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कथा रिपोर्ताज  – ओह, आई त’ फसि जईतहुँ





प्रा. डा. सुरेन्द्र लाभ                                            

 बात बत्तीस वर्ष पहिनुक अछि । हमरा हङकङसँ घुरलाक चारिपाँचे दिनक बाद अखबारमे ककरो फोटो सहित समाचार छपल रहैक-

  ‘ खेलौनामे घुसियाक’ दस किलो सोन अनैत एकटा युवक एयरपोर्टपर पकडायल।’ 

  समाचार पढिते हमर मुहसँ अकस्मात् बहराएल –

        ‘ ओह, आई त’ फसि जईतहुँ !’ 

               किया बहराएल – ‘ ओह,आई त’ फसि जईतहुँ!’ 

ईसब जानबाक हेतु कथा आरम्भेसँ कह’ पडत ।

  बात ई भेलै जे हमरा एकटा अन्तर्राष्ट्रिय सम्मेलनमे भाग लेबाक हेतु हङकङ जएबाक छल । ई हमर पहिल विदेश यात्रा छल ।तै एकदिस  मोनमे बहुतरास उत्सुकता  छल त’ दोसरदिस विभिन्न प्रकारक भय ।ने एतेक नम्हर हवाईजहाज देखने रहियैक आ’ ने चकमक करैत बाहिरी दुनियाँ। पासपोर्ट,भीसा,डलर आदिक व्यवस्था निजी सचिव कुशलतापूर्वक क’ देने छल ।हिम्मतक’ हवाईजहाजपर बैसलहुँ । 

      काठमाण्डू अन्तर्राष्ट्रिय विमान स्थलसँ प्लेन अनन्त आकाश दिस उडि गेलैक । करेज धरधराए लागल  । आँखि मुनि लेने छलहुँ।किछु समय पश्च्यात डेराइते खिडकीसँ नीचाँ देखबाक प्रयास कएलहुँ। किच्छु देखबामे नहि आयल –  नहि लोकवेद, नहि घरद्वार आ’ नहि खेत पथार ।चारुदिस मात्र श्वेत रुईकेँ पहाड़ नजरि आबि रहल छल ।प्लेनक यात्रीसब दिस तकलियै – सबगोट निश्चिन्त छल ।सम्भवतः ओसब अन्तरराष्ट्रिय यात्रामे अभ्यस्त छल । मुदा हम त’ नीकसँ डेरा रहल छलहुँ ।

     किछु देरके बाद अल्पाहार आ’ ड्रिङ्क सर्व होमए लागल। भयमुक्त होएबाक लेल  ड्रिङ्क नीक साथी भ’ सकैत छल… तै साथ लेलहुँ ।किछु समय अहिना साथीएसंगे बितैत गेल । जखने घबराहट बढे कि साथीक संगत सुरु भ ‘ जाय ।मात्र पाँच – छ घण्टाक फ्लाइट… बुझारहल छल कहियासँ ने एहि प्लेनपर बैसल छी ।

     प्लेन अपन निर्धारित समयपर हङकङ एयरपोर्टपर उतरल छल ।हमहुँ उतरलहुँ प्लेनसँ ओहि अन्जान धरतीपर ।टैक्सी पकरैत काल ड्राइभर टुटल फुटल अङ्ग्रेजीमे पुछ्ने छल –

    ‘कत्त’ जाएब ?’

