♦ श्यामसुन्दर शशि
ईन्द्रकुमारी ….. मकवानपुरके राजा हेमकर्ण सेनके दुल्लरि बेटी । राजकुमार दिग्बन्धन सेनके एकपिठिया पियारी बहिन । जहन ओ मायके गर्भेमे छल तहिएसँ राजा–रानी बीच नित्य बतकट्टबलि होईक । राजाक ईक्षा रहैक जे बेटा होत त राजपाटमे हाथ बटाओत । राज–पाट बढाओत । रानीके सेहन्ता रहन्हि सीतासनक बेटी । मिथिलामे कन्यादानके उत्तम दान मानल जाईत छै ने । से रानी कन्यादानक सुयोग प्राप्त करय चाहैत छलीह । अनेकौ दिनक घोंघाउझके पश्च्यात् दुनू प्राणीमे सहमति भेल छल – ‘ बेटा हो कि बेटी , नाम ईन्द्रेक नामपर राखल जाएत । ’ राजा स्वयं देवदूत सदृश्य सुदरर्शन रहथि आ रानी अप्सरासन सुन्नरि । से सन्तान सुन्नर होएबे करत , दुनूके विश्वास रहैक । मायके सदीक्षा पूरा भेलनि । सुन्नरि बेटी जन्म लेलनि आ सहमति अनुसार नामाकरण कएल गेलनि – ईन्द्रकुमारी …. राजकुमारी ईन्द्रकुमारी । राजा घोषणा कएलनि – ‘ बेटा जन्मल रहैत त नाम रहितनि ईन्द्रकुमार …। बेटीक नाम भेल ईन्द्रकुमारी । ईन्दुुके बेटे जकाँ पालन–पोषण करब । आखिर बेटा–बेटीमे फरके की ? ’ तहिएसँ मकवानपुर दरवारमे राजकुमारीक दोसर नाम सेहो प्रचलनमे आबि गेल – ईन्दु अर्थात् चन्द्रमा । ईन्दु चन्द्रमे जकाँ शितल स्वाभावक आ ज्योर्तिमय रहथि । माय बापक कल्पनोसँ सुन्नरि । डोकासन पैघ–पैघ आँखि । तलवारसन धरगर नाक । सुडौल शरीर । ने मोट ने पातरि । एकदमसँ समगम । दुधिया स्वेत रंग । ताहिपर पाकल तिलकोड सदृश्य लालबुंद ठोर । सोना आ हीराक आभुषणसँ गछेडल ईन्द्रकुमारी जहन मोती जडित राजशी पोषाक पहिर निकलथि त ईन्द्राशनोके परीसँ दीव लागथि ।
पूर्वरिया पहाडके स्पर्ष क’ शीतल हावा मकवानपुर दरवारक वातावरणके सर्द बनारहल छल । सुरुज भगवान उदित त भेल छलाह मुदा प्रकाश आ ताप अत्यन्त मध्धम छल । चुरे पर्वत श्रृंखलाके मध्य शस्य–श्यामल फांटमे राजा मुकुन्द सेनद्वारा बसाओल मुकुन्दपुर ( मकवानपुर ) जाडक चादरि ओढि थरथर कापि रहल छल । जाडक जोगाडके रुपमे दरवारमे ठाम–ठाम धूनी बाडल गेल छल । धूपी आ सखुवाक धूनीक ताप प्रकाश आ सुगन्धसँ दरवार गमगम क’ रहल छल । प्रकाशित आ गरमाएल त छलहे । राजा हेमकर्ण राजशी पोषाक पहडि रहल छलाह । नोकर–चाकर सहयोग क’ रहल छलनि । पोषाक पहिरलाक बाद आभूषण धारण कएलाह आ प्रिय ईन्दुक प्रतिक्षामे राजप्रसादमे चहल कदमी करय लगलाह । जनु हुनका मोनमे किछु चकभाउर काटि रहल हो । धीरगंभीर रहयबला राजा आई एतेक चंचल किए छथि ? अठपहरियासभ कनफुसकी क’ रहल छल । महुतवार एक दन्ती हाथीके सृंगार–पटार क’ रहल छल । हौदा सजाओल जा’ रहल छल । राजकुमार