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गुरु उत्सव प्रसंग, भगवानोसँ बेसी गुरुक पूजन





सुजीत कुमार झा


जनकपुरधामक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल जानकी मन्दिरमे गुरु पूर्णिमाक अवसरपर भोरेसँ चहल पहल अछि । आन दिन राम जानकीकेँ दर्शन करबाक लेल भीड़ होइत अछि मुदा आइ मन्दिरक महन्थकेँ सेहो लोकसभ पूजा कऽ रहल छलाह । ‘गुरु पूर्णिमा अछि गुरुजीकेँ पूजा भऽ रहल अछि, एहि पूजामे हमहूँ सहभागि छी,’ मन्दिरक उत्तराधिकारी महन्थ रामरोशन दास कहलन्हि । भोरे जानकी मन्दिरक महन्थ रामतपेश्वर दास वैष्णवकेँँ ओ पूजा कएने रहथि । महन्थजीकेँ नेपाल भारतक विभिन्न स्थानमे करिब दश हजार शिष्य अछि ।
‘अधिकांश गुरु पूर्णिमामे अबैत छथि, जे नहिओ एलाह कोनो माध्यमसँ आशीर्वाद लेबे करैत छथि,’ महन्थजी कहैत छथि । एहने स्थिति नेपालक प्रमुख मठ मटिहानीक छल । ओ मठक मानमहन्थसँ आशीर्वाद लेबएवलाक भीड़ दिनभरि रहल । मानमहन्थ जगरनाथ दास वैष्णव कहैत छथि, ‘जे शिष्य अछि आशीर्वाद लेवए आएल छलाह, बहुतो एहनो एलाह ओ शिष्य बनलथि ।’
सदियोसँ धार्मिक महत्व रहल ई पावनिमे प्रातः स्नान कऽ अपन गुरुक समीपमे रहि समर्पित भऽ फलफूल तथा द्रव्य चढाकऽ गुरुक आशिर्वचन प्राप्त करएकेँ चलन रहल अछि । हिन्दु संस्कृतिमे कोनो तन्त्र साधना तथा मन्त्र सिखए लेल गुरुपूर्णिमाक दिनकेँ अति उत्तम मानल जाइत अछि ।
जानकी मन्दिर वा मठिहानी मठमे मात्र नहि हरेक गुरुक घरमे एहिना भीड़ देखल गेल । आनदिन मन्दिरमे भीड़ मुदा गुरु पूर्णिमा दिन महन्थजी लग भीड़ छल । गुरु भगवानोसँ बड़का होइत छथि जकर उदाहरण भीड़सँ सेहो लगाओल जा सकैत अछि । एहिसँ जुड़ल एकटा कथा सेहो चर्चित अछि । एकबेर एकगोटेक घर भगवान आ गुरु दुनू संगे एलाह । दुनू गोटेकेँ देखिते ओ व्यक्ति बहुत प्रसन्न भेलथि । आ भगवानकेँ गोर लागए आगाँ बढ़ला एहिपर भगवान हाथसँ रोकैत कहलन्हि, ‘हमरा नहि, पहिने गुरुकेँ प्रणाम करु हुनकासँ आशीर्वाद लिअ तखन मात्र हमरासँ ।’
संसारमे एलाक बाद जे सही मार्गपर चलब, जीवनकेँ सही अर्थमे जीबए सिखबैत अछि, जीवन जीबएकेँ उद्देश्य, परमात्मा आ एहि संसारक ज्ञान बतबैत छथि उएह गुरु होइत छथि । आब ओ किओ भऽ सकैत छथि । ओना सभसँ पहिल गुरु हमरसभक माए–बाबू होइत छथि । जेना गुरु अपन हरेक दिन शिष्यक नाम करैत छथि, ओहिना हरेक दिन गुरुक दिन होइत अछि मुदा गुरुक योगदानक लेल हिन्दू धर्ममे एकदिन मनाओल जाइत अछि, जकरा गुरु पूर्णिमा कहल जाइत अछि ।
