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मैथिली कथाः टोटमा





हरिमोहन झा । जन्म  १८ सितम्बर, १९०८; कुँवर बाजितपुर, वैशाली (बिहार) ।
सन् १९३२ में पटना विश्वविद्यालयसँ दर्शनशास्त्रमे एम.ए.। एकरबाद पटना विश्वविद्यालयमे दर्शनशास्त्रक प्रोफÞेसर आ फेर विभागाध्यक्ष रहल रहथि । अपन बहुमुखी रचनात्मक अवदानसँ मैथिली साहित्यक श्री–वृद्धि करएवला विशिष्ट लेखक । भारतीय दर्शन आ संस्कृति–काव्य साहित्यक मर्मज्ञ विद्वानक रूपमे विशेष ख्याति अर्जित कएलन्हि । एहि सन्दर्भमें खट्टर काका’ जेहन बहुचर्चित व्यंग्यकृति विशेष उल्लेखनीय । मूल मैथिलीमे कÞरीब २० पुस्तक प्रकाशित अछि । प्रमुख कृतिः ‘कन्यादान’, ‘द्विरागमन’ (उपन्यास); ‘प्रणम्य देवता’, ‘रंगशाला’ (हास्य कथा); ‘खट्टर काका’ (व्यंग्य–कृति); ‘चरचरी’ (विधा–विविधा)।
निधनः २३ फरवरी, १९८४

हरिमोहन झा
बहुत दिनपर परदेशसँ चल अबैत रही। घरक हाल–चाल बुझना सात वर्ष भऽ गेल रहय। बुझितहुँ कोना ? चिट्ठी–पत्री होइत तखन ने ? परन्तु हम त रूसल रही। कहाँ–कहाँ घुमलहुँ रुपैयाक हेतु–जमदेशपुर, कलकत्ता, रंगून। और सात घाटक पानि पीबि आइ पुनः देश जा रहल छी। जहाँ नूनूकका छथि, भाइ छथि, भौजी छथि, मुन्ना अछि। सभक लेल सनेस नेने जाइत छिऐन्ह। मुन्ना मोटर देखितहि नाचय लागत। भौजीके साड़ीक कोर खूब पसिन्द पड़तैन्ह। भाइ ओ नूनूककाक आगाँ रुपैयाक मोटरी पटकि देबैन्ह। जे ’लियऽ आब भेल? एही खातिर दिन–राति महाभारत मचैत छल। आब त खुशी भेलहुँ! पहिने लिखि देने रहितिऐन्ह त स्टेशनपर घोड़ी अबैत। आब एकाएक हमरा देखि कऽ सभ गोटे अकचकाइ जैताह !

यैह सभ सोचैत, मनमे नाना प्रकारक भावना करैत चल अबैत छलहुँ। जखन ट्रेन बरौनी पहुँचल त मातृभूमिकें मनहिमन वन्दना कय कहल–आब भगवानक इच्छा हैतैन्ह त एके पहरमे अहाँक दर्शन भऽ जाएत। एहि सात वर्षमे नहि जानि की–की परिवर्तन भेल हैत? गामपर के कोना अछि? कोनो गौआसककं भेट भऽ जाइत त सभटा हाल–चाल बुझि जैतहुँ।

हम यैह सोचैत छलहुँ कि देखाइ पड़लाह घूटर कका–झोरी, कम्बल ओ गंगाजलक सुराही हाथमे नेने, प्लेटफार्मपर दौड़ैत ! जेना कोनो निधि भेटि गेल हो, तहिना प्रसन्नता भेल । खिड़कीसककं माथ बाहर कय सोर कैलिऐन्ह–’घूटर कका !

घूटर कका हमरा देखि चकित भऽ गेलाह–’के? श्रीकान्त ? हौ, तों कतयसककं ? इह। कतेक दिन पर तों ऊपर भेलाह ? एना केओ घर–द्वार छोड़ैत अछि ?

हम प्रेमपूर्वक हुनक चरण–धूलि लऽ अपना लग बैसा कऽ पुछलिऐन्ह– कहू घूटर कका, सभ कुशल–मंगल छैक ?

घूटर कका बजलाह–बड़ बढियाँ। तों अपन कहह, कोना छलाह ? एकटा चिट्ठीओ–पत्री त कहियो दितहुन।

हम बात बदलैत कहलिऐन्ह–एखन कहाँसककं आबि रहल छिऐक?

