अजित आजाद
नहि रहला गुरुदेव कामत
साज केँ कनैत छोड़ि निकलि गेला निःशब्द
छोड़ि गेला किछु गीत, किछु प्रश्न
हृदय पर चाँछ दैत लिखबा लेलनि श्रद्धांजलि
चढ़बा लेलनि अपन फोटो पर माला
मुदा फूलक पीड़ा के बुझत
जे मौलाए नहि चाहैत अछि कहियो
हारमोनियम पर पड़ल हुनक अँगुरीक छाप
एखनहुँ गाबि रहल अछि उदासीक कोनो धुन
पघलि रहल अछि सगरमाथा
किन्तु पघलि नहि सकल समाज
अंततः नहिये रोकि सकलियनि हुनका
चलि गेला असंख्य चटिया सभकेँ छोड़ि
के समेटि सकत हिनक आसन
नहिए रहला गुरुदेव कामत
असुर सभक अछैत जीवन भरि रहला सुर मे
आलाप लेल अजबारल कंठ मे
कहियो नहि अँटौलनि आत्मालाप
आडम्बर केँ नहि बनौलनि मेघडम्बर
पैरोडी सुनितहि कान सँ पहिने मुनि लैत छला नाक
ठुमरी सँ हलसैत मोन मे उमकैत रहलनि जयजयवंती
बागेश्री सँ मालकोस मे सन्हियेबा काल
साँझ मे फेंट दैत रहथि राति
यमन कल्याण केँ भोर सँ खींच आनथि बेरूपहर
राग मे औनाइत हुनक मोन-प्राण
तकैत रहल सुरमा सलहेस आजीवन
रागिनीक छौंक सँ
लोकभास केँ ठेकबैत रहला आकाश
एहि सभक अछैत
की कहियो नहि अभरता गुरुदेव
बिसरल हैत की हुनक मुस्की
द्वादशाक अंतिम घओना सँ
यद्यपि उबरि आयल छी येन-केन-प्रकारेण
मुदा हुनक गीत सँ नहि उबरि सकत लोक
हिनक ऋण सँ त’ नहिये भ’ सकत उबार
शब्दकोशक सभ सँ भारी शब्द थिक उबरब !