    हम मात्र एतबे कहलियै – ‘चुङ किङ मेनसन ।’

   हँ चुङ् किङ मेनसन के नाम मोन छल । काठमाण्डूमे कहल गेलछल – जाहि होटलमे कन्फरेन्सवला व्यबस्था कएने अछि , ओ बहुत महग छै ।आ’ पाई अपने देबाक छै । ताँए  सीधा चुङ किंग मेनसन जाएब ।ई बहुत पैघ मार्केट कम्प्लेक्स छै , जतए रहबाक हेतु सस्ता होटलसब अनेक नेपाली आ’ भारतीय खोलने अछि ।

    एकटा मित्र अपन दूरके बहिनक पता सेहो देने छल ।ओ बहिन सेहो चुङ किंग मेनसनमे होटल चलाक’ बैसल छलि। ओहि अज्ञात आ’ चकाचौध करैत शहरमे ओ दूरके बहिन अपने  बहिन जकाँ अनुभूति देवए लागल ।

                          चुङ किंग मेनसन पहुँचलहुँ।सर्वप्रथम जे व्यक्ति भेटलाह ओ सरदारजी छलाह । सरदारजीसँ बहिनक होटल मादे पुछलियैक ।ओ अन्जान बनैत कहलनि- ‘ देखू अखन साँझ भ’ गेल । आहाँ भोरे खोजि लेब से नीक रहत ।आई रातिभरि हमरे होटलमे रुकि जाउ ।सस्ता आ सुन्दर छै ।’ बात हमरो ठीके लागल ।ताहूमे एकत’ थाकल आ दोसर प्लेनवला साथी माथपर बैसले छल ।हम स्वीकृतिमे मुडी डोला देलियै ।

  ओ अपन पच्चीसम तल्लापर रहल होटलमे ल’ गेल।औपचारिकता पूरा कएलाकबाद अपन कोठलीमे पहुँचलहुँ आ’ सोझे छिटकिल्ली लगा बेडपर सुति रहलहुँ।

   कहिने कतेक देर सुतल रहि गेल छलहुँ। उठलहुँ त’ मोन कने फ्रेश छल ।मुदा ई बुझबामे नहि आबि रहल छल जे दिन छै कि राति छै ?समय कत्ते भेलै ? हङ्कङ आ नेपालक समय बिच किछु अन्तर छै से बुझल छल ।मुदा कत्तेक से हिसाब किताब घडीपर फरिछा नै रहल छल ।

   लिफ्टसँ नीचा उतरलहुँ।ओएह सरदारजीकेँ पुछलियैक- ‘सरदारजी समय कतेक भेलै? अखनि दिन छै कि राति?’ ओ मुस्किआएल ।किछु मजाकिया स्वभावक छल ।जबाब देलक – ‘ हम त’ स्वयं सरदारजी छी,हमरा की पता जे दिन छै कि राति ?ओना अखन रातिके बारह बजैत छैक ।बारह अर्थात् सरदारबला टाइम ।’ सुनिते चोट्टहि अपन कोठलीमे घुरि अएलहुँ।

                               सन्दर्भबस  प्रारम्भ भागमे बहुत बात लिखैत गेलहुँ ।मुदा असली बात त’ अखन बाकिए अछि जे हमरा मुँहसँ ‘ ओह, आई त’ फसि जईतहुँ ‘ किएक बहराएल? क्रमशः ओत्तहि अबैत छी ।घबराउ जुनि ।कथा रिपोर्ताज सुनबाक हेतु कने धैर्य त’ राखहि परैत छैक ।

                           कथाक मध्य भागक प्रारम्भिक मूल बात ई छै जे भोर भेलै ।सबसँ पहिने बहिनक होटल खोजलहुँ ।बहिनसँ भेटि अत्यधिक प्रसन्नता भेल । घन्टो बतियाइत रहलहुँ – नेपालक राजनीति,अर्थतन्त्र ,बहिनक होटल, हङकङ आदि इत्यादि सम्बन्धमे।लागल जेना कुम्भमे हेराएल दुनू भाय बहिन वर्षोंबाद भेटल होई ।

     तत्पश्चात बहिन जाहि डबल बेडबला रूममे हमरा रहबाक व्यवस्था कएलक ओहि रूममे पहिनेसँ एकगोटे रहि रहल छल । ओहि व्यक्तिसँ परिचय करबैत बाजल छल –

