोटर छैन्ह । नौकर–चाकरक कोनो कम्मी नहिं । एकरा प्राण सककं बेसी मानैत छथिन्ह । तेसरा दिन पर आदमी छुटैत छैक । तैयो ओहन राजसी ठाठ कैं छोडि़ अभगली छौंड़ी कैं हमरे संग दुःख काटय में मन लगैत छैक । की गै, आब एहू बेर जैबहीक कि फेर आदमी फिरता कऽ देबहीक ?
रानीदाइ कहलथिन्ह – वाह ! भगवान एकरे सन भाग्य सभक करथुन्ह ।
पुनः बहिन कैं कहलथिन्ह – दीदी तों डेरा कतय देने छह ? धर्मशाला मे किऐक रहबह ? चलह दू–चारि दिन रहब संगे रहब , संगे जाएब ।
ई कहि ब्राह्मण देवता कैं कहलथिन्ह – जाह , ऊपर सककं सभ सामान उठा कऽ लऽ आबह और गाड़ी पर लादह ।
सभ गोटे घोड़ागाड़ी मे बैसलीह । नवीन जमाय सभ कैं प्रणाम कैलथिन्ह । चुल्हाइ झा कैं जखन पेटी–विस्तर आदि गाड़ी पर लादल भऽ गेलैन्ह त जमाय बाबू कहलथिन्ह – बाबाजी , तों जा , ऊपर कोचमानक संग बैसह । देखिहऽ कोनो चीज खसौ नहि ।
नीचा गाड़ी मे बहिन–बहिनपा गुलछर्रा उड़बैत चललीह । चुल्हाइ झा सभक भीजल साड़ी लदने कोचमानक बगल मे बैसलाह ।
एक नीक बङ्गलाक सामने आबि कऽ गाड़ी लागल । बबुआनीजी प्रभृति कैं त जमाय बाबू आदरपूर्वक गाड़ी सककं उतरि भीतर लऽ गेलथिन्ह । चुल्हाइ झा पेटी माथ पर लादि कऽ डेरा मे लऽ चललाह ।
रानी दाइ माँजी कैं कहलथिन्ह – दीदी एतय डेरा में भनसीया नहि छैक । ताबत तोरे भनसीया सककं काज चलत । एकर नाम की छैक ?
माँजी कहलथिन्ह – नाम त किदन छैक । हमरा लोकनि बाबाजी कहैत छिऐक ।
आब माँजीक पेट मे हर बहय लगलैन्ह जे कतहु असली भेद नहि खुलि जाय । मौका पबैत चुल्हाइ झा कैं एकान्त मे लऽ जा कऽ कहलथिन्ह – देखिहथि , एहिठाम हमरा लोकनिक नाक नहि कटबिहथि । हम और बबुइ दू–चारि दिन ’बाबाजी’ कहि सोर पारबैन्ह त हर्ज की ? रोष नहिं मानिहथि । ई त अपने सज्ञान छथि । हम की बुझबिऔन्ह ?
आब ओझाजी कैं सभ केओ ’बाबाजी’ बुझि अढ़ाबय लगलैन्ह ।
भवानी दाइ ’सेकेंड बुक’ धरि पढ़ने छलीह । अतएव हुनका अङरेजिओक दाबी छलैन्ह । ओ चुल्हाइ झा कैं बात–बात में ’फुलिश’ ’स्टुपिड’ कहि कऽ डाँट लगलथिन्ह ।
सन्ध्या काल कहलथिन्ह – बाबाजी, ’चौप’ बनाबय अबैत अछि ?
चुल्हाइ झा मुँह ताकय लगलथिन्ह । भवानी दाइ भभा कऽ हककंसि पड़लीह । कहलथिन्ह – ’इडिएट’ जकाँ तकै छह की ? माथ पर एक बोझ टीक रखने छह ताही सककं ’ब्रेन वर्क’ नहि करैत छौह । दीदी ! कोन जंगल सककं एहन ’डोल्ट’ कैं उठा लेलह ? एकरा कतेक ’पे’ दैत छहौक ?
