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मैथिल प्रशान्तक ९ गीत, गजल आ कविता





मैथिल प्रशान्त


भगवतीक समदाओन
नोरेसँ मैया हम, चरण पखारल,
खोंछिमे देल दूभि धान ।
पाथर हृदयक’, केलियै विसर्जन,
पाथरे भ’ मा भसान ।।
जग लाए भने अहाँ, छी जगमाता,
मिथिलामे धीया समान ।।
दै छी सप्पत मा बिसरब नै नैहर,
नैहरपर राखब ध्यान ।।
जाहि मंदिरमे मा, साँझ बाती देलियै,
ओहो मंदिर आइ विरान ।
पंडित–पुजेगरी, अपन गृह गेला,
समेटला मा वेद पुराण ।।
कानैत खिजैत मा, प्रशान्त हिया हारल,
परुकेँ लाए आब ओरियान ।
मूर्ति भसत मा हे, ममता ने भासत,
ममता भरोसे संतान ।।
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सामा चकेबा गीत
हाटेसँ डाला बाबा, दिय’ न’ बेसाहि सामा खेलब यौ।
भैयाक स्नेह लेल, बहिन बताहि सामा खेलब यौ ।।
एलैए घुरि फेर कातिककेर महिना ।
सामा खेलब हम सभ मिलि बहिना ।।
तुर्छैत भौजी हमर, बड़ रे ओछाहि सामा खेलब यौ ।
सामा गढ़ब हम अपनहि हाथे ।
दुख दरिद्रा जड़तै, चुगलाक लाथे ।।
भैयासँ लागौ ककरो, लागौ झरकवाहि सामा खेलब यौ ।
भैयाक औरुदा संगे अन्न धन बरसय ।
आस भरोस हिअ मजरय कलशय ।।
सुखक सभदिन अंगना, उठय उजाहि सामा खेलब यौ ।
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लक्ष्मी मैया हे गीत
अन्न धन रहय भरल, हमरो बखारी लक्ष्मी मैया हे ।
हमरा हुआए नै उधारी लक्ष्मी मैया हे ।।
सुख सटिया आबय, दुख दूर दिन मा ।
भोग लगायब हम, अहाँक पसीन मा ।।
घेरय नै हमरा कहियो, बैसल बेकारी लक्ष्मी मैया हे ।
अहाँ सौभाग्य दै छी, दरिद्रा मेटाबी ।
विष्णुक वामा अहाँ, मान बढ़ाबी ।।
अहीं लाए खेती बारी अहीं लाए पैकारी लक्ष्मी मैया हे ।
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गजल एकटा मतला चारि टा शेर
की छैक प्रेम करेजाक बात करेज टा देखल जाए
आँखिसँ झटहा बस एकबेर साधिक’ फेकल जाए
क’ ले भतबरी दूगोला बाँटि ले खेत पथार सभटा
माए बाप गोसाओनिक सीरा कि सेहो बेढ़ल जाए
खोलि देतै खोंछि पोछि लेत नोर तानि लेत घोघ
कोनो बेटीसँ नैहरकेर नूआ कोनाक’ फेरल जाए
मगहिया चुट्टीक मुँहमे सन्हिएल छौक जे मुँगबा
आ न’ फेरसँ एहि बिहरिकेँ खुनल उधेसल जाए
गककरामे छौ कंठी आकि विचारधाराक गरदामी बौआ
एहि बरदकेँ कत’ बान्हल जाए कत’ खुटेसल जाए
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गीत
सौम्य रुप धरिअ वर देहु शिवानी ।
सत सत नमन तोहे मातु भवानी ।।
तुअ अक्षर स्वर तुअ मा वाणी ।
तुअ तमसा तुअ रौद्र रुप रुद्राणी ।।
तुअ हिय ममता करुणा कल्याणी ।
सुत मति गति अधम परम अज्ञानी ।।
तुअ वग्ला मंगला मंगल वरदानी ।
अभय करिय धय शीश निज पाणी।।
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भगवतीक गीत
जग पतिए नहि, नहि अछि चिंता, मासँ कहबै मा पतिएतै ।
आशीषक घी मा ढ़ारै छै , आसक दियरि, किए मिझेतै ।।
पूजा पाठ आ भजन की किर्तन ।
सभ छै फुसिये बिना समर्पण ।।
पाप ने पाँगब, लोढ़ब अरहुल, तिरथ जाक’ मा की हेतै ।
संघर्षक महिखामे जिनगी जान छै ।
अहाँ लए अरजल फूल आ पान छै ।।
मन सुद्ध हो, भाव हो निर्मल, निज जननी सभ द’ देतै ।
पाठ नै जानी शप्तशतीक हम निर्बुधिया ।
मा बिसरल कहू नीज पूत के कहिया ।।
तोरे लग खेखनत, प्रशान्तो जननी, दूर कतौ नहिए जेतै ।
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छठि गीत
आगेँ समागेँ निरोगि, रखिह’ दीनानाथ हौ ।
अरघ अरघौती ल’ उठबै छी हम हाथ हौ ।।
हम त’ मागै छी सीथ सेनूर, अहिबात हौ ।
दिह’ कोरामे ललन हमरा, ललना साथ हौ ।।
रही नहिरे ससुरे जुड़ायल, हमहुँ तात हौ ।
रखिह’ मंगल सन्मुख, अमंगल कात हौ ।।
तोहर किरिन दै छै प्राण, देखबै बाट हौ ।
तोरे लाए प्रशान्त सजौलक, पोखरिक घाट हौ ।।
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भगवती गीत
रहबै बुड़बक, दुनियाँ कहतौ, बेटा नै उजिएल छौ ।
हमरेपर तोहर गे मैया, मोन किए तमसाएल छौ ।।
अलबटहा बकलेलहा कहिक’, देने लोक उपाधि अछि ।
राग द्वेष घृणा सन हमरा , मानल धेने बियाधि अछि ।।
परम अपाटक छौ बिलटौआ, भरि जगसँ कतिएल छौ ।
तोहर ममताकेर छिज्जा मा, ककरापर नै पड़ै छै ।
क्षणमे विपति संपत्तिमे बदलै, ध्यान तोहर जे धरै छै ।।
हमरे घरक बाट गे मैया , सुखो किए भुतिएल छौ ।
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कविता
नहि बतियाइत अछि आब कविता
मनुक्खसँ, बाट–घाट
नदी पहाड़सँ
दू गोलाक’ नेने अछि कविता
दियाद–बाद, सौजनी–जयबारसँ
त’ की
कविताकेँ आब नहि रहलैए
लोकसँ संबंध–सरोकार
नहि बाँचल छैक मिसियो
दया–दरेग संवेदना
नहि,
पाथर नहि भेलैक अछि कविताक हृदय
कविता सभटा देखैत अछि
कविता सभटा भोगैत अछि
मुदा कविता आब टोकैत नहि अछि
गुम्मी लाधि बैसल अछि कविता
गुमसैन महकैत
कोनो किताबक पन्ना सभमे ।
उपसंहार –
कोनो – कोनो कविता बजैत अछि
बड़ बजैत अछि
घरक कोनो बूढ़ – पुरान जकाँ
मुदा,
कान बात कहाँ दैत छैक
आइकाल्हुक छौंड़ा – माड़रि सभ ।