शास्त्रमे ‘गु’ के अर्थ अंधकार वा अज्ञान आ ‘रु’ के अर्थ ओहिकँे निरोधकके कहल गेल अछि । तँए गुरुक विषयमे कहल जाइत अछि गुरु अज्ञान तिमिरक ज्ञानांजन छथि । अन्हारकेँ हटा कऽ प्रकाशक दिस लऽ जाएबलाके गुरु कहल जाइत अछि । ‘गिरति अज्ञानं इति गुरूः’ अर्थात् अज्ञानकेँ हटाकऽ ज्ञान प्रदान करएवलाकेँ गुरू कहल जाइत अछि । एहिप्रकार गुरू यथार्थ ब्रह्म छथि ।
अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,
चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः
गुरु तथा देवतामे समानताक लेल एकटा श्लोकमे कहल गेल अछि जे जहिना भक्तिक आवश्यकता देवताक लेल होइत अछि ओहिना गुरुक लेल सेहो । गुरुक कृपासँ ईश्वरक साक्षात्कार सेहो सम्भव होइत अछि । गुरुक कृपाकेँ अभावमे किछु सम्भव नहि अछि ।
गुरुक महिमा

गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवोमहेश्वरः ।
गुरुःसाक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवेनमः ।।
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं ।
तत्दपदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः

शङ्करं शङ्कराचार्यं केशवं बादरायणम्
सूत्रभाष्यकृतौ वन्दे भगवन्तौ पुनः पुनः ।
ईश्वरो गुरात्मेतिमूर्तिभेद विभागिने
व्योमवद् व्याप्तदेहाय दक्षिणामूर्तये नमः ।।
संसारमे गुरु शब्दकेँ ओजस्वी शब्दक रूपमे लेल जाइत अछि । गुरु महिमाक वर्णन करएमे कोनो भाषाक शब्दसभ अपुर अछि । एहिसँ बुझल जा सकैत अछि कोन प्रकारक महत्व रहल अछि गुरुक समाजमे । मैथिलीक साहित्यकार सेहो रहल संस्कृतिविद् डा. रेवतीरमण लाल कहैत छथि, ‘अन्य शब्दक तुलनामे गुरु शब्द उच्चारण कएलापर परमानन्दक अनुभूति होइत अछि । दुःख, कष्ट, समस्यासँ सतौलापर निवृति होबए बहुतरास उपाय करितहुँ अन्तिम समाधानक स्रोतक रूपमे गुरुकेँ स्मरण कएल जाइत अछि ।’ कोनो समस्या तथा जड् रहस्यकेँ निवारण करएकेँ क्षमता योग्य सद्गुरुसंग हएत एहन विश्वास कएल जाइत अछि ।
दुर्लभो विषयी त्यागी, दुर्लभं तत्त्वदर्शनं ।
दुर्लभं सहज्जावस्था सद्गुरोः करुणाविना ।।
गुरु स्वरूपधारी व्यक्ति विशेषकेँ मात्र नहि भऽ चेतनतत्व परब्रह्म परमात्माकेँ सेहो गुरुतत्क रूपमे आत्मसात कएल जाइत अछि । सांसारिक मिथ्या परिपञ्चक विषयकेँ बुझि कऽ ओ विषय त्याग करैत मोक्षगतिमे लागए लेल तत्वज्ञानक आवश्यकता पड़ैत अछि । तत्वज्ञान अथवा आत्मज्ञानक अभ्यास कएलासँ जीवनमे सहज अवस्था सृजना होइत अछि आ आत्मसाक्षात्कार अथवा आत्मानुभूति होबए लगैत अछि । आत्मसाक्षात्कार ई जीवनक मात्र नहि भऽ जन्मजन्मान्तरक तपस्याक बाद प्राप्त होबएवला बड़का पुरुषार्थ अछि । आत्मसाक्षात्कार भेलाक बाद जानएवला वा बुझएवला दोसर बाँकी किछु नहि रहि जाइत अछि । एहि प्रकारक आत्मीय ज्ञान साधना सद्गुरुक करुणाविना दुर्लभ रहल शास्त्रक उपदेश अछि ।