दिग्बन्धन अपन मित्र आ राजक देवान कनक सिंह बानियाँक संग गुप्तगु क’ रहल छलाह । योजना बना रहल छलाह –‘ आई नौ–छौ भईए जाओ । ’ सैनिकसभ अपन अपन हाथी घोडाके साज– सृंगार आ अस्त्र–शस्त्रके साफ–सफाई क’ रहल छल । एम्हर दरवारक भितरी कक्षमे सेहो ओहने चहल पहल रहैक । रानी अपन दासीक संग सृंगार–पटार आ पूजा सामग्रीक ओरिआओनमे तल्लिन छलीह । राजकुमारी ईन्द्रकुमारीके सजाओल–सृंगारल जा’ रहल छल । राजकुमारीक वास्ते दरवारमे युवतीसभक विशेष टोली नियुक्त छलै । जकर दैनिक काज रहैक – राजकुमारीके खान–पानक व्यवस्था करब । सृंगार–पटार करब आ खेल तमासा देखा’ प्रशन्न राखब ।
१३ वर्षिया ईन्दु यौवनावस्थामे प्रवेश क’ रहल छलीह । अपनाके युवती राजकुमारी बुझओ कि पिताक दुल्लरि ईन्दु ? विद्यापतिक नायिका जकाँ ओ असमञ्जसमे छलीह । महाकवि विद्यापति एहि अवस्थाके वय ः सन्धिक नाम देने छथिन – ‘ सैसव जौवन दुहु मिल गेल । श्रवनक पथ दुहु लोचन लेल ।। वचनक चातुरि लहु–लहु हास । धरनिये चाँद कएल परगास ।। ’ बस इएह अवस्था रहैक ईन्दुके । सामान्य दिनसँ अधिक गंभीर । हेराएल–हेराएल सन । खन अपन उभरैत छातीके निहारि प्रशन्न होथि , खन अपन शयनकक्षदिसि ताकि दुखी भ’ जाथि । दासीसभ सृंगार क’ दैक , ओ मेटा लेथि –‘ नहि भेलौं…..दूचोटिया नहि, आई खोप्पा बान्हि दे । ’ कखनो जिद्द क’ दैथि ‘ आई केस खुजले रहय दे …’ । दासीसभ परेसान छल । अन्तत ः राजकुमारीक सृगार–पटार सम्पन्न भेल । राजकुमारी अपनहि हाथे मांगमे सिन्दुर भडलनि । मंगलसूत्र पहिरलनि । नौलखा हार लटकौलनि आ ऐनामे मूह देखैत अपन प्रिय सखिस“ पुछलथिन –‘ गे छौडी । कह त’ आई हम केहन लगैछी ? ’ सखि मजाके मजाकमे जवाफ घुडैलकै –‘ आई तोरा देखिक पहडिया चारु उतान चित्त भ’ जएतौ ….। घूरिक आबए कहाँ देतौ पहडिया… । ’ ईन्द्रकुमारी बाजलि किछु नहि । मूहसँ बस एतबए निकललै –‘ ईस्स्स…।’
दरबारके बाहर हेमकर्ण एकदन्ती हाथीपर सवार छलाह । माय महफामे बैसि बेटीक प्रतिक्षा क’ रहल छलीह । दासीसभक वास्ते सेहो महफा सजाओल गेल छल । रानीस“ आगा“क महफापर राजकुमारीक सवारी निकलल । सभस“ आगा“ सैनिक दस्ताक नेतृत्व क’ रहल छलाह राजकुमार दिग्बन्धन आ संग रहनि कनक सिंह बानियाँ । मध्यमे हाथीपर सवार राजा आ महफामे सजलि रानी आ राजकुमारी । तकर पाछा“ दासीसभक महफा । सभसँ पाछाँ सशस्त्र सैनिकके टुकडी छल । अर्दलीसभ बाटभरि उद्घोष करैत जा’ रहल छल – ‘ मकवानपुरक राजा प्रबल प्रतापी…हिन्दुपति हेमकर्ण सेन , युवा हृदयक धुकधुकी युवराज दिग्बन्धन सेनसंग राजपरिवारक सदस्यलोकनि पधारि रहल अछि ……………………..
