♦ विभूति आनन्द
ओ सहसा ट्रेनमे भेटि गेलि रहय. एसी चेयर कारमे. दूनूक रिजर्वेशन रहय. ओना सीट अलग-अलग रहय. मुदा ओ अपन व्यवहार सॅं सीटक सामंजस्य बैसा लेलक. आब दुनू एक ठाम रही.
दुनूक फेसबुक-मैत्री छल. मुदा हम सभ कहियो फेस-टू-फेस नहि भेल रही. से वएह चिन्हलक. टोकलक. फेर हमहूँ चीन्हि गेलिऐ. ओहि बिंदास लड़कीकें के नहि चिन्हितै ! बुजुर्ग सॅं युवा धरि जेना ओकर ‘फैन’ रहै. आ ताहीमे एक हम सेहो रही…
आब गप-सप कतऽ सॅं शुरू भेल, अथवा गप पहिने के शुरू कयलक, मोन नहि पड़ि रहल अछि. बस, एतबा टा मोन अछि जे जाधरि हम दूनू संग रहलहुॅं, ओ हमर ताकुत करैत रहलि– ‘सर, पानि पीबै ! हमरा तऽ रातिमे खयबाक मौके नै भेटलै ! चिप्स खायब ? आ ई तऽ मीठ छै, खयबै की ? सूगर नहि ने अछि ? तखन ई खाउ ! छठिक ठकुआ अछि ! अरे हॅं, भने मोन पड़ल, भूजा सेहो छै ! चूरा के !…’
आ हम ओकर गतिविधिकें देखैत सोचैत रहलहुॅं जे तखन आखिर ई लड़की आइ-काल्हि फेसबुक-गाॅसिप्समे एना किए ‘ट्राल’ होइत रहैत छै ! ई जाहि घर जएतै, ओकर तॅं भाग्ये खुजि जैतै !
आकि तखनहि मोन पड़ल ! जाह, ई तऽ घोषणा कएने अछि जे विवाहे नहि करब ! आ जॅं घरक प्रेशरपर करबो करब, तॅं अपन शर्तपर. आ से बऽरक पक्ष लेल सहज स्वीकार्य नहि हैतै…
शर्तो सभ विचित्रे छलै ! हम मुक्त भऽ जहिना एखन जीबैत छी, बादोमे तहिना जीब ! पुरुष सभ संग जेना एखन गप-सप करै छी, बादोमे अइ सबमे रोक-टोक बर्दाश्त नहि हैत. हम स्त्री-पुरुषमे विभेद नहि मानैत छी. एक तरहें बूझू तॅं विवाह-पूर्व अपन होबऽ ‘पार्टनर’ सॅं खुलि गप कऽ लेबऽ चाहब ! आ से दोस्ती-मामलामे ओ फ्री, हमहूँ फ्री. आ से ब्वॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंडक अइ दौर मे दकियानूसी विचारकें विवाह-पूर्व त्यागिये कऽ ककरो संग जॅं इन्गेज हैब, तॅं हैब. ओना तॅं मूल बात ई जे हमरा विवाहमे कोनो इंट्रेस्ट अछिये नहि …
आ से कहलक जे आब परिवारक लोक तें विवाह-प्रसंग टोकनाइयो लगभग बंद कऽ देने अछि. फेर ईहो कहबामे नहि चूकलचूकल जे, तखन वएह कोनो-कोनो मांगलिक काजमे कऽर-कुटुम्ब गप उठा दैत रहै छथि. मुदा करतेबता खत्म होइते सभक अपन-अपन घरक चिंता. फेर तॅं तकर बाद ईहो ‘बंदी’ अपन संसारमे– ‘जान बची तो लाख उपाय…’
कहलक–’सर, परिवारो वला कते दिन धरि प्रेशर देतै ! पाॅंच वर्ष ! दस वर्ष ! फेर तऽ विवाहक उम्रो खत्म ! आ फेर ! तखन तॅं अपन को बल्ले बल्ले !…’
ओहि बिंदास सन लगैत लड़कीक जीवनानुभव सभ सेहो कम नहि रहल छै. गपे-गपमे कहि उठलि–’अखबारमे काज करैत रही. ओही समयमे कैम्पसक दू टा महिला एक तरह सऽ कही तऽ बलजोरी, हमरा ‘माॅल’ लऽ जाइत गेलि. दूनू के मेहदी लगयबा के रहै. लगयबो कयलकै. तखन हमहूँ की करितौं, इच्छा नहियों रहैत लगबा लेलौं. जखन कि हमरा ई सब रत्ती भरि पसिन्न नै अय…
–’ई तऽ हमरो नै सोहाइए ! कोमल-सुकोमल चाम के जियान कऽ लै जाइ छै सभ. एक समयमे एहिना गोदना गोदयबाक चलन रहै…’ हम बिच्चहिमे टोनि देलिऐ.