भगवानक अवतारी पुरुषसभ सेहो गुरु स्थापना कऽ मार्गदर्शन ग्रहण कएने उदाहरण देखल गेल अछि । सद्गुरुक कृपा पाबि आत्मसाक्षात्कार कएलाक बाद मनुष्य इश्वरत्व प्राप्त करैत अछि । इएह प्रक्रियासँ नर नारायण भेल कहल गेल अछि । अवतार लऽ कऽ अएल भगवान् राम, कृष्ण, बुद्ध एकर उदाहरण छथि । आत्मज्ञान एवं आत्मसाक्षात्कारक अवस्थामे पहुँचलाक बाद कोनो प्रकारक दुःख तथा अभाव नहि रहैत अछि । इएह कारणसँ आत्मज्ञानी गुरुजन अथवा महापुरुषसभ देने आशिर्वाद पहुँचैत अछि आ दुःखकष्टसँ मुक्ति भेटैत अछि से प्रगाढ विश्वास तथा मान्यता रहल अछि । आ गुरुजनक पूजा श्रद्धाभक्ति होइत आएल अछि । इएह कारणसँ गुरुकेँ शास्त्रसभमे सेहो परब्रह्मधरिक उपाधिसँ सम्बोधन कएल गेल अछि । गुरुकेँ आशिर्वादसँ अखण्ड महा–आत्माक दर्शन प्राप्त करए सकत समेत बताओल गेल अछि । कतेको सद्गुरु अपन शिष्यकेँ दिक्षित् करएकेँे क्षणमे ब्रह्मनाद् एवं ज्योतिस्वरूप परमात्माक श्रवण आ दर्शन कराबए सेहो सफल होइत छथि ।
गुरुक प्रार्थना करब जतेक सहज अछि, सहीमे सद्गुरुकेँ भेटाएब ओतेक सहज नहिओ भऽ सकैत अछि । ओशोकेन्द्रक प्रशिक्षक रहल विश्वलाल सिंह गुरुकेँ अर्थ अस्पष्ट करैत कहैत छथि, ‘जन्मकेँ कृतार्थ कराबए सकएवला ज्ञान देबएवला तथा मार्गदर्शन करएवला गुरु प्राप्त करब कनी भारिए अछि । जन्म पूर्वजन्मक ज्ञान होबए सकएवला मार्गदर्शन करएवला, आत्मज्ञानक द्वार उघारि देबएवला सक्षम गुरु वास्तविक सद्गुरु कहाइत छथि ।’
हमसभ गुरु शब्द सहज रूपमे उच्चारण करैत छी । सहीमे गुरु शब्दद्वारा देबए खोजने संदेशक विषयमे कमे चिन्तनशील होइत छी । सामान्य रूपमे सेहो गुरु शब्द उच्चारण करए सकैत छी । सामान्य व्यक्तिमे सेहो किछु नहि किछु गुरु रूप नहि हएत कहल नहि जा सकैत अछि । गुरु भेषधारीमात्र हएत ई नहि अछि । हरेक परिस्थिति, हरेक गुणकेँ गुरु रूप मानए सकैत छी । तथापि गुरु कहि बजावएवला वास्तविक केहन गुरुकेँ कहल जाइत अछि ? सभक लेल चिन्तनक विषय रहल अछि ।
‘अविद्याहृदयग्रन्थिबन्धमोक्षो यतो भवेत्, तमेव गुरुरित्याहुर्गुरुशब्देन योगिनः’ अविद्याद्वारा बन्द रहल ज्ञानरूपी हृदयग्रन्थीकेँ खोलिदेबएवला परम् व्यक्तिकेँ योगीसभ गुरु शब्दसँ बजवैथि छथि । संसारमे तीन प्रकारक विषयसभ होइत अछि सत्य, असत्य आ मिथ्या । वास्तविक गुरु ओ कहाइत छथि जे असत्य आ मिथ्याक परिपञ्चसँ मुक्त भऽ साधक अथवा भक्तवत्सल वा शिष्यकेँ सत्यतादिस बढ़ावए सकैत अछि । वेदमे कहल गेल अछि जेना ‘असतोमा सत्गमयः, तमसोमा ज्योतिर्गमयः, मृत्युर्मा अमृतंगमयः’ क ज्ञानक बोध करबैत मार्गदर्शन करएवला गुरु असली सद्गुरु छथि । गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास जयन्तीक महिमासँ एहने महान् गुरुक