राजपरिवारके सवारी देवघाट दर्शन करबालेल निकलल छल । कालीगण्डकी आ त्रिशुली नदीक संगममे अवस्थित देवघाट समस्त हिन्दु धर्मावलम्वीसभक पवित्र तिर्थस्थल अछि । जाहिठाम हुनक पूर्वज मनिमुकुन्द सेनद्वारा निर्मित मन्दिर आ चक्रवत्र्तिशीला छै । मौलाकालिका माईके मन्दिर सेहो । माघ संक्रान्तिक दिन त्रिवेणीमे मकर स्नान क’ पूर्वजद्वारा निर्मित मन्दिरमे दर्शन आ पूजा–अर्चना करबाक राजपरम्परा छल । पूर्खाद्वारा निर्मित मन्दिर आ देवघाटसँ मकवानपुरक भावनात्मक सम्बन्ध स्वाभाविक । तें प्रत्येक वर्ष मकर संक्रान्तिमे राजा देवघाट अवश्य जाईत छलाह । मुदा एहि वर्ष परम्परा निर्वाहक अतिरीक्त दोसर प्रयोजन सेहो रहै । तें समग्र राजपरिवार देवघाटमे जमाजूट भेल छल । ओ प्रयोजन रहैक जमाय पृथ्वीनारायण शाहसंग भेंटघाट । बिगडल सम्बन्ध सुधारब आ राजकुमारीक गौनाक वास्ते विमर्श करब । दू वर्ष पूर्व राजा हेमकर्ण सेन पहिलबेर पृथ्वीनारायण शाहके एहि मेलामे देखने छलाह । मजबूत एवं सुडौल शरीर । चौडा चमकैत ललाट । गजबके प्रतिउत्पन्नमति । चतुर चालाक होनहार युवक ….। हेमकर्ण सेनके प्रथमे दृष्टिमे पसिन पडि गेल रहैक । पाछा“ गार्खा राज्यक पुरोहित क्षोमेश्वर जोशी मकवानपुर आबि मिथिलाक वैवाहिक पद्यति अनुसार लगन निश्चित कएने छलाह ।
गत वर्ष फागुनमे गोरखाक राजकुमार पृथ्वीनारायण शाह आ मकवानपुरके राजकुमारी ईन्द्रकुमारीके मकवानपुर दरवारमे धुमधामसँ विवाह भेल रहैक । अपन दुल्लरि बेटीक विवाहमे हेमकर्ण कोनो कसरि बाँकी नहि रखने छलाह । एकदन्ती हाथीपर सवार क’ जमायके दरवारमे प्रवेश करौने छलाह । हीरा मोती जडित फूलडालीसँ पुष्पवर्षा कएने छलाह । विवाह मण्डपपर राजकुमारीके नौखला हार पहिरा उपस्थित कराओल गेल छल । हाथी, घोडा,सोन, चानी,हिरा,मोती, लत्ताकपडा, पलंग, नगद जिन्सी आ की की ने उपहार देने रहथि । मुदा लोभी पृथ्वीनारायणके मोन खातिर नहि भेलनि । हुनका एक दन्ती हाथी आ नौलखा हार चाही । रे भाई त रोकने के छौं ? बेटी–जमायके नौलखा हार आ एकदन्ती हाथी के कहे राजा हेमकर्ण जनकजका“ अपन गर्दनि उतारिक द’ दितथि मुदा बात रहै ….बातक ….. । मिथिला समाजक विधि व्यवस्था आ परम्पराक । नैहरमे वर्षभरि नाना प्रकारक विधि व्यावहार होइत छै से ओहि पहडियाभूत्त के समझाबओ ? आ सभस“ बढिक’ ईन्द्रकुमारी रहबो करैक नाबालिके…… । आ से पृथ्वीनारायण विवाहके तुरन्तबाद दरबारसँ भागि पडाएल छलाह । एखनो रुसले–फुलले छथि । एहि देवघाट मेलामे जमायसँ भेंट क’ ओ सम्बन्धक खटासके मेटाबय चाहैत छलाह ।