मुदा ओ लड़की हमरा जेना अनसुन करैत बजैत रहलि– ‘मुदा जखने बहरैलौं, आकि वर्षा शुरू ! से कहुना कऽ भिजैत-तितैत हम सभ अपन-अपन डेरा पहुँचलौं. समयपर आबि छोड़ैलौं. मेहदी सहीमे रंग अनलक ! खूब कऽ लाल भेल. फेर तॅं मोन खुशी सऽ कूदि उठल…
‘मुदा प्रात भेने जखन ओहि मे सऽ एक गोटे सऽ भेंट भेल, तऽ ओ हमर हाथ देखैत दुखी भऽ गेली. हुनकर हमरा सन लाल नै भेल रहनि. से बाजियो उठली– ये हम तऽ प्रेमो केलौं, फेर बियाहो. मुदा…’
– ‘अच्छा, तऽ अइ सऽ की भऽ गेलै ?’ हम पुछलिऐ.
– ‘अरे महाराज, एतबो बात नै बुझै छिऐ !’
– ‘नै ! तें ने पुछै छी…’
– ‘जाहि स्त्री के बऽर जते अधिक मानै छै, ओकर मेहदी तते अधिक लाल होइ छै !’ आ कहैत हॅंसऽ लागलि– ‘हॅं यो, एहन सन मान्यता छै !…’
– ‘आकि अहाॅंपर शंका भेलै !’ हम ओहिना बाजि देलिऐ.
– ‘मे बी…’ ओ बाजलि.
– ‘तऽ की ओकर शंका मे सत्यता छै ?’ हम गपकें थोड़ेक ‘ट्विस्ट’ कऽ देलिऐ. आ ओ उत्तर देबाक बदला ठठा कऽ हॅंसि पड़लि…
मुदा ताहि हॅंसीमे हमरा अपन हॅंसी घोरल तॅं नहि भेल, धरि एक गोट कवितांश मानसमे टहलैत आबि गेल, जे कोनो एहन प्रेमीक मादे छलै, जे ओकर विश्वासकें खंडित कएने रहै. तथापि–
जानै छी हम, जे
नहि बिसरि पायब अहाँ हमरा
आ नहि कटि सकब अपन ओहि स्मृति सभ सॅं,
जाहिमे निकटतम छी हम अहाॅंक
प्रायः ओतबे निकट, जतबे कि
अहाँ स्वयं सेहो निकट नहि छी स्वयं सॅं
तथापि जॅं जा सकी, तॅं
जाउ अहाँ एहि स्मृति सभ सॅं आगू
मुदा मोन एतबा राखब, जे
जखन घूरी, तॅं
तॅं फूलक पत्ती बनि घूरी
पुरइनिक पात बनि कऽ नहि
किएक तॅं हम
फेर सॅं भिजा सकी
बरसात बनि अहाँकें, अपन बुन्न मे !
आ से ओहि कवितामे बाझले रही, आकि तखनहि ब्रेड-आमलेट वला अयलै, ओ पूछि बैसलि– ‘सर आमलेट खायब ?’
हमरा ‘नहि’मे मूड़ी डोला गेल. बादमे इच्छो भेल. मुदा ‘नहि’ जे कहा गेल, से जॅं फेर ‘हॅं’ कहितिऐ तॅं जेना अपन प्रतिष्ठापर पड़ि जाइत. तें चुपचाप लागल भूखकें दबा लेलहुॅं.