बजाओल जाइत अछि । हमरसभक अन्तरहृदयक खोजसँ तेहन सद्गुरुकेँ बजाओल जाइत अछि, जे हमरासभकेँ असत्यसँ सत्मार्ग दिस बढ़ावएवला शिक्षा देबए सकथि । जे गुरु मृत्युक महाभयसँ अमृतदिस जाएवला ज्ञानशक्ति देबए सकथि । जे गुरु अज्ञानसँ ज्ञानक ज्योतिदिस जाएकेँ मार्गदर्शन करए सकथि । जे गुरु हमरासभकेँ अपना भीतरक महागुरुकेँ चिन्हए सकए मार्गदर्शन करए सकए ।
आत्मोन्तीक उत्प्रेरणासभ सद्गुरुसभसँ समय समयमे होइत आएल देखल गेल अछि । सद्गुरु भगवान् श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवत गीतामे देने उपदेशसभ, भगवान् गौतम बुद्धक ‘अहिंसा परमो धर्मः’ क उपदेश सहित अवतारी पुरुषसभक उपदेशकेँ अवलम्बन करैत युगयुगक मानव समाज चलल अछि । सद्गुरु भक्त शंकुकेँ ‘महागुरु मनमे अछि’ अन्तर्मुखी भऽ कऽ खोजी करैत तोसभ अपना भीतर महागुरु प्राप्त करए सकैत छी कहएकेँ उदेश्य रहल अछि । एहि प्रकारक मार्गदर्शन बहुत सद् गुरुसभ कएने छथि । अध्यात्म मार्ग अन्तर्मुखी मार्ग अछि । इएह मार्गक यात्रासँ मोक्षगति प्राप्त करए सकैत छी । गुरु पूजा तथा व्यास जयन्तीक सन्दर्भ आ विशेषतासँ विशेष कऽ आध्यात्मिक वेद वेदान्तीय ज्ञान करा अज्ञानक घोर अन्धकारसँ छट्पटारहल व्यक्तिर्केँ आत्मोन्नतिदिस बढ़ावएवला सद्गुरुकेँ वास्तविक गुरुक रूपमे सम्बोधन करए खोजल गेल अछि ।
गुरु शब्द तथा गुरुप्रति कएल जाएवला श्रद्धाभक्ति एवं आस्था अपनामे शक्तिसम्पन्न अछि । गुरु श्रद्धामे बहुत बड़का शक्ति होइत अछि से पुष्टि एकलब्यद्वारा कएल गेल गुरु भक्तिक उदाहरणसँ सिखए सकैत छी । गुरुगुण आ गुरु उपदेशक अनुसरण कएलासँ जतेक गुरु आशीर्वाद प्राप्त होइत अछि अन्य देखावटी प्रवृतिसँ नहि भेटैत आएल जानकारसभ कहैत छथि । आ सही सद्गुरु सेहो अपन शिष्यद्वारा गुरु स्वरूपक सँ गुरुगुण आ गुरु उपदेशक अनुसरण एवं पालना करथि से चाहैत छथि । सद्गुरुसभसँ निर्दिष्ट मार्गोपदेक अनुसरण करएवला साधक तथा भक्तवात्सलकेँ सांसारिक जतेक दुःखकष्ट, अज्ञानता तथा अभावसभ अछि ओ सभसँ क्रमशः मुक्ति भेटत ताहिमे सन्देह नहि अछि ।
पुण्यक फल उदय भेलापर साकार स्वरूपमे सेहो ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु प्राप्त करए सकैत अछि । ज्ञानरूपमे ब्रह्मनिष्ठ रहल सद्गुरु बाहर रूपमे सामान्य अवस्थामे सेहो भऽ सकैत अछि । जकरा चिन्हए अथवा प्राप्ति करए साधक तथा भक्तवत्सल अर्थात शिष्यमे सदाचारिता, सत्कर्म एवं सकारात्मक चिन्तन आ आत्मज्ञानक ईच्छा होबए पड़ल । अपनामे ई गुणक विकास हुए आ तेहन सद्गुरुकेँ चिन्हए सकए आ तेहन सद्गुरुक प्राप्ति हुए कहि प्रार्थना करए पड़त । ब्रह्मनिष्ठ गुरुक आशीर्वादसँ चाहे ओे दैनन्दिनी सांसारिक कष्ट