राजपरिवारक आगमनसँ पूर्वहि मकवानपुर सेनाक एक टुकडी साजो–समानकसहित देवघाट पहुचि गेल छल । राजपरिवारक वास्ते आलिशान कैम्प निर्माण कएल गेल छल । भनसिया भोजन बना रहल छल । आमजन अपन राजासँ भेंटबाकलेल जमाजूट छल । मुदा हेमकर्ण दोसरे द्विविधामे रहथि । राजकुमार दिग्बन्धनके निर्देश देलखिन –‘ जाऊ पाहुनके ईज्जतपूर्वक नौतक सिविरमे ल’ आऊ । ’ बेमोने दिग्बन्धन अपन मित्र कनक सिंह बानियाँके संग ल’ उत्तरदिसि प्रस्थान कएलनि । साथमे चुनिन्दा सैनिकके एक टुकडी सेहो ल’ लेलनि । हेमकर्ण सेन भनसिया आ अठपहरियासभके आदेश देलनि – पाहुन आबि रहल छौं….निकस“ भोजन भात बनो । हुनकासभके मासु प्रिय होइत छनि । पोसलहा खसी काट ….। ’
ओम्हर उत्तरवरिया डाँडापर गोरखाली सेनाक सिविर छल । पृथ्वीनारायण शाह अपन भाई– भारदार , पुरोहित क्षोमेश्वर जोशी आ सैनिकके संग जलशा क’ रहल छलाह । दिग्बन्धन स्वयं पृथ्वीनारायणके सिविरमे प्रवेश नहि कएलनि । कनक सिंहके पठौलनि – ‘ जाऊ राजाक सम्वाद द’ अबिअउन …। ’ कनक सिंह किछु सेनाकसंग सिविरमे प्रवेशक’ राजाक संवाद सुनौलनि । पृथ्वीनारायण जनु प्रतिक्षेमे होथि । बजलाह – अहा“ आगा“ बढू । हमसभ आबि रहल छी …. भाईजी ( दिग्बन्धन ) नहि आएल छथि कि ? ’ कनक सिंह चुप्पे रहलाह । पृथ्वीनारायणके बुझबामे देरी नहि भेलै जे दिग्बन्धन आएल त छथि मुदा हमरास“ भेंटय नहि चाहैत छथि । सम्भवत ः विवाह बेरक बैर एखनहु“ छन्हिए –‘ ठिक छै , गुरुजीके संगे ल’क’ चलू । हमसभ पाछाँसँ अबैत छी । ’ गुरु क्षोमेश्वर जोशीके संग ल’ कनक सिंह सिविरस“ बाहर निकलल आ दिग्बन्धनसहित मानिक सेनके सिविरदिसि प्रस्थान कएलनि ।
हेमकर्ण सेन जमायके प्रतिक्षामे अधिर भ’ रहल छलाह । घरि भनसियासँ भोजन भातक विषयमे पूछथि त घरि अठपहरियासभके बाहर देखि अएबाक आदेश दैथि । क्षोमेश्वर जोशीमात्रके अबैत देखि ओ झमाक’ बैसि गेलाह । मोनहि बजलाह– जमायबाबू एखनोधरि रुसले छथि बुझाइए …।
– ‘ पाहुन नहि आबि रहल छथि कि ? ’ हेमकर्ण , गुरु क्षोमेश्वरसँ पुछलथिन ।
– ‘ आबि रहल छथि । अपनेस“ विशेष विमर्श वास्ते हमरा आगा“ पठाओल गेल अछि । ’ क्षोमेश्वरके जवाफ रहनि ।
बातचित सुरु भेल । बातचितक आरम्भ कुशल–क्षेमसँ करबाक मिथिलाक परम्परा अछि । से गोखरा राज्यक अवस्था । राजा नरभुपाल शाहक स्वास्थ्य , रानी चन्द्रप्रभा आ कौशल्याक दैनिकी संगहि पुरोहित भानु जोशीक कुशल क्षेमस“ बातचित सुरु भेल । मुदा मुख्यविषयके उठान केओ नहि करय चाहैत छलाह । अन्तत ः क्षोमेश्वर जोशी मूल विषयमे प्रवेश कएलनि –
‘ आओरसब ठिक , मुदा विवाह पश्च्यात् युवराज्ञीके डोला ( विदागरी ) नहि पठा अपने निक नहि कएलहँु । ठकुराईमे गोरखा राजके जग–हंसाई भ’ रहल छै । राजा–रानी दुःखी छथि आ राजकुमार आक्रोशित । ’ बस कि छल , हेमकर्ण उत्तेजित भ’ गेलाह –
– ‘ अलबत्त बात करैछी अपने ….१२ वर्षके बेटीके सासुर कोनो पठा दितिऐ । फेर मिथिलाक परम्परा छै – विवाहके एक वर्षधरि नाना प्रकारक विध–व्यावहार होइत छै । कहियो मधुश्रावणी त कहियो कोजागरा …विधि व्यावहार छोडि बेटीके विदा क’ देब उचित होइत ? हमरा समाज की कहैत ?
