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मैथिली कथाः एक दिन





– सुरेन्द्र लाभ  ।

’अरे शाश्वत पोता ?’ शाश्वतकेँ देखि बाबा भावविह्वल भ’ गेलाह ‘अचानक ? आऊ आऊ बहुत खुशी लागल।’
शाश्वत अपन यन्त्रमे देखि जवाब देलकै आ’ बाबाकेँ हाथमे दोसर ’ च्याटट्रान्स अडियो भिडियो ’ नामक यन्त्र पकडा देलकै ।बाबाक हाथमे अबिते यन्त्र बजलै–’ जी बाबा हमरो सबकेँ बहुत खुशी लागल’ । बाबाकेँ बुझबामे चलि अएलैक जे आब वार्तालाप अही मसिनकेँ माध्यमसँ सम्भव हएत।कारण समयक अंतराल संग दुनुक भाषा भिन्न भ’ गेल छलैक ।ओ त’ अपन मातृभाषा मैथिलीए बाजि रहल छलाह , मुदा पोता कहिने कोन भाषामे गिटीर पिटीर क’ रहल छलैक? एकदिस ओ डबडबाएल आँखिए पोताकेँ देखि रहल छलाह त’ दोसरदिस एहि अद्भुत यन्त्रकेँ ।
बाबा अति प्रसन्न छलाह ।आई वर्षों बाद हुनकर पोता गाम आएल छलैक । शाश्वत जहिया बहुत छोट रहै तहिए ओ एतए आएल छल, आब त’ लक्का जवान भ’ गेलैक।प्रश्न सभक बाढि हुनक मन मस्तिष्कमे उमडि घुमडि रहल छलैक । कोन प्रश्नसँ प्रारंभ करै से बुझबामे नहि आबि रहल छलैक।अंततः यन्त्रक माध्यमसँ शाश्वत वार्ताक शुरुवात कएलकै –’ बाबा ई हमर होमएवाली कनियाँ छै, नाम छै अकारी। जापानके नागरिक छै।’
’ हेलो बाबा ’ अकारी ओम्हरसँ बाबाकेँ सम्मान प्रकट कएलकै ।बाबा मोने मोन सोचि रहल छलाह – ने पोता चरण स्पर्श कएलनि, ने पुतहु।ओ जिनगीभरि सम्पूर्ण टोलमे घुमि घुमिक’ बच्चासबकेँ सिखबैत रहलाह जे अपनासँ जेठकेँ चरण स्पर्श करबाक चाही।आ’ आई अपने घरमे संस्कार विलुप्त कोना भ’ गेलै ? तथापि करेज पर पाथर राखि कहलखिन – ’ आयुष्मान भवः।’ अकारी झुकिक’ आभारक भाव व्यक्त करैत ई कहैत भन्सा घर दिस विदा भेलीह – ’ हम किछु खएबाक हेतु नेने अबैत छी ।’
’ बौआ ई कनियाँ कोन भाषा बजै छथिन ?’ बाबाक जिज्ञासा छल ।
’बाबा ई जापानी बजै छै,अपन मातृभाषा।आ’ हमर मातृभाषा भेल अंग्रेजी । कारण मम्मी पापा हमरासँ सबदिन अंग्रेजीमे बात कएलनि । पाँच वर्षसँ हम जापान मे रहि रहल छी। मुदा तीन वर्षसँ अकारीसंगे छी त’ जापानी बाजि रहल छी ।हमारा सभक बच्चाक मातृभाषा जापानी हएतै । अगिला वर्ष हमारा सभक विवाह हएत से त’ बुझले हएत।’ शाश्वत स्थितिकेँ फरिछा रहल छल।मुदा बाबा ओतबे ओझरा रहल छलाह‘ एहि मातृभाषाक चक्करमे आ’ अपन विस्मृतिमे ‘ ।