हुए, चाहे ओ दैविक कष्ट हुए, चाहे ओे आध्यात्मिक कष्ट हुए सभ हट्ैत अछि । तेहन ब्रह्मसाक्षात्कार कएने सद्गुरुक सान्निध्यता प्राप्त हुए से एहि अवसरमे अन्तर्हृदयसँ प्रार्थना करी । तहिना निराकार रूपमे सेहो अपना भीतर रहल महागुरु जकरा परब्रह्म परमात्माक अंश चेतनतत्वक रूपमे अनुभूति करए सकैत अछि । जकर बोध भेलाक बाद अहं ब्रह्मास्मि कहए सकैत छी, शिवोऽहम् कहए सकैत छी, सोऽहम् कहए सकैत छी । ओकर बोध अथवा अनुभूतिक लेल परमात्मासंग प्रार्थना करी । इएह गुरु पूर्णिमाक सार्थकता होबए सकैत अछि ।
सद्गुरुसभक मार्गदर्शनकेँ आत्मसात करैत ज्ञान तथा प्रकाश स्वरूप चेतनतत्व परब्रह्म परमात्माक अनुभूति करैत अहिंसा, दया करुणा, सात्विकता जेहन मानवीय गुण एवं व्यवहारक अभ्यासमे चित्तकेँ राखैत स्वबोध तथा आत्मोन्नतिक पराकाष्ठाकेँ गन्तव्य बनावए सकए । सद्कर्ममे मन लगा कऽ राखए जाहिसँ सत् सुख, सत् समृद्धि एवं सन्तोष प्राप्ति भऽ रहए, मोक्षक मार्ग प्रसस्त बनैत जाए ।
गुरुक भेद
जीवनमे गुरु आ शिक्षकक महत्वकेँ आबएवला पीढ़ीकेँ बतावए लेल ई पावनि आदर्श अछि । व्यास पूर्णिमा वा गुरु पूर्णिमा अन्धविश्वासक आधारपर नहि अपितु श्रद्धाभावसँ मनएबाक चाही जानकारसभ कहैत छथि ।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम सदैव अपन गुरु विश्वामित्र आ वशिष्ठक आगाँ संयम, शिष्ट आ निवेदक भावसँ रहथि छलथि । हरेक मार्गमे गुरुआज्ञा पालन करैत छलाह । स्वामी विवेकानन्दकेँ बच्चेसँ परमात्मासंग साक्षात्कार करबाक तीव्र ईच्छा रहन्हि । जखन हुनक भेट परमहंससंग भेल । तखन उएह गुरु परमहंसक आशीर्वाद आ गुरुकृपासँ ओ परमात्मासंग साक्षात्कार करए सक्षम भेलाह । आचार्य चाणक्य भारतीय उपमहाद्वीप समाजक विभूती मानल जाइत छथि । हुनक चाणक्य नीति हरेककालक लेल ओतवए उपयोगी मानल जाइत अछि ।
ओ अपन क्षमतासँ भारतीय इतिहासक धारा बदलि देलन्हि । बादमे अपना जेहन योग्य शिष्य चन्द्रगुप्त उत्पादन कएलथि । ओ सेहो भारतीय समाजमे बड़का योगदान कएने छथि । शंकराचार्य, कौटिल्य आदि सभ गुरुक महत्व उपर अपन–अपन धारणा रखने छथि ।
मनु प्राचीन भारतीय समाजक पथ प्रर्दशक मानल जाइत छथि । ओ गुरुक विभिन्न भेदबारे उल्लेख कएने छथि । हुनक अनुसार – जे द्विजसँ शिष्यक उपनयन संस्कार सम्पन्न कऽ कल्पसूत्र आ वेदान्त सहित हुनका वेद पढ़वैत छथि हुनका ‘आचार्य’ कहल जाइत अछि । जे जीविकाक लेल वेदक कोनो एक भाग अथवा वेदांग, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्दशास्त्र वा ज्यातिप पढ़वैत छथि हुनका ‘उपाध्याय’ कहल जाइत अछि ।