मुदा ओ अपन बैग सॅं किछु-किछु ‘चंक फुड’ निकालि कऽ बकरी जकाॅं मुॅंह चलबैत रहलि. हमरो आग्रह करय. किन्तु हम अस्वीकार कऽ देल करिऐ– ‘हमरा ई सभ नै नीक लगैए…’
मुदा तैयो ओ चुप कहाँ रहि पाबय. किछु-किछु गप करिते रहय. बीच-बीचमे ओना घड़ी जरूर देखि लेल करय. फेर देखिऐ जे ओ बैग सॅं कोनो दवाइ निकालय. आ मुंह कें ‘आ’ करैत फेर ओकरा अंदर फेकैत फ्लास्क सॅं पानि गट-गट…
हमरा अजीब लागय ओ लड़की ! भूजा जकाॅं चंक फुड, तहिना भूजे जकाॅं दबाइ ! मुदा चेहरा सॅं तॅं केहन सुन्दर सन लागय ! आधुनिक अछि तें प्रायः जिंसपैंट आ शर्ट, दहिना हाथमे घड़ी. दू-दू टा एन्ड्रायड. ताहूमे एक टा महग. एप्पल कें. बाॅब्ड हेयर. सेहो औंठिया. आ सेहो खुलल-खुलल, हवा मे फहराइत… उड़िआइत… अहगर कऽ ठोरपर कोनो महग सनक लिप्सटिक…
आब हमरा नहि थम्हल गेल. आ एतेक कालमे खुजि सेहो बहुत गेल रही, पूछि देलिऐ– ‘ई एते भूजा जकाॅं कथी के दबाइ फॅंकैत जाइ छिऐ ?’
फेर तॅं ओहो जेना लागल, अपन जिनगीनामा लऽ कऽ बैसि रहलि–
तऽ सर, सुनू ! शुरुये सऽ सुनू ! अहूॅं की सोचब जे जीवनमे एक एहनो लड़की भेटल रहय. 2011मे कैमिस्ट्री ऑनर्समे एडमिशन भेल छल. मुदा दोसर सेमेस्टरमे पेरेलाइसिस एटैक भऽ गेलाक कारणें शेष दू टा परीक्षा छूटल, आ ओ ईयर ड्राॅप करऽ पड़ि गेल…
फेर ओहि सऽ उबरलहुॅं तऽ साइंस नै पढ़लहुॅं. पिता प्रेशर देलनि– साइंस पढ़बा के छौ तऽ पढ़, नै तऽ एकाध टा लड़का देखलिऐ-ए, बियाह करा दै छियौ ! अपन घर-गृहस्थी सम्हार…
सर, हमरा तऽ आगि फूकि देलक ! हम पिता सऽ रिवोल्ट कऽ गेलियनि, आ घर सऽ निकलि गेलौं. फेर घुरिकऽ नै अयलौं. एकटा डेरा लेलौं, जेहने-तेहने, आ ट्यूशन करऽ लगलौं. फेर तऽ ताही क्रममे 2012-15मे दिल्ली विश्वविद्यालयक संट स्टीफेन्स कालेज सॅं अंग्रेजीमे ऑनर्स कऽ लेलहुॅं !
संयोग जे ओही बीच आरबीआईमे इंटरव्यू देलिऐ. सेलेक्शन भऽ गेल ! मुंबै मे. आ ओतऽ जा 18 मइ 2015 के पब्लिक डिपार्टमेंटमे सहायक रूप मे योगदान दऽ देलौं. ओतऽ 23 अगस्त 2017 तक रहि गेलौं. ताही बीच जाॅब करैत इलाहाबाद विश्वविद्यालय सऽ अंग्रेजीमे एम. ए. सेहो कऽ लेलहुॅं…
फेर आरबीआई छोड़ि 2017-19 वापीमे एकटा कंपनी मे इवेंट मैनेजर के नोकरी ज्वाइन कऽ लेलिऐ. 2017-20 मे एल.एल.बी. फेर तकर बाद 2019-21 तक इन्टीग्रेटेड स्कूल ऑफ लाॅ केर जर्नल के संपादक रहलौं. ओना आर छोट-छोट दूटा कंपनीमे कानूनी सलाहकारो रहलहुॅं, 2020 सॅं 2022 के जनवरी तक. ओही बीच 2020-22मे दिल्ली विश्वविद्यालय सॅं हिंदीमे एम. ए. कऽ लेलौं. फेर ओही बीच 2021-22मे अनुवादमे परा स्नातक डिप्लोमा लऽ लेलहुॅं.