हुनक बेटा सेहो एक दिन अहिना कहने छलैक– ’ बाबुजी हम एकटा जर्मन लड़कीसँ विवाह करए जा’ रहल छी से त’ बुझले हएत।’ ओ गुम्म भ’ गेल छलाह ।आईयो की बजितथि? ओ ओहि गरीब रामेक कथा पढ्ने छलाह जे पहाड़के ढाहि ढाहि खेत बनबैत गेल ‘ आम्दनी बढ़बैत गेल‘ बेटाके डाक्टरी पढ़बाक हेतु अमेरिका खर्च पठबैत गेल ‘आ’ एकदिन डाक्टर बेटा अपन अमेरिकन कनियाँ संगे अएलै जरुर, मुदा घुरि जएबाक लेल । अबिते ओ घोषणा क’ देने रहैक जे हमसब एहि खोभार सनक घरमे नहि रहि सकब ‘ बाबूजी,हमरा पालि पोसि क’ पढा लिखाक’ अहाँ जेना अप्पन कर्तव्य पूरा कएलहुँ तहिना हमरो अपन कर्तव्य पूरा करबाक अछि ‘ आ ’ ओसब उडि गेलै अमेरिका ।रामेक आँखिसँ जहिना नोर ढ़बकल रहै , कथा पढि हुनको आँखिसँ ओहिना नोर बहल रहै । तथापि करेजाकेँ मजबुत करैत ओ बेटाकेँ उच्च अध्ययन हेतु अमेरिका पठौने छलाह। प्रारंभमे ओ सोचलनि – कथा त’ कथे होइत छैक , ओकर वास्तविक जीवनसँ कोन सम्बन्ध ? पाछु बुझबामे अएलैक जे वास्तविक जीवन कथाक जीवनसँ बेसी कठोर होइत छैक । बेटा जतएसँ उच्च शिक्षा आर्जन कएलनि ओत्तहि नोकरियो कएलनि आ’ अपने संगे कार्यरत जर्मन कन्यासंगे विवाहो कएलनि । दूटा सन्तान भेलन्हि ,जाहिमे सँ बेटी कोनो आने देशमे बैस गेलै आ ’ बेटा शाश्वत जापानमे, जे अखनि हमरा समक्ष बैसल अछि ।
’ बाबा! बाबा !’ यन्त्रसँ आवाज अएलै । बाबाक तन्द्रा भंग भेलै– ’ की बौआ ?’
देखलनि – टेबुल पर तीनटा गिलासमे वाईन भरल राखल छै । शाश्वत आ अकिरा अपन अपन हाथमे एक एकटा गिलास उठौलकै आ कहलकै – ’ बाबा चियर्स ! गिलास उठाउ जल्दी ।’ बाबाके काटु त’ खून नहि।आईधरि अपन कोनो बालबच्चाक बात कटलनि नहि ।सदैव परिवारमे पूर्ण प्रजातान्त्रिक वातावरण रखलनि।मुदा ई की ? किछु बुझ्बामे नहि आबि रहल छलनि कि फेर पोता आ पुतहुके आवाज अएलै –’ बाबा जल्दी , चियर्स !’ यन्त्रवत बाबाक हाथ बढ़लै गिलास दिस आ मुँहसँ आवाज निकललै – ’ चियर्स ।’
रातिभरि बिछानपर बाबा छटपट करैत रहला ।की भ’ रहल छै ई सब ? ई सब सत्य छै ,सपना छै अथवा सिनेमा छै ?– सोचैत रहला। सोचैत रहला‘ मुदा संस्कार आ कुसंस्कार बिचक पातर डोरी भेटि ने रहल छलैन्ह ।विकास के परिभाषा हाथ ने लागि रहल छलैन्ह।हमसब आगू जा’ रहल छी कि पाछू – निर्णय नहि क’ पाबि रहल छलाह ।की ठीक की बेठीक , बुझि नहि पाबि रहल छलाह। बिनु प्रतिवाद कएनहि समयक धारसंग बहैत रहलाह ..से आईए नहि जिनगीभरि‘ आ’ सब बातके सिनेमा जकाँ देखैत रहलाह । आईयो हुनका मोन छन्हि जहिया धीयापुता सब छोट रहै ..घर सेहो छोट रहै आ अपन नोकरी सेहो छोट रहै..एक दिन जेठकी बेटी स्कूलसँ घुरल रहै.. कनैत। ओकर कोनो संगी ओकरा खौँझा देने रहैक जे तोहर घर केहन झोपडी बला छौ आ’ हमर देख दू महला पक्काबला । बेटीक नोर बरदास्त नै भेलै ।क्रमशःएकदिस खेत बेचब प्रारंभ भेलै आ’ दोसरदिस मकान बनब ।जहिना जहिना खेत बिकाई तहिना तहिना कोठली थपाई ।बेटीसभक पढाई समाप्त भेलै‘ विवाह भेलै‘ अपन अपन सासुर गेल ।मकान बनिए रहल छल क्रमशः । बेटा अमेरिका चैल गेल ..