  ‘ भैया अहाँ अही रूममे रहू।दुनूगोटे रहब त’ मोनो लागत आ’ सस्ता सेहो परत ।किछु पाई बाँचत तखन ने कनेक सोन  , भौजी लेल साडी आ’ बाल बच्चा हेतु लत्ता कपडा किनक’ ल’ जाएब । ई नीक लोक नेपाले के छथि ।व्यापारक सन्दर्भमे एहिठाम अबैत रहैत छथि । एत्त’ घुमबाक स्थानसभक अता पता सेहो बता देताह।’ 

  प्रसन्नतापूर्वक स्वीकृति प्रदान कएलहुँ । ठीके ओ नीक लोक लगलाह।खूब बातचित कएलहुँ। हिनकोसँ नीक दोस्ती भ’ गेल । लागल जेना एहि परदेशमे एकटा भाय सेहो भेट गेल ।भोजनोपरान्त तिनू भाय बहिन बजार निकलि गेल छलहुँ ।एहिठामक स्थानीय दोकानदार मात्र स्थानीय भाषा बुझैत छैक , कने मने अङ्ग्रेजी मिश्रित । ई दुनू बजारमे समानसभक खरिदारीमे खूब साथ देलनि ।आ’ सन्ध्याकाल सम्मेलनद्वारा आयोजित गेट टूगेदर स्थल धरि पहुँचा देलनि ।

            सम्मेलन औपचारिकरूपसँ काल्हिसँ प्रारम्भ हएतै ।मुदा अझुका गेट टुगेदर अनौपचारिक परिचय पात हेतु राखल गेल छलैक।कथाक महत्वपूर्ण कडी इहो अछि ।तँए  आउ कने एकरो बारेमे संक्षेपमे बुझै छी । 

      संसारक कोना कोनासँ लोक आएल छल ।ओहि अपरिचयसँ भरल दुनियाँमे हमर आँखि परिचयक सूत्रकेँ खोजि रहल छल । खोजैत खोजैत कहिने कोना आ’ कखन पाकिस्तान, बंगलादेश आ’ भारतसँ आएल सहभागी लग चलि अएलाह । अपरिचयक देवाल क्षण भरिमे भरभरा क’ खसि परल ।आ’ चारुमे मित्रता भ’ गेल।देशक भेद मेटा गेल । गप्प सप्प करैत करैत हमरा लोकनि कनेक बेसिए अनौपचारीक भ ‘ गेलहुँ ।भारतके भोपालसँ आएल प्रोफेसरकेँ हमरालोकनि नामाकरण कएल – ‘ सुरमा भोपाली ।’  ताहिना बंगलादेशक सहभागी छलीह- वयोवृद्ध अवकाशप्राप्त प्रोफेसर ।हुनका सर्वसहमतिसँ ‘अम्मा’ उपाधि देल गेल। पाकिस्तानक हामिद भेलाह ‘ भाइ ‘ आ हमरा ‘नेपाली’ नामसँ बजाओल जाए लागल ।चलु अपना देशमे त’ लोक शुद्ध नेपाली मानिते नै अछि , मुदा विदेशमे सुच्चा नेपाली भ’ गेलहुँ ।

             परातभिने सम्मेलन प्रारम्भ भेल ।चारुगोटे संगे रहए लगलहुँ । अम्माक नेतृत्वमे संगे भोजन संगे जलपान कर’ लगलहुँ। सम्मेलन भवनमे जे गोटे पहिने पहुँचैत छल ओ साइडवला तीनटा सीट छप्पा मारैत छल आ’ सब सार्कवला मित्र  एक्केठाम बैस खूब गप्प मारैत छलहुँ। हङकङके प्रवास सहज भ’ गेल छल ।सम्मेलन दिस आबी  त’ मित्रसब बाट जोहैत भेटैथ आ’  बास स्थान पहुँची त’ भाय बहिन प्रतिक्षारत भेटैथ ।