जे विधि विधान अनुसार संस्कार सम्पन्न करबैत छथि आ अन्न आदि भोजन पदार्थद्वारा बालककेँ पालन पोषण करैत छथि हुनका ‘ब्राह्मण गुरु’ कहल जाइत अछि । किओ वरण कऽ अग्निहोत्र, पूर्णिमा, अमावस्या आदि विशेष उपलक्ष्यमे यज्ञ तथा अनुष्ठान आदि सम्पन्न करैत छथि, हुनका ‘ऋत्विक’ कहल जाइत अछि ।
गुरुक आशीर्वाद सभक लेल कल्याणकारी आ ज्ञानवद्र्धक होइत अछि, एहिकारणेँ एहिदिन गुरु पूजनक उपरान्त गुरुकेँ आशीर्वाद प्राप्त करबाक चाही ।
गुरु पूर्णिमाक दिन गुरुक आशीर्वाद लेबए नहि बिसरी । हुनका प्रति अपन स्नेह आ कृतज्ञता प्रकट करी । जिनक प्रयास तथा आशीर्वादक कारणसँ हमरसभक व्यक्तित्वक निर्माण होइत अछि, तकरा नजरअन्दाज करब असम्भव अछि ।
अखार पूर्णिमासँ गुरु उत्सवक प्रसंग
अखार पूर्णिमाक दिन गुरु पूर्णिमा मनाबएके पाछाँ बहुत बडका अर्थ अछि । गुरु तऽ पूर्णिमाक चन्द्रमाजकाँ होइत छथि जे पूर्ण प्रकाशमान आ शिष्य अखारक बादलजकाँ होइत अछि । अखारमे चन्द्रमाक दर्शन बादलक कारण नहि होबए पबैत अछि । बादल रूपी शिष्यसँ गुरु सेहो घेराएल रहैत छथि । शिष्य जन्मेसँ अन्हारसँ घेराएल रहैत अछि । जाहिमे गुरु चन्द्रमाजकाँ प्रकाश भरल करैत छथि । तँए गुरुक पदके सर्वश्रेष्ठ मानल गेल अछि । तँए गुरु पूर्णिमा अखार महिनामे मनाबएकेँ परम्परा रहल अछि ।
गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतुक मौसममे होइत अछि । एहि दिनसँ साधुसन्तसभ ज्ञान दोसरमे चारि महिनाधरि बाँटल करैत छथि । ई चारि महिना मौसमक दृष्टिसँ सेहो सर्वश्रेष्ठ होइत अछि । एहि मौसमकँे अध्ययनक लेल उपयुक्त मानल जाइत अछि । जेनाकी सूर्यक किरणसँ गर्म भूमिके वर्षासँ शीतलता एवं बालि उब्जाबए लेल शक्ति भेटैत अछि ठीक ओहिना गुरुक शरणमे उपस्थित साधकके ज्ञान, शान्ति, भक्ति आ योग शक्ति प्राप्त करबाक शक्ति भेटैत अछि ।
इएह दिन महाभारतक रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यासक जन्म भेल रहन्हि । ओ संस्कृतक प्रकाण्ड विद्वान रहथि । व्यासजी चारु वेदक रचना कएने रहथि । इएह कारण हनक नाम वेद व्यास सेहो पड़ल । वेदकेँ ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद आ अथर्ववेद सहित चारि भागमे विभाजन कऽ एकर अर्थ बुझावए सरल संस्कृत भाषामे १८ पुराण आ १८ उपपुराणक रचना करएवला वेदव्यासक संस्मरणमे व्यास जयन्ती सेहो मनाओल जाइत अछि ।
व्यास पुराण आ उपपुराणक माध्यमसँ एहन सन्देश देबएकेँ प्रयास कएने छथि–
‘अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचन द्वयम् ।
परोपकार पुण्याय, पापाय परपीडनम्’ ।।
अर्थात् दोसराकेँ उपकार कएलासँ धर्म होइत अछि एवं दोसराकेँ पीड़ा देलासँ पाप लगैत अछि से मानवतावादी सन्देश देने छथि ।
व्यासजीकेँ आदिगुरु कहल जाइत अछि आ हुनके सम्मानमे गुरु पूर्णिमाके व्यास पूर्णिमाक नामसँ सेहो जानल जाइत अछि ।