आ बुढी अर्थात् बच्चासभक माय एहि दुनियाँसँ चलि गेलीह। एक दिन मकान पूरा त’ भेलैक।मुदा ‘एक एक क’ सब साथ छोरैत गेलै आ’ ओ एहि विशाल मकानमे एसगर‘ नितान्त एसगर दिन गुजारए लगलाह।ओ बरोबरि सोचैत रहैत छथि जे जहिया लोक रहै बेसी त’ कोठली कम रहै आ’ जहिया कोठली बेसी भेलै त’ लोक कम भ’ गेलै। एहन एहन बहुत रास घटना दुर्घटना,उतार चढाव स्मृति पटल पर सिनेमाक रील जकाँ ससरि रहल छलैक,जकर ओ मौन दर्शक मात्र बनिक’ रहि गेल छलाह। जे जेना भेल होइक जिनगीमे आब कत्तेक लेखा जोखा करओ? आई त’ ओकर प्रिय पोता आ’ ओकर होबएवाली कनियाँ घर आएल छै ।ओकरे सभक खुशीमे ओकर खुशी छैक ‘आई खुशीक दिन छै , अन्यथा किछु ने सोचबाक चाही – से सोचि सोचि ओ गहिर निन्नमे निभेर भ’ गेलाह ।
भोर भेलै। बाबा उठलाह । उठिते आश्चर्यचकित भ’ गेलाह । देखलनि – घर बाहर चारु दिस बड़का बड़का बाकस ।मोने मोन सोचलनि ..की छै? कत्त सँ अएलै? काल्हि त’ नहि रहैक? शाश्वत जिज्ञासा शान्त करबाक हेतु आगु बढ़ल – ’ बाबा अहाँक लेल किछु जरुरी सामान अछि । जापानेसँ अर्डर क’ देने रहियै।अहाँ सुतले छलहुँ तखने द’ गेल।’
अकिरा एक एकटा सामान बाबाकेँ देखबए लगलीह – ’ बाबा ई अछि कुकिङ रेन्ज , एहिमे सब प्रकारक भोजन बनि जाएत । आ’ ई देखू माइक्रो वेभ, भोजन यदि ठण्डा भ’ जाए त’ एहिमे गरमा लेब । भन्सा घरसँ बाहर धुआँ फेकए लेल ई अछि – इकझौष्ट हुड यंत्र ।बाबा देखू ई अछि डबल डोर बाला फ्रिज , एहिमे फल फूल ,तरकारी सब किछु राखब। एहि बक्सामे भाडा वर्तन अछि।ई अछि डिस वासर । ई अछि वासिङ मसिन आ’ ई ड्रायर मसिन अछि ।ई अछि निटओ रोबोट ,पूरा घर घुमैत रहत आ’ कोठलीसब साफ करैत रहत ।’ अहिना बहुतरास चीजसब कनियाँ देखबैत गेलै। बाबा देखैत रहला सबकिछु सिनेमा जकाँ , जीवनकेँ सिनेमा जकाँ देखब हुनक आदति भ’ गेल छलन्हि।तथापि फुसफुसएलाह – ’ एतेक मसिन उपकरणकेँ फिट के करतै ? एकरासब के चलौतै के ? कोना ?’
’ बाबा तकर चिन्ता अहाँ बिल्कुले नै करु ।’ शाश्वत जबाब दैत कहलकै – ’हम एक्कहि बेर एक दर्जन मिस्त्रीकेँ बजा रहल छी , मुश्किलसँ दू तीन घण्टाक भितरे सब फिट भ’ जाएत । आब रहल बात दैनिक संचालनकेँ त’ ओकरो व्यवस्थाक’ देने छी , एम्हर देखियौ ।’ कहैत दूटा नमहर बाकस दिस ल’ गेलै ।बाकस खुजलै त’ दूटा मनुक्ख निकललै – एकटा पुरुष दोसर स्त्री ।
’ ई की ?’ बाबा चौंकि गेलाह ।
’ बाबा ई दुनु मनुक्ख नहि, मुदा मनुक्खसँ कमो नहि अछि ।ई दुनु रोबोट छै ।अहाँक सब काज क’ देत। भोजन बना देत, कपड़ा साफ क’ देत, सेवा क’ देत ।’ अकिरा समझौलकै ।
’ मुदा ई चलतै कोना ? एकर भाषा की छै ? ’ एहि आश्चर्यजनक जन्तुकेँ देखि बाबा सबकिछु जनबाक हेतु उत्सुक छलाह।