      रातिमे अपन अपन होटल जाएसँ पहिने हमिद भाइ कानमे कहैथ – ‘ ठीक दस बजे सी बीच पर मिलते हैं।’ आ’ अम्माके छोडि बाँकी तिनू सार्क मित्र बारह एक बजेधरि सी बीचपर सितल हवा खाइत रहि जाई ।एक राति लगभग एक बजे अम्मा धमकि परलीह आ’ साधिकार बजलीह- ‘ चलो अपने अपने होटल । इतनी रात तक आवारागर्दी करते हो ?’ क्षमा मंगैत अपन अपन होटल विदा भेलहुँ ।अम्माक स्नेहिल डाँटसँ आँखि डबडबा गेल छल ।

             आब कने सुरमा भोपालीक हाल सुनु सँक्षेपमे। सम्मेलनक चारिम दिन भोरे भोर सुरमा भोपाली हमरासब लग अएला – कनैत ।नोरे झोर एकठ्ठा।पुछलियै-

  ‘ की भेल ?’ 

    कह’ लगलाह – मैं बरबाद हो गया , लूट गया ।’ आ’ पुनः हिचुकि हिचुकि कानए लगलाह ।

    अम्मा तमसाइत बजलखिन – ‘ ए सुरमा भोपाली ! क्या बच्चों की तरह रोता है ? चुप्प हो जा और बता क्या हुवा ?’

    तखन भोपाली चुप्प भेलाह आ’ अपन दुखडा सुनौलनि।बात ई भेल रहैक जे सुरमा भोपाली आयोजकद्वारा प्रस्तावित फाइभ स्टार होटलमे रुकि गेल छलाह ।आमन्त्रण पत्रकेँ पूरा पेज ई नीकसँ पढने नै छलाह ।ताँए  हिनका पते नहि छलनि जे होटलके बिल अपने चुक्ता कर’ परतैक ।आई भोरे होटलवला हिनका हिसाब किताब सम्झौलक ।बिल त’ कहाँ सँ कहाँ भागि गेल रहैक ।बेचारा एक दिस अपना संगमे रहल सीमित डलर देखैथ त’ दोसर दिस होटल के बिल ।दिल आ’ दिमाग काज नै कएलकै तखन भागल भागल हमरासबलग अएलाह । 

     आब की कएल जाए ? गन्थन मन्थन उपरान्त अम्माक सल्लाह अनुसार हमरालोकनि आपसमे चन्दा कएलहुँ आ’ सुरमा भोपालीकेँ होटलसँ मुक्त  करबौलहुँ। अम्मा हिनका खूब डटने छलीह मुदा अंतमे हँसैत बजलीह – 

        ‘ तुमलोग इसका सही नाम रखा – सुरमा भोपाली।’ सुनितहि हमसब जोरसँ सार्कवला ठहाका मारने छलहुँ।

                ‘ ओह, आई त’ फसि जईतहुँ’ एहि मूल प्रश्नक जबाब त’ एखन बाँकिए अछि ।आउ ओम्हरे दिस चलैत छी ।

     कथाक अन्त भागक प्रारम्भ हङकङ प्रवासक अन्तिम दिनसँ होइत अछि ।भोरे भोर हमर रूममे बहिन एकटा बैगसंग  प्रवेश कएलीह आ’ भाव विभोर होईत बजलीह – 

  ‘ भैया आई अहाँ चलि जएबैक ने ? कहिने आब कहिया भेट हएत ?’ हमहूँ भावुक भ’ गेल छलहुँ।गला अवरुद्ध भ’ गेल छल ।बहिन पुनः बजलीह- 

  ‘ भैया एकटा कष्ट देब’ चाहैत छी । ई बैग काठमाण्डू धरि ल’ जईतियैक त’ पैघ उपकार होइत ।एहिमे आर किछु नहि मात्र हमर बच्चासब लेल कपड़ा आ खेलौना छै । हमर पति बैग लेबाक हेतु काठमाण्डू एयरपोर्ट पर चलि अओताह ।’ 