चुल्हाइ झा कटि कऽ रहि गेलाह । भवानी दाइ पुछलथिन्ह – की ? चायो बनाबय अबैत छौह कि नहि ? जाह पानि गर्म कऽ कऽ नेने आबह । और एहि ठाम ’मिल्क’, ’सुगर’, ’टी’ ,(दूध , चीनी , चाय ) सभ आनि कऽ धरह । हम सिखा दैत छिऔह । हमरा चार्ज मे तीन दिन रहह त ट्रेनिंग दऽ कऽ आदमी बना देबौह ।
ई कहि भवानी दाइ मुस्कुरा उठलीह । बबुआनीजी संग दैत कहलथिन्ह – तों एके दिन में अकच्छ भऽ गेलीह । हमरा त दिन–राति एहि जानवर सककं काज लेबय पड़ैत अछि ।
भवानी दाइ पुछलथिन्ह – हिनकर विवाहो भेल छैन्ह कि कुमारे छथि ? एहन बेलूरि कैं के पुछतैन्ह । की हे दीदी ?
बबुआनीजी कटि कऽ रहि गेलीह । चुल्हाइ झा कैं ठाढ़ देखि आँखि कड़ा करैत कहलथिन्ह – बाबाजी , तों अपना ’ड्यूटी ’पर जाह । एहि ठाम ठाढ़ भऽ कऽ हमरा सभक गप्प किऐक सुनैत छौह ?
चुल्हाइ झा ओहि ठाम सककं किछु हटि कऽ पानि औंटक सूर–सार करय लगलाह ।
भवानी दाइ पुछलथिन्ह – की हे दीदी ! अपना ’हसबैंड’ (स्वामी) क हाल त कहबे नहि कैलह? केहन मानै छथुन्ह? खूब ’लभ’(प्रेम) करैत छथुन्ह कि नहि? हमरा त तेहन ’ओबीडिएंट’ (आज्ञाकारी) भेटल छथि जे की मजाल कोनो बात अपना मन सककं करताह। जे हमर ’आर्डर’ हैतैन्ह सैह करय पड़तैन्ह। एहि ठाम सककं ’कैलकटा’ जैबाक प्रोग्राम अछि। ओतय एक हफ्ता रहि खूब सिनेमा–थियेटर देखब। ’ट्रामवे’ मे सैर करब। ’फैन्सी’ चीज सभ खरीदब। की दीदी, तोंहू चलबह?
बबुआनीजीक छाती पर आरा चलय लगलैन्ह। प्रकाश्यतः बजलीह–चलबा लेल त कोनो हर्ज नहि लेकिन हमरा त दिन मनाएल अछि। कै बेर मोटर फिरि गेलैक अछि। एहि बेर जैतहि फेर मोटर पहुँचतैक। और कलकता गेनाइ कोन भारी बात छैक? ओतय त एकटा खास मकाने खरीद होमय लेल छैक। तखन त साल मे छौ मास ओही ठाम रहबैक।
तावत नवीन जमाय पहुँचि गेलथिन्ह। भवानी दाइ चमकि कय बबुआनीजी कैं कहलथिन्ह–दीदी, ओ आबि गेलथिन। आइ सककं हुनकर सभ भार तोरे ऊपर। जाह, देखहुन गऽ।
पुनः चुल्हाइ झा दिशि देखि बजलीह–माइ गौड! (हे भगवान)! एखन धरि आँचो पजारल नहि भेलैक अछि। बाबाजी, तों बड़ धिम्मर छह। हुनका लेल चाय और फुलका बनतैन्ह।
बबुआनीजी बहिनोइक स्वागत मे गेलीह। भवानी दाइ बाबाजीक पीठ पर सवार भय, ऐस–तैस झाड़ैत, काज करबाबय लगलीह। ता घर मे जमाय बाबूक फरमाइश पर मलार उठि गेल। एम्हर चुल्हाइ झा कैं धुआँ सककं नाक फाटय लगलैन्ह।
एक घंटाक बाद बबुआनीजी तमतम करैत बहिनोइक घर सककं बहरैलीह–ऐं! एखन धरि जलखै तैयार नहि भेलैक! ओ लटुआएल पड़ल छथि। की दिऔन्हगऽ?