क्षोमेश्वरके जहन मिथिला संस्कृतिक विषयमे बताओल गेलनि त ओ बात बुझलनि । बजलाह
– ‘ ठिक छै ….पूरानबाट छोडल जाओ …. एहिबेर त“ गौना क’ देबै ने ?
हेमकर्ण उत्तेजित भ’ गेलाह –‘ हम कहि चुकल छी – जाधरि राजकुमारी १५ वर्षक नहि हेथिन ताधरि गौना नहि होएत । ’
बातचित चलिए रहल छल कि पृथ्वीनारायण शाह सेहो सिविरमे प्रवेश कएलनि । हुनकासंग गोरखाली सेनाक टुकडी रहैक । १५ वर्षक लक्का जवान पृथ्वीनारायण हृष्टपुष्ट छल मुदा पहिरण अति साधारण । खद्धरके दाउरा सुरवाल आ टोपी । उपरसँ भेंडाक ऊनसँ बूनल पटुका लपेटने । ने आँखिमे काजर । ने माथपर तिलक आ ने काफ लेदरके जूता । सिरकी कातमे नुकाएल महिलासभ चौल कैलखिन – गे दाई गे दाई ….एहन सुन्नर दुलहाके काजरो नहि….चाननो नहि….निक जूतो नहि…..माय बाप दलिदर छथिन कि ?? बैठककक्षमे जोडसँ ठहाका पडल । सासुरक हंसि मजाक आ सारि–सरहोजिक चौलके पृथ्वीनारायण अपमान बुझलनि । तमतमा गेलाह । गोरखाली सैनिकसभ आवेशमे आबि गेल । हेमकर्ण स्वयं खाढ भ’ जमायके बामकात राखल सिंहाशनपर विराजमान करौलनि । दहिनाकातक सिंहाशनपर दिग्बन्धन विराजमान रहबे करए । पृथ्वीनारायण अपन ससुरके ढोग (पैर छूबि प्रणाम ) क’ सिंहाशनपर बैसि गेलाह ।
बातचितके क्रम आगा“ बढल । ‘ कुशल छी ने ..? ’ हेमकर्ण अपन जमायस“ पुछलखिन । पृथ्वीनारायण बसहा बैलजकाँ ‘ हँ ’ मे मूडि डोलौलनि । बजलाह – ‘ उपत्यकाक भ्रमणक’ घूरि रहल छी । सम्भावनाक नगर छै काठमाण्डू उपत्यका ….। –‘ ठिके कहलिऐ …. हमरो आबा–जाही लगले रहैए….हमरासभक त पारिवारिके सम्बन्ध अछि उपत्यकाक मल्ल राजालोकनि संग । ’ हेमकर्ण बजलाह । पृथ्वीनारायण सिंहाशनपर बैसते पूर्व योजना अनुसार कनक सिंह उठि खाढ भ’ गेल । अपन मित्र राजकुमार दिग्बन्धनके संवोधन क ’ बाजल – ‘ अहाँके किछु गन्हाइए नै ? ’ –‘ धूर छोरु ….पहरियाभूत्तसभके … ने कपडा पहिरबाक ईलम आ ने खाय–पिबयके ठेकान …..गन्हेबै करतै ने ……’ । सिडकी पाछा“क महिलालोकनि फेरस“ ठठाक हंसि पडलीह । बैठारमे सेहो जोड जोडसँ हँसय लगलाह । पृथ्वीनारायणके मूह तामससँ लाल भ’ गेल । ओ पुनः उठि खाढ भेलाह । ‘ अपमानोके सिमा होइछै ….’ पृथ्वीनारायण बजलाह । मुदा हेमकर्ण बीच बचाव क’ स्थितीके नियन्त्रित कएलनि ।
बातचित पुन ः आगाँ बढल । हेमकर्ण पुछलखिन – समधि ( नरभुपाल शाह ) समधिनी ( चन्द्रप्रभा आ कौशल्या ) ठिक छथि ने ? गुरु भानु जोशीक हालचाल केहन छनि ? पृथ्वीनारायण जवाफ देलथिन– सभ ठिक छथि । राज्यक आर्थिक अवस्था कने कमजोर भ’ गेल छै…..निक करबाक जोगाडमे लागल छी ।’