   एहि भावुक क्षणमे बहिनक आग्रहकेँ हम अस्वीकार नहि क’ सकलहुँ।

                                           आई हङकङसँ चलि जाएब ।बहिन भाय खूब मोन परत ।सुरमा भोपालीक सुरमई कथाकेँ कोना बिसरबै ? हमीद भाइक रंगीन मिजाजी सेहो स्मरण पटपर अभरैत रहत।आ’ स्नेहिल अभिभावक ‘ अम्मा’ केँ त’ बिसरबाक प्रश्ने नहि ऊठैत अछि ।

    अम्मासँ भेटलाक बाद बुझाएल जे जन्म देबएवाली अथवा पोसएवाली मात्र माय नै होईत छैक , माय कत्तहु कोनो रूपमे भेटि सकैत अछि । इएहसब सोचैत रही कि अकस्मात् अम्मा रूममे प्रवेश कएलीह ।अम्माक फ्लाईट काल्हि छैक ।ओ एत’ सँ अमेरिका जएतीह अपन बेटालग ।अबिते पुछलनि- 

   ‘ पैकिङ हो गया ?’ 

   ‘हँ’ कहैत सब बैग दिस संकेत कएलियैक।संगे बहिनक बैग मादे सेहो चर्च कएलियैक।अम्मा किछु देर गुम्म भ’ गेलीह आ’ ततपश्च्यात तमसाइत बजलीह – 

   ‘ हङकङ स्मग्लिङवला स्थान छै से तोरा बुझल नै छौ ? बैगमे की छै नै छै ?जो बैग तुरन्त फिर्ता कर ।’ 

  हम असमञ्जसमे पडि गेलहुँ।बैग कोना फिर्ता करियऊ ?स्वीकार कएल चीजकेँ कोना अस्वीकार करियऊ ?बहिन की कहत ? हमर मन:स्थितिकेँ बुझि अम्मा सीधा आदेश देलनि- 

   ‘ जो बैग फिर्ता क’ क’ आ’ तखने हम तोहर रूमसँ जएबौ ।’ 

   हम यन्त्रवत आदेशक पालन करैत बैग ल’ जा’ क्षमा याचना सहित फिर्ता क’ देलियैक ।बहिनक मुखाकृति चूक खाएलसन भ ‘ गेल रहैक।हमरो कोनादन लागल छल ।मुदा अम्मा मुस्कियाइत ‘ साब्बास’ कहैत पीठी ठोकने रहथि।

   अम्मा निश्चिन्त भावसँ जाए लगलीह।हम चरण स्पर्श कएलहुँ । माथपर अम्माक हाथक स्पर्श एना बुझाएल जेना आशीर्वादक शितल फुहार परल हो । सँझुका फ्लाइटसँ देश घुरि गेल छलहुँ- अपनत्वक नव आयाम नेने ।

                            चारि पाँच दिनक बाद समाचार पत्रमे देखलहुँ-

‘ खेलौनामे घुसियाक’ दस किलो सोन अनैत एकटा युवक एयरपोर्टपर पकडायल।’ 

  हम समाचार दिस  एकटक तकिते रहि गेलहुँ । समाचार संगे जाहि युवककेँ फोटो छपल रहैक ओ युवक केयो आर’ नहि हमर रूम पार्टनर नेपाली व्यापारी छलाह । जाहि बैगके समाचारमे देखाएल गेल रहैक ओ वएह रहै जे बहिन हमरा देने छल । 

 

     वाह रे हमर भाय ! वाह रे हमर बहिन ! किछु देर माथ चकरा गेल आ’ तत्पश्चाते मुँहसँ बहराएल छल – ‘ ओह, आई त’ फसि जईतहुँ।’ फेर दूर देशमे कतहु बैसलि अम्मा मोन पडलीह आ’ हृदयसँ आवाज निकलल – ‘ धन्यवाद अम्मा ! हृदयसँ आभार !’