संतोष कर्ण व्यंग्य लिखएमे माहिर छथि । हिनक व्यंग्यशैलीमे रेडियो नाटक बहुत चर्चित रहल अछि । कविता आ टिप्पणी सेहो गजबक रहैत अछि । एहिमे पढि़ व्यंग्य कविता
♦ संतोष कर्ण
स्वार्थ के सेहो सीमा होइछ,
निस्वार्थ के नै कोनो बन्धन !
लालच तहन झल्कैत अछि,
जहन पद लेल होइछ गंजन !!
वार्ता, छलफल करैत करैत,
सब भेल छथि अतिरंजन !
भोग विलाशक भुतमिर्गी के,
उतारहुँ हे दुःखभंजन !!
भैर ढिंह्र खा क, बैँस गमा क,
फेर ओहे करै छथि मंजन् !
लाजो नहि,निर्लज्ज केहन,
महा बुडिराज,बुडिनन्दन् !!
हमरे आहाँक कर्मक फल जे,
पटमुर्खसब बनल रविरंजन !
विधना के लिखल कोना मेटायब,
तें करैत रहु अभिनन्दन !!
करैत रहु…