प्रा.डा. सुरेन्द्र लाभ नेपालक चर्चित अर्थशास्त्री छथि । राष्ट्रिय योजना आयोगक सदस्य रहि चुकल डा. लाभ रामस्वरुप रामसागर बहुमुखी क्याम्पस जनकपुरधामसँ अवकासप्राप्त प्रोफेसर छथि । साहित्यमे सेहो निरनतर लिखैत छथि । कथा रिपोर्ताज हिनक अलग प्रकारक अबैत अछि । हिनक एकटा टटका रिपोर्ताज पढ़ी –
– सुरेन्द्र लाभ
‘हे गूगल आई बाहरके मौसम केहन छै ?’ होम गूगलके पुछलियै ।सेन्ट्रल एसीक कारणे घरक भितर त’ तापक्रम सामान्य रहै छल ।मुदा बाहरके तापक्रम कोना की छै से भितरसँ बुझबामे नहि अबैत छल।ताँए प्रत्येक दिन टहलए जाएसँ पहिने एहि यन्त्रसँ पुछिलेल करियै।
‘ बाहरके तापक्रम अखनि अठारह डिग्री अछि ।’ यन्त्र झट्टसँ जबाब देने छल ।अनुकूल मौसमकेँ सूचना पबिते टहलए निकलि गेलहुँ।ई कथा रिपोर्ताज अमेरिकाक अछि ।
टहलैत टहलैत पुन: ओएह समतोलाबला कोना पर पहुँच गेलहुँ जतए प्रायः प्रत्येक दिन किछु क्षण हेतु बिलमि जाइत छलहुँ ।देखलियै समतोलाक गाछ अपन स्थान पर आने दिन जकाँ ओहिना ठाढ अछि.. अबिचल।हमरा दिस ताकि जेना विहुँसि उठल हो। हमरो ठोर पर मुस्कान छिरिया गेल । बुझाएल पात सब पहिनेसँ बेसी हरियरकञ्च भ’ गेल छै आ’ समतोला त’ पातोसँ बेसी जेना फरल होई । आब त’ पाकियो निकसँ गेलै । एक एकटा समतोला अपन नाम अनुरूप रंग पकडि लेने रहैक। रससँ भरल पुष्ट पुष्ट समतोला देखि मोन हुलसि गेल …कने लोभसँ भरि गेल। हाथ समतोलाकेँ छु लेबाक हेतु आगु बढि गेल ।मुदा नजरि परि गेल एकटा छोटछिन बोर्ड पर …अंग्रेजीमे लिखल रहै – ‘नो ट्रेसपासिङ’ अर्थात् अतिक्रमण नहि । तत्क्षण हाथ पाछु कएलहुँ । बस इएह दूटा शब्दपर समतोला पूर्णतया सुरक्षित छल । मात्र हमही नहि केयो गोटे नहि हाथ लगा रहल छल ।आश्चर्य लागल आखिर लोक अमेरिकामे एतेक अनुशासित कोना छैक ? अपना ओहिठाम पैघ पैघ छहर देवालो तड़पि कए लोक आम- लताम तोडि लैत अछि । फल त’ छोडू फुलो नै लोक छोडैए । प्रजातन्त्र मात्र शासन ब्यवस्थासँ नहि अपितु आत्म अनुशासनसँ सेहो चलैत छैक से अनुभूति भ’ रहल छल ।
किछु दिन मौसम खराब भेलाक कारणे बाहर नहि निकललहुँ । तथापि मोनमे समतोला चिन्तन सदति चलैत रहल । कहियो कोनो फलसँ अथवा फलक गाछसँ एतेक बेसी लगावक अनुभूति नहि भेल छल ।मुदा एहि सुदुर देशमे आबि ई समतोलाक गाछ हमरा एतेक आकर्षित किया क’ रहल छल ? भ’ सकैए एहि असगर जीवनक ई परिणाम होइक ! घरसँ बाहर निकलिते लगैत छल जेना अपरिचयक सागरमे बहि रहल होई ।कत्तहु केयो नहि।मौन धारण कए निकलैत छलहुँ आ’ पुन: मौन धारण कएनहि घर घुरैत छलहुँ । भितर जेना किछु सुखा रहल छल । अन्तरमनमे एकटा पैघ रेगिस्तान बनि रहल छल । एहने मनोदशामे एकदिन अपना समक्ष एहि समतोलाक गाछकेँ ठाढ देखने रहियै आ’ मोनमे भेल रहए जे गाछो बिरीछमे त’ प्राण होइछै ।बस ओही क्षणमे ओहि गाछसँ दोस्ती भ ‘ गेल छल ।ने ओकरा लग कोनो भाषा रहैक ने हमरा लग । ओहो मौन छल ..हमहुँ मौन छलहुँ। बस एक दोसरकेँ देखि मुस्किया रहल छलहुँ। संवाद सहजहि स्थापित भ’ गेल छल । लगैत अछि, भाषा दू प्राणी बिच जखन देवाल ठाढ करैत छै, तखन मौनता ओकरा ढाहैत छै ।
एक राति … पानि टिपिर टिपिर पडि रहल छलैक । एकटा बोरा उठौलहुँ आ’ बोरा भरिकए समतोला लेबाक हेतु गाछ लग पहुँच गेलहुँ । आगा देखलहुँ पाछाँ देखलहुँ कतहु केयो नहि रहैक।झट झट समतोला तोरैत गेलहुँ आ’ बोरा भरैत गेलहुँ ।बोरा भरि गेलाक बाद पीठ पर लादि प्रस्थान कएलहुँ ..पहिनुके डेग कहिने कोना पिछडि गेल आ’ सम्पूर्ण समतोला सड़क पर छिरिया गेल छल ।फक्कसँ आँखि खुजल … जा’ ई त’ सपना छल ।निन्नेमे पएर जोरसँ झटका गेल छल ।कहियो काल सपना कतेक नीक लगैत छैक ? काश.. !