भवानी दाइ बजलीह–होपलेस! हमर ’कूक’ (भनसीया) एहन ’स्लो’ (मन्द) रहैत त बिना फाइन (जुर्माना) कैने नहि छोडि़तिऐक।
बेटीक शब्द सुनि माँजी और रानी दाइ बहरैलीह। माँजी गाल पर हाथ धरैत बजलीह–ऐं! एखन धरि जमाय बाबू कैं चाय नहि भेटलैन्ह। कहू त भला! एहि बाबाजी कैं किछु नहि उजियाइत छैक। थोड़ेक हलुओ बना कऽ तऽ दऽ आएल रहितैन्ह।
रानी दाइ बेटी कैं कहलन्हि– गै बच्चा! हमरा साजी मे थोड़ेक मधुर हैतैक। से बाहर कऽ बौआ दाइ कैं दहिक। तावत दऽ औतैन्हगऽ।
बबुआनीजी तश्तरी मे पेड़ा–बर्फी लऽ कऽ जमाय बाबूक सेवा मे गेलीह। रानीदाइ बाबाजी कैं कहलथिन्ह– तों पानो लगैबह से हैतौह कि नहि?
चुल्हाइ झा कैं धूआँक कारण आँखि भरल छलैन्ह। ओ अङपोछा सककं आँखि पोछलन्हि और उठि कऽ पान लगाबय गेलाह।
पान लगा कऽ जहिना देबक हेतु बिदा भेलाह कि रानी दाइ डककंटलथिन्ह–बाबाजी ! तों केहन भारी भुच्च छह ! ओहि घर मे सारि बहनोइ, और तों धड़धड़ाएल चलि जाइत छह ! पहिने खखसि लैह, तखन भीतर जाह ।
चुल्हाइ झा खखास करबाक चेष्टा कैलन्हि, परन्तु मुँह सककं शब्दे नहि बाहर भेलैन्ह । तखन माँजी जोर सककं सुना कऽ कहलथिन्ह – गे बौआ, बाबाजी पान लऽ कऽ जाय छौक ।
चुल्हाइ झा पनबट्टी लऽ कऽ भीतर गेलाह और जमाय बाबू अपन कल्ला मे पान भरि लेलन्हि । किन्तु रस चभैत देरी जमाय बाबू थू–थू करैत थूकड़य लगलाह । बाबाजी कैं गारि फज्झति दैत कहलथिन्ह – ’रास्कल’ कहीं का ! एक मुट्ठी चूना दे दिया । यू डिजर्व टु बी बीटन (मार खाने के लायक काम किया है)।
जीभ कटैलाक कारण जमाय बाबू सी–सी करय लगलाह और बबुआनीजी अपना आँचर सककं हुनकर मुँह पोछय लगलथिन्ह ।
रानी दाइ, भवानी दाइ और माँजी सभ दौड़लि दुरुखा पर ऐलीह और बाबाजी कैं सातो पुरुषाक उद्धार करय लगलथिन्ह । रानी दाइ झट दऽ एक बोतल मधु भीतर पठा देलथिन्ह । बबुआनीजी आङुर मे मधु लऽ लऽ कऽ जमाय बाबु कैं चटाबय लगलथिन्ह । चुल्हाइ झा किंकर्तव्यविमूढ भेल ठाढ़ रहलाह । चारु कात सककं हुनका पर धिक्कारक वर्षा होमय लगलैन्ह ।
माँजी कहलथिन्ह – जंगली आदमी ! कहियो नीक लोकक बीच मे रहय तखन ने नीक लोकक कैदा बात बूझय ।
रानीदाइ कहलथिन्ह – आब जमाय बाबू राति में कोना खैताह ? जीभ छनछनाइत हैतैन्ह ।
भवानी दाइ बजलीह – एहन ’कुक’ कें त लगले ’डिसमिस’ कऽ देबक चाही ।
बबुआनीजी चुल्हाइ झा पर शान झाड़ैत कहलथिन्ह – गदहा आदमी ! आब तोरा जगह पर हम दोसर आदमी राखि लेब । तोरा सककं हमर काज नहि चलत ।
एतबा दिन सहैत–सहैत चुल्हाइ झाक आत्म–सम्मान–रूपी अग्नि मिझा कऽ राख भऽ गेल छलैन्ह । ताहि छाउर में सककं आइ एकाएक चिनगारी प्रकट भऽ गेलैक ।
ओ बजलाह – बेश, तखन हम चल जाइत छी ।
माँजी और बबुआनीजी विस्मय और क्रोध सककं क्षुब्ध रहि गेलीह । चुल्हाइ झाक ई धृष्टता ! माँजी गरजि कैं कहलथिन्ह – ऐं ! बाबाजी ! तोहर एत गोट दर्प जे जखन मन ऐतौह तखने बिदा भऽ जैबह ? और कर्ज जे एहि लोकक धारने छहौक से के अदाय करतैक ?