ओना एहि बीच किछु समयक लेल एक टा मैथिली अखबारमे सेहो रहलहुॅं. मुदा आब, माने 17 June 2023 सऽ देशक विभिन्न कोर्टमे लगाति पूर्णकालिक लीगल प्रेक्टिसनरक रूपमे कार्यरत छी…
… आ हम तॅं ओहि लड़कीक यात्रा-कथा सुनैत-सुनैत हेरा गेलहुॅं ! ओ तॅं जेना अपन एहि जीवनक एक-एक दिन, वर्षक संग इन्वाॅल्व, हमरा संग भऽ गेल रहय. से पुछलिऐ तॅं कहलक जे मसियौत भाइक बियाहमे जा रहल छी…
– ‘बरियाती की?’ पूछि देलिऐ.
– ‘ओही शर्तपर जा रहल छिऐ…’ ओ हॅंसि पड़लि.
आकि फेर हमरा ओकर विवाह-प्रसंगक छूटल लड़ी मोन पड़ि आयल, पूछि देलिऐ– ‘आ अपन ?’
एहि पर मुदा ओ तॅं जेना लहरि गेलि ! प्रायः पिताक ओ दुत्कार मोन पड़ि आयल होइ, शुरू भऽ गेलि– ‘की लड़कीक इच्छा जनितो ओकरा किनार करब, आ ओकरा अपन मोन सऽ पढ़बाक अधिकार से वंचित करब सही छै ? की ओकरा स्व-जीवन जीबाक अधिकार नै ? नोकरी करबाक अधिकार नै ? विवाहक फैसला लै के अधिकार नै ? मतलब पिजरा मे बंद पंछी सन जीवन जीबा लेल विवश करैत रहबाक प्रयास कतऽ सऽ उचित छै ! आ जे ई कुकर्म समाज सदा सऽ करैत आयल अछि…’
– ‘मतलब…’
– ‘इएह सभ टा देखैत आ व्यथित होइत रहबाक कारणे…’
– ‘की ?’
– ’विद्रोह !’
– ‘ककरा सऽ ?’
– ‘घर सऽ, पिता सऽ…’
– ‘एखनो धरि ?’
– ‘सर अहाँ बात के बहुत तीरै छिऐ !…’
– ‘नै, पूछै छी !’
– ‘तऽ आब सत्य ई अछि जे पिता के बोध भऽ गेलनि जे हमर बेटी आम बेटी सऽ अलग अछि…’
– ‘तऽ तखन घर घुरि गेलिऐ ?’
– ‘ओ तऽ आब संभव नै अछि. जे व्यक्ति एतेक वर्ष धरि स्वावलम्बी भऽ कऽ जीलै…, तखन आन-जान, गप-सप आदि तॅं होइते रहै छै…’
मुदा तैयो हमरा लगैत रहल जेना ओहि लड़कीक अंदरक आगि, आ प्रकृति द्वारा ओहि आगिकें मिझयबाक कोनो चेष्टा, आ तकरा संग ओकर ई एक दोसर लड़ाइ आखिर की छिऐ ?
आ हम अंततः पूछि देलिऐ– ‘ई जे बैग मे भरल दबाइक भूजा अछि, से कोन लड़ाइ सॅं लड़बाक अस्त्र अछि ?’
ओ बाजलि–’सर ई छठिक टिकरी छै, खा लिअ ! ई लेट-लतीफी ट्रेन अहाँ के तबाह कऽ कऽ राखि देलक…’
– ‘मुदा हम से नहि पुछलौं !’
– ‘जी सर…’ आ सहसा ओकर स्वर बदलि गेलै आ ओ कहब शुरू कऽ देलक– ‘सर, तखन ईहो बुझिये लिअ ! जुलाइ ’12मे रोड एक्सीडेंट भऽ गेल रहय…’
– ‘हॅं…’हम बैसल-बैसल जे ओलरि गेल रही, कनी ओरिया कऽ बैसलहुॅं.
