जनकपुरधाम ।
ई दृश्य प्रायः हरेक मेलामे भेट जाएत । मेला माने एखनो आमलोकक लेल होइत अछि ! मेलामे जाएवलासभ कम पैसामे सेहो पूजापाठसँ लऽ कऽ अन्य काज कऽ लैत अछि । ई दृश्य सेहो कहि रहल अछि होटल वा लाँज खाली नहि अछि तँ कि भेलैक ? हम सडकेपर सुति सकैत छी, खुलोस्थानमे सुति सकैत छी । कुम्भ जाएवलासभ रहएकेँ हिसाबसँ नहि जाइत अछि । लक्ष्य रहैत अछि – स्नानक फेर कहुँनाकऽ राहि काटि लेलहुँ आ भोरमे वा तँ स्नान नहि तँ घर दिस प्रस्थान ।
जाढक बाबजूद हजारो व्यक्ति अहिना खुलामे रहल छथि । हिनकासभकेँ एकर चिन्ता नहि अछि रहएकेँ लेल स्थान खोजल जाए । खाएकेँ लेल सेहो भोजनालयकेँ चिन्ता नहि रहैत अछि । झोडामे चुरामुरही सहितक सामानसभ रखने रहल कतहुँ बैसि कऽ खा लेलक । एहिठाम तँ लाइटिगंक सेहो व्यवस्था अछि जँ नहिओ रहत ओहिसँ हिनकासभकेँ मतलब नहि अछि । कहुनाकऽ राति बिताएब । बहुतो लोक एहन भेटता गाडीमे सीट नहि अछि तइओ कोनो बात नहि कहुनाकऽ लटकि कऽ यात्रा कऽ लैत छथि ।