’ एकर स्विच अन करबै त’ तुरन्त चलए लगतै। जकरालग ईसब मात्र दस मिनट रहै छै सएह भाषा बुझए आ’ बाजए लगैत छै ।अहाँलग दस मिनट रहतै आ’ एकरा सभक मातृभाषा मैथिली भ’ जएतै।एकरा पोता पोती बुझु बाबा।हमसब त’ किछु नै क’ सकलहुँ, कमसँ कम इहोसब सेवा करत त’ किछुओ कर्तव्य हमसब पुरा कएलहुँ से बुझायत।’ शाश्वत भावुक भ’ रहल छल ।दुनु रोबोटकेँ स्विच अन क’ देलकै ।
’ यदि दुनु बिगरि गेलै तखन ?’ बाबाक प्रश्न छलैक।
’ कोनो प्रकारक गडबडी हएतै त’ सर्वप्रथम हमरा जानकारी भ’ जाएत।हम ओत्तहिसँ मरम्मत क’ देव ।आ ’ दोसर अहाँक हाथमे जे ’ च्याटट्रान्स अडियो भिडियो ’ नामक यन्त्र अछि ओहीमे एकरा ठीक करबाक क्षमता छै ।जखने रोबोट बिगरत तखने एहि यन्त्रके तीन, छौ,आ’ नौ नंबर दबा देबै ,बस स्वयं ठीक भ’ जाएत । ई कमाल के यन्त्र छै बाबा । कोनो जमाना मे अहाँ कथा,कविता सेहो लिखैत रही ने ? आब अहाँ बजैत जाएब ई लिखैत जाएत।एतबे नहि अहाँ कहबै कथा लिख दे त’ ई अपने मोनसँ कथा लिखि देत।कविता कहबै, कविता लिखि देत । कहबै फलाना पत्रिकामे पठाब’ त’ पठा देत ।एकरा कोनो प्रश्न पुछबै त’ क्षणमे जबाब लिखत ।एतबे नहि यदि अहाँके रामायण देखबाक मोन होए आ’ ओहिमे मानिलिय शाश्वत आ’ अकिराके राम सीताक रूपमे देखए चाहब त’ ई यन्त्र तुरन्त देखा देत ।’ शाश्वत समझा रहल छल।
बाबा अचम्भित छलाह । बुढापाक एहि अन्तिम क्षणमे कहिने केहन मोड़ आबि रहल छलैक? कहिने केहन सुखानुभूति भ’ रहल छलैक ? पोताक नाम शाश्वत ओएह रखने छलाह ।नामके रुपमे शाश्वत ठीक छै ,मुदा जीवनमे संभवतः शाश्वत किछु नहि होइत छैक ।मूल्य बदलैत छैक..मान्यता बदलैत छैक ..संस्कार बदलैत छैक …संस्कृति बदलैत छैक..भाषा बदलेत छैक ‘भेष बदलैत छैक ।कारण समय गतिशील छै ‘संसार परिवर्तनशील छै.. बस ईएह परिवर्तनशीलता मात्र शाश्वत छै।ओ इएह सब सोचैत रहला। कहिने कखन पोता आ’ पुतहु सामने आबि ठाढ़ भ’ गेल छलैक –’ बाबा आब हमसब जा’ रहल छी । घरमे सब समान फिट भ’ गेल।’
’ अँए जा’ रहल छी?’ बाबा उदासीक सागरमे डूबैत बजलाह ।
’ बाध्यता अछि , ओना चारुदिस सी सी टीवी कैमरा लगा देलहुँ। आब चौबिसो घण्टा हमरासभक नजरिक सामने अहाँ रहब ।’ पुतहु जबाब देलकै ।
’ ठीक छै ,पहिने मनुक्खसँ खाली भेल घरमे एसगर रहैत छलहुँ आब मसिनसँ भरल घरमे एसगर रहब ।’ कहैत बाबाक गला भारी भ’ गेलै।शाश्वतकेँ आँखिमे सेहो नोर डबडबा गेलै।
ओमहरसँ दुनु रोबोट दौड़ल अएलै आ’ बाबाक हाथ पकरैत बजलै – ’ बाबा आब अहाँ एसगर कहाँ छी ? हम दुनु छी ने अहाँक पोता पोती ।’ बाबाकेँ ढाढ़स देबएबला आखिर केयो त’ भेलै।बाबा दुनु नवका पोता पोतीकेँ जोरसँ करेजामे सटौलनि।शाश्वत आ’ अकिरा मुस्कियाईत ’बाई’ कहैत आगू बढि गेल छल अपन सात समुद्र पारक यात्रामे‘ ।