– ‘आ ताहि सऽ पहिने पैरेलाइसिस एटैक भेल रहय, से तऽ कहनहि रही…’
– ‘हॅं हॅं…’
– ‘ओ सब ओकरे लक्षण रहै…
– ‘ककर ?’
ओ बजैत गेलि– ‘अप्रैल 2019 मे हम क्रोनिक अल्सरेटिव कोलाइटिस के कारण कोलन कैंसर के शिकार भऽ गेल रहिऐ, जे प्रायः ओ अपन पहिल चरण मे छलै…’
आ सहसा हमर रोम-रोम जेना काॅंपि गेल रहय. मुदा से सभ बाहर स्पष्ट नहि होबऽ देलिऐ. देखलिऐ, ओ पुनः बैग सॅं एक टा कोनो दवाइक गोली निकालि कऽ मुॅंहमे फेकलक, आ फ्लास्कक मुन्ना खोलि कऽ पानि पीबि पुनः ओकरा बंद कऽ देलक.
किन्तु ओकर मुॅंह बन्द नहि भेलै, हॅंसैत बाजलि– ‘हाॅस्पिटल मे उदास पिता मुदा डाक्टर सऽ कहलथिन जे ओकरा नै कहबै ई सब !’ आ फेर हॅंसऽ लागलि.
हम मुदा तखन जेना ओकर पिताक स्थितिमे अबैत, गह्वरित भेल ओकर मुॅंह टा देखैत रहि गेलिऐ ! ओकर भावपूर्ण ऑंखि, हॅंसैत ठोर, आ निर्विकार चेहरा…
आकि फेर बाजि उठलि– ‘जनै छिऐ सर, पिताजी डाक्टर सऽ की कहलथिन !’
हमरा लग शब्द नहि छल, बस, पल उठा कऽ तकने टा रहिऐ ! ओ लड़की तॅं जेना सर्वथा एक नव मनुष्य सॅं साक्षात्कार करौने जा रहल छलि, आगू बाजलि– ‘मुदा डाक्टर कहलथिन जे ओकरा सभ टा बूझल छै ! ओ तऽ हमरे सऽ पूछै छलि– ‘मैं कब तक हूँ डाक्टर सर ?’
आब हमर धैर्य जेना जवाब दऽ देने रहय, तथापि पुछलिऐ– ‘ई भूजा कहिया तक फॅंकैत रहबै ?’
– ‘दस वर्षक डोज छै. तेसर वर्ष चलि रहल छै. एक सालपर देखबै छिऐ. ओना इलाज सही दिशामे चलि रहल छै. डाॅन्ट वरी सर…’
… आ फेर तॅं हमरा समक्ष ओहि बीमारीक भयावहता नाचि गेल. हम डोलि गेल रही– कतेक कैलकुलेटेट सोच छलै ओकर ! शुरू मे विवाह-प्रसंग कहने छलि– ‘कतेक वर्ष ! पाॅंच वर्ष ? दस वर्ष ! आ फेर तऽ…’
भक् टुटल तॅं सुनलहुॅं ओ एकटा गीत गुनगुना रहल छलि– ‘जिंदगी, एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या होगा किसने जाना…’
… आ एहिनामे स्टेशन आबि गेल. ओ सामान पीठपर लदलक. फेर बलात् हमरो बैग लऽ लेलक. फेर कहलक– ‘सर, आगू आउ ! उतरू…’ हम यंत्रवत् ओकर जेना आदेशक पालन करैत गेलिऐ…
मुदा दुनूक गंतव्य एक नहि रहय. दुनू भीड़मे हेरा गेलहुॅं. मुदा हेरयबा सॅं पहिने जेना ओ हमर मनोभावकें ‘फील’ कऽ गेलि, आ चलैत-चलैत कहैत गेलि– ‘हम जीतब… जीतब हम सर ! ताबत अइ सुंदर सन जीवन के भोगि लेबऽ चाहै छी…’
आकि ठोर आप-सॅं-आप बुदबुदा उठल– ‘देवी…’
ओ उत्तर देलक– ‘सर, हम एतेक लोड लऽ कऽ नै रहि सकै छी… हम अपन हिस्साक जिनगी जीबऽ चाहै छी…’
आकि दोसर ट्रेनक रेला अयलै. भीड़ बढ़लै, आ फेर ओ नजरि नहि आयलि…