♦ प्रा. डा. सुरेन्द्र लाभ
दू दिन पानि परलै आ’ जनकपुर जलमग्न भ’ गेलै।सडक पर पानि.. गलिमे पानि .. आङनमे पानि। जेम्हरे देखू तेम्हरे पानि।बारह बिघा मैदान त’ जेना झील बनि गेल होइक । दू दिन पहिने जत्त’ बच्चासब फुटबल आ’ क्रिकेट खेला रहल छल आई ओसब अई झीलकेँ रील बना रहल छल । कहैत छैक कहाँदन श्री राम अही मैदानमे होरी खेलने छलाह । तँए एहि मैदानकेँ रंगभूमि मैदान सेहो कहल जाइत छैक ।मुदा आई एकर केहन हालत भ’ गेलैक?
महेशबाबूक आङनमे भरि छावा पानि भरल रहै।कने उँचासपर घर रहै,ताँए कोठलीसब मे पानि नहि पैसलै। हैंड पाइप चलौलनि।भभाक’ पानि खसलै।ओहो हँसि परलाह। गेटके बाहर सडकपर चिन्तामणिजी पानिमे छपाक छपाक करैत जा’ रहल छलाह ।महेशबाबुकेँ हँसैत देखि पुछि देलखिन –
‘ की यौ महेशबाबू पानिसँ आङन् सडक सब भरल अछि तैयो खुशी देखि रहल छी, की बात ?’
‘ देखै नै छी आई दू अढाइ मासके बाद कलमे पानि आयल, ताँए ।’ – महेशबाबूक जबाब छल ।
प्रत्येक वर्ष चैत वैशाखसँ जनकपुरधाम मे पानिक हाहाकार भ’ जाइत छैक ।सब कल सुखाए लगैत छैक ।तीस पैँतीस वर्ष पूर्व त’ मात्र पचास फीट पर कल मे पानि चलि अबैक ।किछुए वर्ष वाद सवासय फीट पर कल गराबए केँ नौबत चलि अएलै। तत्पश्चात् अढाइ सय फीट पर मात्रे पानि आबए लगलै।किछुए वर्षके बाद इहो फेल भ’ गेलै आ लोककेँ चारि साढे चारि सय फीट पर कल गराबए परलै।एहिसँ पानि भभाक’ खसै।लोक प्रसन्न रहए लागल ।मुदा प्रसन्नता बहुत दिनधरि टिकलै नै ।वर्तमान अवस्थामे चैत वैशाखके बाद कलसब सुखाए लगैत छैक ।कहाँदन पानिकेँ लेयर नै पकरैत छैक । रातिमे दू बजे तीन बजे किछु समयके लेल लेयर पकरैत छैक । रातिमे लोक निन्द खराब कए वर्तनसब मे किछुओ पानि भरैत अछि ।जे कलमे मोटर लगएने छथि ओसब मोटर चलबैत छथि। आसकत्तीलोक सुतले रहि जाइत अछि आ’ दिनभरि पानिक हाहाकार पर चर्च करैत छथि।ई क्रम जा’ धरि वर्षाक मौसम नहि अबैत छैक ता’ धरि चलैत छैक ।वर्षा अबिते कलमे लेयर पकरए लगैत छैक आ’ लोक किछु राहत अनुभव करैत अछि ।
महेशबाबू आई ताँए प्रसन्न छलाह । आङनमे जमल वर्षाक पानि हुनका हेतु कोनो अर्थ नै रखैत छल ।
चिन्तामणिजी जनकपुरक जलमग्नतापर अति रुष्ट छलाह – शासन पर ,प्रशासन पर आ’ नगरपालिका पर । ओ महेशबाबुके कोनो जबाब नहि देलखिन । मुदा मोने मोन तमसाइत रहला – एकरे विकास कहैत छैक ? पेट काटि काटि लोक घर बनौलक आ’ तकरा विकासके नाम पर ढाहि सडक आ नाला बनादेलियै । मुदा दुईए दिनके पानिसँ सब विकास देखार भ’ गेल।बरबिगहा डुबल,सडक डुबल ,घर डुबल ।