एहिठामक स्थानिय समतोला होइतो छैक सुअदगर । स्टोर(दोकान)सबमे विभिन्न देशक समतोला भेटत ।सभक दाम भिन्न तहिना स्वाद भिन्न । मुदा कोनो देशक समतोलाक स्वाद जी पर नै चढत ।स्थानीय उत्पादन मात्र भेटत स्थानीय हाटमे जकरा एत’ फार्मर्स मार्केट कहैत छैक । एहि ठाम प्रत्येक दोकानवला टेस्ट हेतु फल सबके छोट छोट टुकडामे काटिक’ रखने रहै छै ।ग्राहक सब नि: शुल्के पहिने स्वाद चिखैत अछि आ’ तत्पश्चात् चित बुझला पर किनैत अछि ।बहुत बेर स्थानीय समतोलाक स्वाद ल’ लेने रही । भ’ सकैए इहो सब कतौ मन मस्तिष्कमे घुमि रहल हो ।
दोसर दिन मौसम ठीक रहै । घुमए निकललहुँ । आई संकल्प कएलहुँ जे समतोला दिस किन्नहु ने ताकब । ई हमरा लोभी बनादेलक , पापी बनादेलक । अई नगरमे आनके ई लोभी पापी किया नहि बना रहल छै ? इहो यक्ष प्रश्न हमर माथमे घुमरि रहल छल ।अई ठाम समतोला लोक नै खाई छै सेहो बात नै।लोक एतए हेल्थ कनसस नै अई सेहो बात नै ।खुब निकसँ फलफूल खाइत अछि ।बरु अपना ओहि ठाम एहि प्रसंगमे जेना नवजागरण आएल होइक । आइयो मोन अछि जे बच्चामे समतोला खेबाक हेतु बिमारे पड़ए परैत छल ।स्थानीय स्तरमे समतोला, सेव आदि फलसभक उत्पादन होइक नहि आ ‘ बजारमे आबए वला फलफूल बेस महग रहै । ताहू सँ दस पन्द्रह वर्ष पूर्व त’ बजारोमे उपलब्ध नै रहै । ताँए एहि फलफूल सबके सम्बन्धमे लोककेँ बुझलो नै रहै ।एकबेर हमर परोसी भाइ साहेब दरभंगा पढए गेलाह ।मेडिकल कॉलेजके नाम बहुत सुनने रहथि ।ताँए सर्वप्रथम ओत्तहि घूमए गेलाह । ओत्त’ देखलनि एकटा रोगी अपन बेडपर परल परल कोनो गोल चीज खा’ रहल छल ।जिज्ञाशा रखलापर पता चललै जे ई सेव नामक फल छै ।ओ तुरन्त मेडिकल कलेजके गेट पर जा’ सेव किनलैंह आ’ अपन रूममे खाटपर सुति सेव खाए लगलाह । एकटा मित्र अएलै आ’ पुछलकै – ‘ की क’ रहल छी ?’