घूटर कका बजलाह–सिमरियाघाट गेल छलहुँ। गंगाजल लेबक हेतु।

हम– कहू, घूटर कका, बैदगीरी खूब चलैत अछि कि नहि ?

घूटर–देहातमे की चलत ? केओ कि दाम खर्च करऽ चाहैत अछि ?

ई कहैत घूटर कका हमरा दिस गंभीर दृष्टिसककं तकलैन्ह। जेना कोनो बात लक्ष्य करैत होथि। पुनः दोसरा दिस ताकि एक दीर्घ निःश्वास छोड़लन्हि। हमरा हृदयमे धुकमुक्की होमय लागल–रे बाप ! की बात छैक ?

पुछलिऐन्ह–घूटर कका, हमरा ओहि ठाम सभ लोक निकें अछि कि ने ? कोनो अनिष्ट घटना त नहि भेलैक अछि?

घूटर कका बटुआसककं तमाकू बाहर करैत बजलाह–अहाँक घोड़ी मरि गेल।

हम–अहा! घोड़ी मरि गेल? हम कहैत छलहुँ जे एहि बेर गाम जाएब त ओहिपर खूब बूलब। कोना मुइलैक?

घूटर–दलानक पछुअतिमे बान्हल रहय। जखन दलानमे आगि लगलैक त ओही संग ओहो जरि गेल।

हम–आहि रौ बाप! हमर दलानो जरि गेल ? से कोना ?

घूटर–जखन घरमे आगि लागल त दलानोमे धऽ लेलकैक। जा लोक मिझाबय–मिझाबय ता साफ भऽ गेलैक। रातिक समय रहैक कि ने!

शंकित चित्तसककं पुछलिऐन्ह–कोनो लोक त नहि नोकसान भेलैक ?

घूटर–नहि। लोक नहि जरल। किएक त….

हम फक दऽ निसास छोड़ल। खैर, लोक त बाँचल। चीज–वस्तु जान बचतै त फेर भऽ जेतैक। परन्तु जौं मुन्ना…..। ई सोचैत देह सिहरि उठल। पुछलिऐन्ह–की? ई आगि कोना लगलैक?

घूटर कका बजलाह–अहाँक नूनूककाक एकादशाह दिन जे दूध औंटल गेलैन्ह तकरे आगि….

ई सुनैत हमरा आँखिक आगाँ अन्हार भऽ गेल। ऐं! आब नूनूककाकें नहि देखबैन्ह। हे भगवान! हम केहन पापी भेलहुँ!

हमरा आँखि पोछैत देखि घूटर कका बजलाह–एना केओ अधीर होअए? जन्म–मरण त लोककें लागले रहैत छैक । एहि संसारमे केओ जीबय आयल अछि ?

हम हिचकैत–हिचकैत पुछलिऐन्ह– हुनका की भेल छलैन्हि ?

घूटर–कोनो तेहन रोग–व्याधि त नहि छलैन्हि । अहाँक भौजीक एकोदिष्ट कएने रहथि, ताहि दिन पेटमे तेहन दर्द उठलैन्ह जे…..

हाय! हाय! भौजी पहिनहि बिदा भऽ गेलीह! आब बैगनी कोरक ओ साड़ी के पहिरत ?

हम फफकि–फफकि कऽ कानय लगलहुँ। घूटर कका चुप करैत बजलाह–एना केओ बताह होअए? ओ लक्ष्मी छलीहि। चलि गेलीह। जे दिन जिबतथि से त कष्टे होइतैन्ह !

हमरा मुँहपर विस्मयबोधक चिह्न देखि घूटर कका बजलाह–ओ तककं जहियेसककं विधवा भेलीह तहियेसककं….

आहि रौ बा! भैयो नहि रहलाह! हम पुक्की पाडि़ कानय लगलहुँ। भैया–भौजी दुनू विदा भऽ गेलीह! आ मुन्नाकें के रखने हैतैक? कोना हैत?

बड़ीकाल धरि नोर–झोरक आवेशसककं बाजि नहि सकलहुँ। ओम्हर घूटर कका निर्विकार भावसककं तमाकू चुनबैत रहलाह। कतेक कालपर कोनहुना कंठसककं पुछलिऐन्ह– मुन्ना कोना अछि?