बबुआनीजी माइक पक्ष लैत बजलीह – जौं असल बापक बेटा हो त एखने बेबाक कऽ देऔ , नहि त टीक पकडि़ कऽ वसूल कऽ लेबैक ।
पत्नीक मुँह सककं एहन ’चैलेंज’ सुनि चुल्हाइ झाक ब्रह्मतेज धधकि उठलैन्ह । एकाएक बबुआनीजी कैं भरि पाँज गसिया कऽ उठा लेलेथिन्ह ।
एहन कल्पना दृश्य देखि सभ लोक अबाक रहि गेल । बबुआनीजी पित्तें चुल्हाइ झाक देह नोचय लगलथिन्ह । अपमानक ज्वाला सककं हुनक छाती जोर–जोर सककं उधकय लगलैन्ह । किन्तु तथापि चुल्हाइ झा हुनका नहि छोड़लथिन्ह ।
माँजी चिचिऐलीह – बाप–रे–बाप ! बाबाजी सनकि गेल । हमरा बेटी कै पिचने अछि ।
भवानी दाइ चिचिया उठलीह – ’रेप ! रेप !’ (बलात्कार)
हल्ला सुनि चारू कात सककं लोक जमा भऽ गेल । चुल्हाइ झा पर तत मारि पड़ल जे ओ बेदम भऽ कऽ बबुआनीजी कैं नेने देने मुँहे भरे खसि पड़लाह । बबुआनीजी तर मे किकियाय लगलीह और ओझाजीक पीठ पर लाठी बजरय लागल ।
जखन चुल्हाइ झा बेहोश भऽ गेलाह तखन बबुआनीजी तर सककं कोनो–कोनो तरहें खीचि कैं बाहर कैल गेलीह । हुनक आङी चिरी–चिरी भऽ गेल छलैन्ह और छाती परक चेन टूटि कऽ दाना छिडि़या गेल छलैन्ह । बेटीक एहन बेइज्जती देखि माँजी क्रोध सककं बताहि भऽ गेलीह ।
ताबत नवीन जमाय पुलिसक आदमी कैं नेने ऐलाह । ओ चुल्हाइ झा कैं पकडि़ कऽ थाना लऽ जाय लगलैन्ह । तखन चुल्हाइ झा सभक आगाँ मे असली रहस्य प्रकट कैलन्हि । बबुआनीजीक भंडा फूटि गेलैन्ह ।
भेद खुजितहि माँजी कैं चाउन्हि आबि गेलैन्ह और बबुआनीजी कैं भूत लागि गेलैन्ह । रानी–भवानी माँजीक उपचार में लगलीह और नवीन जमाय बबुआनीजीक माथ पर गंगाजलक फोहारा देबय लगलथिन्ह ।
एम्हर चुल्हाइ झा अपन मुग्धबोध व्याकरण समेटि अपना घरक बाट धैलन्हि ।
डेउढ़ी पहुँचला उत्तर कइएक बेरि चुल्हाइ झा कैं बजैबाक हेतु आदमी पठौलथिन्ह । परन्तु चुल्हाइ झा पुनः ओहो मृगमरीचिका मे नहि फँसलाह ।
बबुआनीजी खिसिया कऽ हुनका पर नालिश दायर कैने छथिन्ह और माँजी अपना सुपुत्री कैं प्रोत्साहन दैत छथि जे जौं ओहि बाभनक डीह–डाबर पर्यंन्त नीलाम नहिं करौलैंह त तों असल बापक बेटी नहि ।
एम्हर चुल्हाइ झा श्यालग्राम छोडि़, शालग्रामक पूजा करैत छथि और विपथगाक स्थान मे त्रिपथगाक सेवा मे चित्त लगौलन्हि अछि ।
आव बिनु पढ़नहि हुनका मुग्धबोध भऽ गेल छैन्ह । किएक त दुर्गापाठ करैत काल ओ नित्य जप करैत छथि जे –
वीर्यं देहि बलं देहि पौरुषं स्वावलम्बनम ।
न देहि श्वशुरागारे, स्त्रीमुखापेक्षिजीवनम ।।