यदि वर्षा अहिना दू चारि दिन आओर भेल तखन भ’ सकैए जनकपुरक धरोहर जानकी मन्दिर सेहो डुबानक चपेटामे पडि सकैत अछि । तखन जनकपुरके की हएतै ? की जनकपुरक धरतीपर कोनहु सँकट त’ नहि मडरा रहल छैक ?वर्षा नहि होइत छै तखन कलसब सुखै छै आ तकर दुष्प्रभाव ई भसकैत अछि जे लोक एहि धरतीसँ पलायन कर’ लगतै । तखन … ? ओह… ! जनकपुरमे एतेकराश पोखैर छै तखन रिचार्ज किया नै भ’ रहल छै ? वाह रे सिटी अफ पौण्ड !एहि समस्या सबकेँ जिम्मेदारी ककरो छै कि नहि? ई सरासर नगरपालिकाकेँ अकर्मण्यता छै ।
‘ कोन गुन्धुन्नीमे लागि गेलहुँ चिन्तामणिजी ?’ महेशबाबु पुछलखिन।
‘ यौ सब सँ वडका दोषी स्थानीय सरकार अर्थात् नगरपालिका छै ।’ चिन्तामणिजी निचोडमे बात रखलखिन ।
‘ हमरा जनैत दुनु प्रकारक जल सँकटक समाधान नगरपालिके क’ सकैए , ओकरे कहल जाए ।’ महेशबाबुक प्रस्ताव आयल ।
‘ हमरा त’ नगरपालिका जाएमे डर लगैए ।’
‘ किया ‘
‘ कहाँदन किछु वर्ष पूर्व कोनो पत्रकार नगरपालिकामे किछु पुछए गेलैक कि ओकरासंगे मारिपिट कएल गेलै। तहिना सुनै छियै जे एकटा लेखक एकटा व्यंग पुस्तक लिखलकै – ‘ नरकपालिका’ नामसँ, त’ ओहि लेखकके दरबज्जा परसँ लगभग छौ मास धरि गन्दगी नहि उठौलकै ई नगरपालिका ।’
‘यौ अपने सबके भोटसँ त’ ई मेयर जीतल अछि । तँए पुरना बात छोडू आ’ चलू एकबेर ।’
‘अपने कहै छी त’ चलू ‘
एहने वार्ता करैत दुनूगोटे आगू बढलाह ।
भोलाक घरसँ आवाज आबि रहल छल ।
रे कुछ बाँचलो हऊ कि सब भिज गेलौ ? कहाँ कुच्छो बचलै बाउ । जेहो दू पसेरी चाउर रहो सब गेल्लो आ’ बिछौना तिछौनाके त बाते छोरह । बज्जर खसौ अई पानी के । एना कथिला गारी पढै है पानी के ? पानी नै परै है त देखै नै है जे कल सब सुखा जाई है आ पिबहु ला नै पानी भेटै है। उँह ! जेना दुरेपर कल गारल होई । बैमनमा भोट बेरमे कहले रहे – जीत जएबौ त कल गरा देबौ से घुरियो के नै आयल । अखन्ता छोड नै ओइ पानीके बात ।अई पानी के की करबे से कहनै जे घरमे घुसल हउ ? पानी के अपना कएला से कुच्छो नै होतै ।जा कहोग’ पलिकामे ,ओहे सब कुच्छो करतै ।हे भगवान आब कथी खाउ आ कथी पिबु ? गे तोरा खएनाई पिनाई सुझाई हौ ,हमरा त झारा फिरेके टेन्सन हए ।घरमे लैट्रिन नै आ बाहर खाली जगह नै ।आब जाउ त कत्त’ जाउ ? जा नै ओकरा लग जे भोटमे एक बोतल दारु पिया देलको आ’ लगला ओकरे परचार करे।आब एक्कोबेर घुरियोके तकै हो ?
बाहरसँ चिन्तामणिजी आवाज देलखिन –
‘ भोला ! हौ भोला !बाहर निकलह।चलह नगरपालिका ।’
भोला बाहर निकलि बाजल –
‘ एहन पानी मे कत्त’ जाएब हजुर ?’