भक्तिकालक सन्त घीसादासक सेहो इएह दिन भेल मानल जाइत अछि ओ कबीरदासक शिष्य छलथि । गुरुजनक संग–संग एहि दिन भगवान विष्णु आ शिवक सेहो अराधना कएल जाइत अछि । एहिदिन श्रद्धालु भोरे जल्दी उठैत छथि आ सूर्योदयसँ पहिने स्नान करैत छथि । एकरबाद ओ भगवान शिव वा फेर भगवान विष्णुक पूजा करैत छथि आ हुनक आशीष लैत छथि । बहुत भक्त एहिदिन उपवास सेहो रखैत छथि आ चन्द्रमा देखएसँ पहिने किछु नहि खाइत छथि ।
महत्वके बुझावएकेँ आवश्यकता

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः। तत्त्वज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

एकर अर्थ होइछ – गुरुसँ बढि़कऽ नहि कोनो तत्व अछि, नहि कोनो तपस्या अछि, आ गुरुक ज्ञानसँ बढि़कऽ कोनो ज्ञान नहि अछि । ऐहन गुरुक प्रणाम अछि ।
आजुक व्यस्त समाजमे सांस्कृतिक परम्परा सेहो सिकुरि रहल अछि । गुरूक संग आ सही आशिर्वचन तँ व्यक्तिकेँ हरेक क्षेत्रमे आ हरेक डेगमे सदति आवश्यक पड़ैत अछि । सही गुरूक संग भेटलापर व्यक्ति दिशाहिन होबए नहि सकैत अछि । कतहुँ नहि भटकि सकैत अछि । मुदा पूर्विय उच्चकोटीक दर्शन एखन ओझलमे पड़ल अनुभूति कएल जा रहल अछि ।
समाजक सभ क्षेत्रमे आधुनिक बनएकेँ होड़बाजीमे पश्चिमीकरण आबि रहल अछि । समाज पश्चिमी जीवनशैलीसँ अभ्यस्त होबए लागल अछि । संगहि हमरसभक अमुल्य निधि मानलजाएवला सांस्कृतिक धरोहर उपर अनवरत रूपमे प्रहार भऽ रहल अछि ।
नव पुस्ताकेँ ई गरिमामय सम्पदाक महत्वक आवश्यकता सही अर्थमे बुझावए नहि सैकि रहल छी । ताहिकारणेँ नव पुस्ता सहजे पश्चिमी जीवनशैलीकेँ अंगिकार करब पसिन करैत अछि । गुरुकुलीय शैक्षिक प्रणालीक स्थान आइ रेसिडेन्सियल होस्टल लेने अछि आ उपनयन संस्कार सम्पन्न कऽ पच्चिस वर्षधरि गुरुआश्रममे वितावएवला जीवनशैलीकेँ एखन लगभग तीन दिनक ब्रतबन्ध संस्कार कऽ नाटकीय ढङ्गमे गुरुशिष्य परम्परा निर्वाह करएकेँ प्रयास भऽ रहल अछि ।
ताहि कारणेँ हरेक बात गुगल मार्फत् खोजैत गुगलकेँ असल गुरु मानएकेँ संस्कारमे मज्जा लेबएवला हमरसभक नव पुस्ताकेँ कोना असली गुरुक महिमा बताओल जाएत आजुक अभिभावक असमंजसमे परि रहल अवस्था अछि । मुदा प्राचीन आचार्यसभ देने उपदेशकेँ व्यवहारमे उतारए सफल भेलापर मात्र सही अर्थमे गुरु पूर्णिमा मनौने सार्थक हएत जानकारसभ कहैत छथि ।
विद्यां ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्। ।
संस्कृतक ई श्लोकसँग ई आलेखकेँ समाप्त करैत छी जकर अर्थ होइछ विद्या (ज्ञान) विनय (विनम्रता) दैत अछि, विनयसँ पात्रता (योग्यता) अबैत अछि, पात्रतासँ धन अबैत अछि, धनसँ धर्म (सही आचरण) होइत अछि, आ धर्मसँ सुख भेटैत अछि ।