घूटर कका ठोरमे तमाकू रखैत बजलाह–ओकरे शोकमे त अहाँक भाय मुइलाह। कोना ने होउन्ह? ने खैनाइ ने पिनाइ….

हम निष्पन्द रहि गेलहुँ। जे अन्तिम बन्धल छल सेहो टूटि गेल। भैया, भौजी, नूनूकका, मुन्ना सभ समाप्त। आब ककरा खातिर गाम जाउ? और जा कऽ की देखब? संसारे उजडि़ गेल! ने ओ राम ने ओ अयोध्या! आब के मोटर पाबि नाचत? के साड़ी देखि कऽ खुशी हैत। ककरापर स्नेहक अभिमान करबैक?

तावत गामक स्टेशन पहुँचि गेल– समस्तीपुर जंक्शन। हम छातीकें वज्र कऽ कऽ बजलहुँ– घूटर कका, हम त आब सोझे हरिद्वार जायब। संन्यासीकें रुपैया–पैसासककं कोन काज? अहाँ ई मोटरी लऽ लियऽ और साले–साले हुनका लोकनिक निमित्त ब्राह्मण–भोजन करा देल करबैन्ह।

घूटर कका पुनः हमरा दिस गम्भीर दृष्टिसककं तकलन्हि। जेना किछु लक्ष्य करैत होथि। पुनः बजलाह–हककं, ठीक। आब उतरह।

हम अनुरोध करैत कहलिऐन्ह–अहाँके एको रती दया नहि होइत अछि? हमर घर उजडि़ गेल, निर्वंश भऽ गेलहुँ और अहाँक लेखे धन सन! जाउ, हमर जे डीह–डाबर अछि से अह्नीं जोति कऽ खाएब।

परन्तु घूटर ककापर एको रत्ती प्रभाव नहि पड़लैन्ह। ओ तमाकूक सिट्ठी फेकैत हमरा हाथ धऽ नीचा उतारय लगलाह। हम हाथ झाड़ैत कहलिऐन्ह–देखू घूटर कका! हम कहि दैत छी! जबरदस्ती नहि करू। हम अपना होशमे नहि छी।

घूटर कका बजलाह–तों वैह श्रीकान्त रहि गेलाह। एखन धरि नेनमति नहि छुटलौह अछि। तोहर घर–द्वार लोक–बेद सभ ओहिना अनामति छौह। चलह, उतरह।

हम कहलिऐन्ह–घूटर कका! परतारू जुनि। आब हम बच्चा नहि छी।

घूटर कका–तोरा विश्वास नहि होइत छौह त चलि कऽ देखि लैह।

हम–त मुन्ना जीबिते अछि ?

घूटर–हककं।

हम–और भैया?

घूटर–ओहो।

हम–भौजी?

घूटर–ओहो।

हम–आ, नूनूकका ?

घूटर.–खूब मस्त छथुन्ह।

हम–और घर ?

घूटर–ओहो बाँचल छौह।

हम –तखन दलानो नहि जरल ?

घूटर–नहि ।

हम–और घोड़ी ?

घूटर–खूब हिनहिनाइत छौह।

हम–तखन अहाँ एतेक बना कऽ किऐक कहलहुँ ?

घूटर–हौ! बरौनीमे हम देखल जे तोरा हिचकी उठल छौह। ओना बन्द नहि होइतौह। तैं हम एतेक काल धरि तेहने–तेहने बात कहैत ऐलिऔह जाहिसककं खूब आतंक भऽ जाओ। ई हिचकीक टोटमा थिकैक। देखै छह नहि, आब हिचकी कहाँ गेलौह ?

हमरा फक्क दऽ प्राण आएल। घूटर ककाक पैर पर खसैत कहलिऐन्ह–धन्य छी महाराज ! हमर प्राण छुटैत छल और अहाँ टोटमा करैत छलहुँ। तेहन चिकित्सा करय लगलहुँ जे हमर प्राणे जाय लागल ! बाप–रे–बाप! ओतेक अशुभ बात सभ कोना फुरल? हमरा त एखन धरि देह काँपि रहल अछि।

घूटर कका–की करबहक? हुनका लोकनिक आयुर्दा और बढि गेलैन्ह। हिचकीक ’टोटमा’ एहिना होइत छैक।