‘ चलह ने , घरोमे पानि आ बाहरो पानि।नै कहबै मेयरके त ककरा कहबै ? सबगोटे मिलिक’ कहबै त कनी बातो सुनतै ।आखिर हमरेसब के भोटसँ त ओ जितल छै ।’
‘ चलू भरम तोडिए लिय’ कहैत भोला साथ लागि गेल। तिनूगोटे आगु बढलाह । बाटमे कतहु भरि छावा पानि त’ कतहु भरि ठेहुन पानि छल।सब पार करैत ओसब शनै:शनै:आगु बढि रहल छलाह । चलैत चलैत महेशबाबु सोचि रहल छलाह –
‘ जा त’ रहल छी, मुदा ई मेयर बेज्जति नहि कतौ क’ दिए ।आखिर हमहु त’ नेपाल सरकारक प्रथम श्रेणीक रिटायर्ड अफिसर छी । सुनै छियै बड घमण्डी भ’ गेल छै । सर्वग्याता सेहो भ गेल छै । आब ककरो कोनो बात सुनै कहाँ छै? आब खाली सुनबै छै ।भोट मांगए काल जे विनम्रता रहै से आब कहाँ? ‘
भोला मोने मोन गरिया रहल छल –
‘ हमरा त’ सब नेता झुठ्ठा लगैय,ठग लगैय ।गरीबके उद्धारपर खाली भाषण झारत ।लेकिन सब नेतबा अपने धन्निक बनेके जोगार करत ।बेकार जाई छी पलिका ।कुच्छो नै होब’ बला है। मुँह मारो एहन नेता के ,एहन भोट के आ एहन रजनीति के ।’
चिन्तामणिजीकेँ जनकपुरक अवस्थाक संग एकटा अपन यात्राक स्मरण भ ‘ रहल छलैक –
‘ जीवनमे पहिल बेर समुद्र देखने छलाह ।अनन्त आ अथाह जलराशि के देखि खुशी सँ पागल भ’ गेल छलाह ।बालु आ’ समुद्री पानिक मिलन विन्दुपर दौरए लगलाह – एक किलोमीटर , दू किलोमीटर , तीन किलोमीटर ।कहिने कतेक किलोमीटर आगु निकैल गेलाह ।देखलनि समुद्र कातेमे एकटा ग्रामीण वस्ती छै आ ओहि वस्तीमे एकटा पानिक नल आगु घैला,बाल्टिन ,खाली वर्तनआदिक लम्बा लाइन लगौने महिलासब पानि अएबाक प्रतीक्षामे ठाढ छै ।ओ विलमि गेलाह ।किछु समय पश्च्यात नलमे पानि अएलै आ’ लाइन टुटैत देरी नै लगलै।पहिने हम पहिने हम के होडबाजी प्रारंभ भ’ गेलै।होडबाजी मारिपिट मे परिणत भ’ गेलै।ककरो हाथ टुटलै,ककरो माथ फुटलै आ’ ककरो कपडा फटलै।ओ कखनो एक दिस असीमित पानि भण्डार अर्थात् महासागरके देखैथ त’ कखनो अही महासागरके किनार पर एक एक बूँद पानि हेतु लडैत लोकसबकेँ।विचित्र विरोधाभाष ठाढ छल ओत्त। की जनकपुर सेहो एहने स्थितिमे ठाढ अछि ?’
महेशबाबु टोकारी देलकनि-
‘ यौ चिन्तक महाराज ! कोन चिन्तामे पडि गेलहुँ? देखु नगरपालिका चलि आएल ।’
चिन्तामणिजी होसमे अएलाह ।तिनुगोटे नगरपालिका प्राङ्गणमे प्रवेश करए लगलाह कि नगर प्रहरी खौंझएलै-
‘ कत्त’ घुसिआएल अबै छी ?देखै नै छी टाइम ? नगरपालिका बन्द भ’ गेलै।जाउ जाउ काल्हि आएब ।’
तिनुगोटे भानुचौक पहुँचलाह ।देखलनि मेयर साहेब एकटा कोदारि पकरि नाला साफ करबाक पोज द’ रहल छलाह आ चारुदिस चेला चपाटी मोबाइल ल’ क’ फोटो ल’ रहल छल । बिच बिचमे ताली बजि रहल छल ।प्रशंसाक पुल सगरो उडिया रहल छल ।तिनुगोटे बेरा बेरी मेयर साहेबसँ बात करबाक प्रयास कएलनि।मुदा असफल रहलाह ।अकस्मात् भोला चिचिया उठल-
‘ हौ मेयर केतना नाटक करबा? रे हमरा सुन मुरुखके बात नै सुनबा त’ नै सुन’ । कमसे कम अई विद्वानोसबके बात त’ सुनि ल’ हो ।’
मेयर साहेब सेहो चिचियाक’ जवाब देलखिन –
‘ हौ ककर बात सुनियौ ? तोरा एहन दरुपिबा के बात सुनु ? कि हिनका एहन रिटायर्ड कर्मचारीके ? ई औफीसमे कोन कोन कर्म कएने छथि से कोनो हमरा नै बुझल अछि ? आ’ ई तेसर त समस्या के महाभारते छथुन ।हिनकर बात सुन’ लागब त’ हम पागले भ ‘ जाएब ।जा जा तोंसब अपन अपन घर ।आखिर हिनके सबके गल्ती सँ जनकपुरके ई हाल छै आ उन्टे हमरा सिखबए अएलैथ’ ।’
तिनुगोटे थाकल हारल घर घुरए लगलाह । मोन बहुत छोट भ’ गेल रहै।ककरा की कहै किछु बुझबा मे नहि आबि रहल छलैक।अपन मुह अपने नोचबाक मोन करै।मौनता के तोरैत भोला बजलै-
‘ यौ हजुर एना चुप रहला से काम नै चलत।एकरा पाठ त’ अपना सुनके मिल के पढाब’ परतै ।’
दुनुगोटे स्वीकृतिमे मुडी डोलएलखिन ।पाछाँसँ लाउडस्पिकर आवाज कानमे परैत रहलै-
‘ ई जनकक गाम जनकपुर
ई सीता के जनकपुर
ई जनकपुर .. ई जनकपुर ।’