एहिबीच दिग्बन्धन सेनक करैलासन बोल निकलल । ओ अपन बहिनोसँ पुछलखिन – ‘ अपनेक बाबूजीके एकगोट छौडासंग जे प्रेमलीला चलि रहल छल से चलिते अछि कि समाप्त भेल ? सुनै छी अपनेक बाप एहि छौडाक प्रेममे पागल भ’ गेल छथि ? ( पृथ्वीनारायण शाहके पिता नरभूपाल शाहके एकगोट नोकरसंग अप्राकृतिक सम्बन्ध छल । जहन नरभूपाल शाहके मृत्यु भेलै त ओ छौडा अलगे चित्ता सजाक सति गेल छल । इतिहासकार ः बाबुराम आचार्य ः )
दिग्बन्धनके एहि प्रश्नसँ पृथ्वीनारायण अत्यन्त आक्रोशित भ’ गेलाह । आहत पृथ्वीनारायण अपन सैनिकके ईसारा कएलनि चल ….आ स्वयं उठि विदा होबय लगलाह । हेमकर्ण स्वयं बाट रोकि खाढ भ’ गेलखिन । कहलखिन – सासुरके चौलके गंभीरतासँ नहि लेल जाओ …… आ राजकुमार दिग्बन्धनके आदेश देलखिन – ‘ जमायबाबूके सलामीक बन्दोबस्त हो । ’
पृथ्वीनारायण सिंहाशनसँ उठिक खाढे रहथि । दिग्बन्धन हाथ पकडि कहलथिन – सलामीक वास्ते सवारी भेल जाओ ….। आगाँ आगाँ दिग्बन्धन पाछाँ पाछाँ पृथ्वीनाराण , तकरा पाछाँ कनकसिंह बानियाँ आ सभसँ पाछाँ मकवानपुर एवं गोरखाक सैनिक । सभके सभ अस्थायी सैनिक मञ्चदिसि आगाँ बढल । पृथ्वीनाराणके सैनिक मञ्चके उपर खाढ कराओल गेल । मकवानपुरके सैनिक सलामीक वास्ते उपस्थित भेल । ढोल, मृदंग, सिंहाक धून बीच पृथ्वीनारायणके सलामी देल जा’ रहल छल । मुदा सलामी दैत काल मकवानपुरक सैनिकसभ जूता नहि निकालने छल । से पृथ्वीनारायण शाहके नागवार गुजरलै । क्रोधित भ’ गोरखा सैनिकके आदेश देलखिन– एहि असभ्य सैनिकसभके सिर काटिले….। गोरखा आ मकवानपुर सेनाक बिच युद्ध मचि गेल । खबर हेमकर्ण सेनधरि पहुचल त ओ घोडापर सवार भ’ स्वयं सैनिक मञ्च पहुचलाह । बीच बचाव क’ स्थितीके नियन्त्रित कएलनि ।
अनुनय विनय क’ जमायके पुन ः सिविरमे लाओल गेल मुदा पृथ्वीनारायण अपन अपमानके बिसरि नहि सकल छलाह । रातिएमे पडा गेलाह । पाछा“ अपन दूत मार्फत पत्र पठौलनि – ‘ एक दन्ता हाति र नवलाषि ( नौ लखिया ) हिराको हार दिन्छौ भन्या डोला पनि लैजाला , दिन्नौ भन्या काढि तलवारसित पनि लौजांला । ’ अर्थात् जाधरि नौखला हार आ एकदन्ती हाथी दहेजमे नहि देब ताधरि गौना क’क’ बेटीके नहि ल’ जाएब ।
जहन ई पत्र राजा हेमकर्ण आ राजकुमार दिग्बन्धनके समक्ष वाचन कएल गेल त दिग्बन्धनके प्रतिक्रृया रहैक –हम पहिनहि कहने रही ओ सार धनके लोभसँ मकवानपुरमे विवाह कएने छल ।।
श्रोतः मधेसका इतिहास, डा.सिके राउत, गैरआवासीय मधेसी संघ प्रथमसंस्करण २०१३ दिसम्बर
श्री ५ पृथ्वीनारायाण शाहको संक्षीप्त जीवनीः पृष्ट १०० । लेखक ः बाबूराम आचार्यः प्रकाशकः साझा प्रकाशन ,पुल्चोक ललितपुर, प्रकाशकः श्री ५ महाराजधिराजका संवाद सचिवालय, राजदरवार नेपाल ,दोश्रो संस्करण २०६१ साल ।