‘ सेव नामक फल खा’ रहल छी ।’ भाइ साहेब जबाब देने रहथिन ।
‘ खाटपर परल छी , मोन खराब अई की ?’ मित्रक जिज्ञाशा रहै।
‘ नै अई फलके सुतिए क’ खाएल जाई छै ने , ताँए ।’ भाई साहेब स्पष्टिकरण देलखिन ।
मित्र भभाकए हंसने रहै।
भाई साहेब आइयो अपन ई संस्मरण बहुत रुचि पूर्वक सुनबैत छथि आ’ हंसबैत छथि। समय एहनो रहै। मुदा आई समय बदैल गेलै ।
ईएह सब सोचि डेग आगु बढि रहल छल कि अकस्मात पएर ठमकि गेल । हम ओएह समतोलाक गाछ लग पहुँच गेल छलहुँ ।संकल्प मोन परल – हमरा कोनो हालतमे एहि गाछ दिस नहि देखबाक अछि । मुडीकेँ कसिकए निचाँ झुकएलहुँ।तावतेमे कतहुसँ सन् सन् बतास सिहकए लागल । तखनो ने माथ उठौलहुँ । फेर साँय साँय हवा चलए लागल ।मोनमे भेल एहन हवामे कहिने कतेक समतोला झरि गेल हएतै? मोनमे प्रश्न ऊठिते नजरि उठि गेल ।वस्तुत: आठ दस गोट दाना त’ झरिए गेल रहैक। हाथ फेर आगु बैढ़ गेल छल । मुदा नजरि ‘नो ट्रेसपासिङ’ बोर्ड पर गेल आ’ पुन: हाथ पूर्ववत घुरि आएल छल । मोने मोन ‘क्षमा करब दोस्त’ कहैत आगु निकलि गेलहुँ।’ दोस्तीक पहिल शर्त ‘स्वार्थविहिनता’केँ पूरा करैत गर्वक अनुभूति भ’ रहल छल ।
घर घुरैत काल सोचि रहल छलहुँ – आखिर जिनका घरक सिमानामे गाछ रहैक ओ कियाक नै समतोला तोरैत छल ? यदि खएबाक नै रहै तखन रोपलन्हि किया ? की फलक गाछ रोपब मात्र शौख भ’ सकैए ? यदि शौखे रहैक आ’ अपन घरके लोक कोनो कारणसँ नहि खा’ रहल छलैक तखन बेचि सकैत छल अथवा परोसीके द’ सकैत छल अथवा ‘नो ट्रेसपासिङ ‘ के बोर्ड हटा सकैत छल । मुदा कहिने किया एतेक रसगर समतोलाके अनाहकमे माटिमे विलीन क’ रहल छल ? ओहि गृह स्वामी पर मोन खौंझा गेल।
किछु दिन अहिठामक तापक्रम बहुत नीचा रहल । कतेको दिन धरि मोन मसोसिकए घरेमे कैदी जकाँ बन्द रहलहुँ ।मुदा मन छटपटाइत रहल छल अपन वृक्ष मित्र हेतु । कहिने एहन खराब मौसममे समतोलासब केँ की भेल हएतै ? की पात सब ओहिना हरियरकञ्च हएतै ? की गाछ पूर्ववते ठाढ़ हएतै ? अनेक आशंका मोनमे घर क’ रहल छल ।मुदा कएल की जाए, अपना हाथमे किछु ने छल ।
समय एहने बेजाय मौसममे बितैत गेल आ’ एक दिन अपन देश घुरि जएबाक घडी सेहो उपस्थित भ’ गेल । काल्हि भोरे प्लेन छल आ’ आई एतुक्का मौसम अत्यधिक खराब छल । तापक्रम त’ न्यून छलैहे, ताहिपर बिहारि आ’ पानि सेहो बेजोड रहैक ।पूरादिन अही आशमे कटल जे मौसम आब अनुकूल हएतै तब अनुकूल हएतै आ’ तखन एकबेर मित्रसँ भेट क’ क’ चलि आएब । मुदा से भेल नहि आ’ साँझ परि गेलैक । आब हमर धैर्य जबाब द’ देलक । गूगलसँ पुछलियै त’ ओहो बाहर निकलबासँ मनाही क’ देलक । तथापि हमर मोन मानलक नहि आ’ हिम्मत क’ क’ हम बाहर निकलि गेलहुँ । दौगैत दौगैत समतोलाक गाछ लग पहुँचलहुँ ।
ई की ? गाछ बिहारिमे पुरापुरी ठुठ भ’ गेल रहैक । नीचाँ समतोलाक पथार लागि छल ।एक एकटा समतोला आ’ एक एकटा पात झरि गेल रहैक। एहनोमे मोन भेल यदि बोरा अनने रहितहुँ त’ आई बोराभरि समतोला ल’ जैतहुँ ।सपना सत्य भ’ जाइत । ‘ नो ट्रेसपासिङ’ बला बोर्ड सेहो कतहु नजरि नहि आबि रहल छल ।तथापि मोनकेँ संयमित कएलहुँ । ठुठ गाछ दिस तकलियै – अति उदास छल ।अपना सखा सन्तानसँ दूरी बढ़लाक बाद जे पीडा मनुक्खकेँ होइत छैक , किछु तेहने पीडा गाछोमे देखलियै । मोन अवसानसँ भरि गेल । व्यथित मोने कहलियै – ‘बाई दोस्त ।’ दोस्त मौन छल आ’ दुखित छल । किछु जबाब नहि देलक। ओकर व्यथाक अनुभूति सहजहि क’ रहल छलहुँ। बुझाएल जेना गरा बकौर लागल छै आ’ आँखि नोरसँ डबडबा गेल छै । भारी पएर आ’ भारी मोन नेने बिदा भेलहुँ । ओहि ठुठ गाछ आ’ अपनामे सादृश्यता लागि रहल छल ।ई केहन समय चलि अएलै ? ई केहन विकाशक प्रारूप ठाढ़ भ’ गेलै , जतए संतानके बिछुरब नियति भ’ गेल छै ।ईएह सब सोचि हमरो कण्ठ अवरुद्ध भ’ गेल छल …।
पहाड सनक अजुका राति काटब आ’ काल्हि भीडसँ भरल अपन सुनसान देश घुरि जाएब ।सम्भवत: बाट भरि हिन्दी सिनेमाक एकटा पुरान गीत गुनगुनाइत चलि जाएब- ‘देखे जमाने की यारी .. बिछडे सब बारी बारी …।’